मु‍फलिसी को डिफेंड कर ओलंपिक तक पहुंची निशा वारसी

Story by  शाहनवाज़ आलम | Published by  [email protected] | Date 07-08-2021
मु‍फलिसी को डिफेंड कर ओलंपिक तक पहुंची निशा वारसी
मु‍फलिसी को डिफेंड कर ओलंपिक तक पहुंची निशा वारसी

 

गरीबी ने खेल और जिंदगी के हर चौखट पर लिया इम्तिहान
 


शाहनवाज आलम /  सोनीपत (हरियाणा)
 
जापान के शहर टोक्‍यो में चल रहे ओलंपिक -2021 में भारत की महिला हॉकी टीम पदक जीतने के कगार पर है. अब तक के प्रतियोगिता में बतौर डिफेंडर खेल रही 26 साल की निशा वारसी जिंदगी की बाधा को दूर करते हुए सोनीपत (हरियाणा) के दो कमरे के घर से टोक्‍यो तक का सफर तय किया है.
 
मु‍फलिसी से निकलकर दुनिया के फलक पर छाने वाली निशा भले ही आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हो, लेकिन गरीबी ने खेल और जिंदगी के हर चौखट पर इम्तिहान लिया है. अपने हिम्‍मत और जज्‍बे से बाधाओं को डिफेंड करते हुए लक्ष्‍य को गोल करने वाली निशा आज हजारों लड़कियों के लिए प्रेरणा है.
 
शब्‍दों में तहजीब और तमीज को समेटकर बोलने वाली निशा को समाज के दकियानूसी सोच का भी सामना करना पड़ा और एक मोड़ पर गरीबी और समाज के तानों से तंग आकर खेल छोड़ने का मन बना लिया, लेकिन निशा को अपने ऊपर भरोसा था और जज्‍बा था बंदिशों को तोड़ने की। जिसके कारण आज वह इस मुकाम को हासिल कर सकी है. टीम में बेहतर प्रदर्शन पर हरियाणा सरकार ने पांच लाख रुपये का इनाम दिया है.
 
निशा के पिता सोहराब अहमद पेशे से दर्जी का काम करते थे, लेकिन 2015 में लकवा मारने की वजह से काम छूट गया और परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया। परिवार चलाने के लिए उसकी मां महरून ने एक फोम के कारखाने में काम किया और किसी तरह से इलाज के साथ सभी की जरूरतें पूरी की.
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निशा कहती है, जिंदगी आसान नहीं थी। मेरी हमेशा से रूचि खेल में थी, लेकिन घर में खाने के लाले पड़ते थे. वैसे में खेल और कोचिंग पर खर्च करना मुश्किल था। हॉकी को इसलिए चुना था क्‍योंकि इसमें किसी तरह के इक्विपेंट नहीं खरीदना पड़ा था.
 
अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताते हुए कहती है, ट्रेनिंग ग्राउंड घर से करीब आधे घंटे की दूरी पर था. इसके लिए सुबह साढ़े चार बजे जाना पड़ता था. घर से अकेले जाने में डर लगता था, किसी तरह हिम्‍मत करके जाती थी. मैं सुबह टाइम पर जा सकूं, इसके लिए अम्‍मी सुबह चार बजे उठती थी. नाश्‍ता बनाती थी और मुझे उठाती थी। मुसीबतों के बीच अम्‍मी-अब्‍बू दोनों प्रैक्टिस के लिए भेजती थी.
 
निशा के खेल को सुधारने का श्रेय कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स की पदक विजेता प्रीतम रानी सिवाच को जाता है. सोनीपत के सिवाच अकादमी में निशा ने खेल के बारीकियों के साथ जिंदगी जीने का हौंसला भी सीखा। खेल में सुधार के कारण पहले हरियाणा टीम में जगह मिली और फिर राष्‍ट्रीय स्‍तर पर खेलने का मौका मिला। खेल की वजह से रेलवे में नौकरी मिल गई. 2018 में इंडियन कैंप के लिए चयन हुआ, और एक साल बाद 2019 में अंतरराष्‍ट्रीय मुकाबले के लिए मैदान में उतरी. अब तक वह नौ इंडिया कैप्‍स हासिल कर चुकी है। यह कैप बेहतरीन प्रदर्शनकरने वाले खिलाड़ी को दिया जाता है.
 
हॉकी कोच सिवाच का कहना है, निशा की डिफेंडिंग तकनीक बेहतर है और वह दूसरे खिलाडि़यों से कॉर्डिनेशन बना लेती है. टीम भावना और खेल के प्रति समर्पन के कारण निशा आज दुनिया के सबसे बड़े खेल का हिस्‍सा है.