नई दिल्ली. इंफोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने एक बार फिर सप्ताह में 70 घंटे काम करने की बात दोहराते हुए युवाओं से देश के विकास के लिए कड़ी मेहनत करने की अपील की है.
मूर्ति ने सबसे पहले साल 2023 में देश के विकास को बढ़ावा देने के लिए 70 घंटे काम करने के विचार का सुझाव दिया था. हालांकि, कई लोगों और कुछ डॉक्टरों ने उनकी आलोचना की, लेकिन ओला के सीईओ भाविश अग्रवाल सहित कई लोगों ने इसकी सराहना भी की थी.
मूर्ति ने हाल ही में कोलकाता में एक कार्यक्रम में कहा कि युवा पीढ़ी को यह एहसास होना चाहिए कि उन्हें "कड़ी मेहनत करनी है और देश को नंबर एक बनाने की दिशा में काम करना है". उन्होंने भारतीयों को उत्कृष्टता के लिए प्रयास करने की आवश्यकता पर जोर दिया.
नारायण मूर्ति ने इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स के शताब्दी समारोह में आरपीएसजी ग्रुप के चेयरमैन संजीव गोयनका के साथ बातचीत में कहा, "इंफोसिस में, मैंने कहा था कि हम सर्वश्रेष्ठ बनेंगे और अपनी तुलना सर्वश्रेष्ठ वैश्विक कंपनियों से करेंगे. एक बार जब हम अपनी तुलना सर्वश्रेष्ठ वैश्विक कंपनियों से करेंगे, तो मैं आपको बता सकता हूं कि हम भारतीयों के पास करने के लिए बहुत कुछ है".
उन्होंने आगे कहा कि हमें अपनी आकांक्षाएं बड़ी रखनी होंगी क्योंकि 80 करोड़ भारतीयों को मुफ्त राशन मिलता है. इसका मतलब है कि 80 करोड़ भारतीय गरीबी में हैं. अगर हम कड़ी मेहनत करने की स्थिति में नहीं हैं, तो कौन कड़ी मेहनत करेगा?
मूर्ति ने कहा कि उन्होंने "यह महसूस किया कि एक देश गरीबी से केवल तभी लड़ सकता है जब वह ऐसे रोजगार सृजित करे जो खर्च करने लायक आय दें. उद्यमिता में सरकार की कोई भूमिका नहीं है".
उन्होंने जोर देकर कहा कि उद्यमी धन और रोजगार का सृजन कर राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा, "उद्यमी राष्ट्र का निर्माण करते हैं क्योंकि वे रोजगार के अवसर पैदा करते हैं, वे अपने निवेशकों के लिए धन सृजन करते हैं और वे करों का भुगतान करते हैं. इसलिए, यदि कोई देश पूंजीवाद को अपनाता है, तो वह अच्छी सड़कें, ट्रेनें और अच्छा बुनियादी ढांचा तैयार करेगा."
नारायण मूर्ति की यह टिप्पणी युवा भारतीयों द्वारा कार्यस्थल पर झेले जाने वाले तनाव की चिंताओं के बीच आई है, जिसके परिणामस्वरूप कई लोगों की जान चली जाती है.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने भी लंबे समय तक काम करने के गंभीर परिणामों की चेतावनी दी है जो न केवल कर्मचारियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं, बल्कि उनके व्यक्तिगत और सामाजिक संबंधों पर भी गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं.