फैजान खान / आगरा
ऐ खुदा, यूं रात में कोई रोया न करे, करिश्मा कर दे, कोई भूखा सोया न करे. किसी शायर की ये दो लाइनों ने जीनत जीशान खान को बहुत परेशान किया. इस शेर को हकीकत में बदलने के लिए उन्होंने दूसरों की मदद लिए बगैर ऐसा काम शुरू कर दिया है कि आज उन्हें गरीब बस्तियों में 'खाने वाली दीदी' के नाम से जाना जाने लगा है.
जीनत की टीम हर दिन एक बस्ती के गरीब बच्चों के लिए खाना तैयार कराती है. ये खाना कहीं और नहीं, बल्कि उनकी किचन में ही उनका रसोइया हरि गोपाल तैयार करता है.
इतना ही नहीं, वे गरीब बच्चों के लिए स्कूल में एडमिशन और मेडिकल कैंप भी लगवाती हैं. सबसे बड़ी बात ये है कि इसके लिए वे किसी से पैसा नहीं, बल्कि अपना खुद का ही पैसा खर्च करती हैं.
जब भी इस मसले पर उनसे बात होती है, तो वे कहती हैं कि इससे मुझे बहुत सुकून मिलता है. जीनत कहतीं हैं कि जरूरतमंद लोग अब हमारे परिवार के सदस्य बन गए हैं. उन्हें भूखे कैसे छोड़ सकते हैं. लॉकडाउन में भी उन्होंने सैकड़ों लोगों को भोजन दिया था.
डबल एमए और बीएड तक शिक्षा हासिल कर चुकीं जीनत जीशान खान बताती हैं कि इस काम के लिए तीन लोगों की टीम बनाई है, जो हर दिन आगरा, एटा, कासगंज व आसपास के जिलों की मलिन बस्तियों में जाकर सर्वे करती है.
वहां जाकर देखती है कि उन्हें किस चीज की जरूरत है, खाना तो हमारी संस्था वितरित करती ही है. इसके अलावा देखते हैं कि बच्चे स्कूल जाते हैं या नहीं, तो जो बच्चे स्कूल नहीं जाते उन्हें आसपास के स्कूलों में दाखिला दिला दिया जाता है.
इसका खर्चा भी हमारी पहल संस्था ही उठाती है. इसी तरह से मेडिकल कैंप में डॉक्टरों की टीम जाती है, जो हर मर्ज के मरीजों को देखकर उन्हें परामर्श देती है. दवाएं भी हम देते हैं और जो मरीज भर्ती होने लायक लगता है, उन्हें एफएच मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराते हैं.
जीनत जीशान खान बताती हैं कि संस्था की शुरुआत 2014 में हुई, तब से लेकर अब तक बहुत से मेडिकल कैंप लगवाए हैं. 150 से ज्यादा बच्चों को स्कूल में एडमिशन दिलवा दिया है. रही बात खाने की, तो ये हमारा निरंतर काम है, जिसका मैं प्रचार नहीं करना चाहती. उन्होंने कहा कि हम पर्यावरण के लिए भी काम करते हैं. जगह-जगह जाकर पौधे लगवाते हैं. पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करते हैं. सेमिनारों का आयोजन करते हैं. पहल संस्था के लिए काम करने वाले मोहम्मद आमिल बताते हैं कि गरीब बस्तियों में जाकर बच्चों को खाना खिलाया जाता है. गरीबों को खाने के लिए भटकना नहीं पड़ता. भोजन की व्यवस्था हो जाती है.
जीनत जीशान बताती हैं कि दरगाह के बाहर बैठे एक भिखारी बच्चे ने कहा था कि उसे पैसे नहीं भोजन चाहिए. इस पर उन्होंने ठान लिया कि वे जरूरतमंदों के लिए कुछ करेंगी, तभी से भोजन की व्यवस्था कर रही हैं.
उन्होंने कहा कि समाज के हर सक्षम व्यक्ति को उनकी मदद के लिए आगे आना चाहिए. उन्होंने कहा कि लोग अपने या अपने बच्चों के जन्मदिन पर बहुत पैसा खर्च करते हैं. इस शुभ अवसर पर भूखे लोगों को खाना लिखा देंगे, तो आपके बच्चों को दुआएं मिलेंगी.