शाहताज खान/ पुणे
जिंदगी ने जब सबा (बदला हुआ नाम) का इम्तिहान लेना शुरू किया तो उसे लगा कि वह ये जंग हार जाएगी. पति अहमद (बदला हुआ नाम) की मौत के बाद परिवार वालों ने सबा को उसको दो छोटे मासूम बच्चों के साथ घर से निकाल बाहर किया था. महाराष्ट्र के रत्नागिरि की रहने वाली सबा के पास थोड़े-बहुत पैसे थे, लेकिन हफ्ते-दस दिन के बाद उसके सामने भुखमरी की समस्या आ जाती.
लेकिन, सबा का हाथ में सिफत थी. उसको सिलाई का काम आता था. सबा जैसी महिलाओं की जिंदगी को आसान बनाने के लिए रत्नागिरि जिले के चिपलून शहर में एक ऐसी पहल हुई जिससे आज की तारीख में करीबन 25 महिलाएं अपनी जिंदगी आत्मविश्वास और आत्मसम्मान के साथ जीने की ओर बढ़ चली हैं.
चिपलून शहर के परकार कॉम्प्लैक्स में दिन भर अब सिलाई मशीनों की घर्र-घर्र आवाज आती रहती है, करीबन 25 तलाकशुदा, विधवा और बेहद गरीब महिलाएं अल हरीम टेलरिंग में सिलाई मशीनों पर आंख गड़ाए कपड़ों की शक्ल में अपनी जिंदगी सी रही होती हैं.
असल में अल हरीम टेलरिंग की स्थापना शहर के कुछ कारोबारियों, डॉक्टर और कुछ गैर-सरकारी संगठनों ने मिलकर की है. यह काम गरीब, बेसहारा, विधवा और तलाक़शुदा महिलाओं को मजबूरी और गरीबी की दलदल से बाहर निकालने के लिए शुरू किया गया था. जो महिलाएं सिलाई-कढ़ाई जानती हैं उन्होंने अपना हुनर दिखाने के लिए सिलाई मशीनें संभाल ली है.
वह स्कूल की यूनिफॉर्म, गुदड़ी, तकिए के गिलाफ, कपड़े की थैलियां, स्कार्फ इत्यादि बना रही हैं. अलहरीम ने मशीन, कच्चा माल और काम के आर्डर की पूरी जिम्मेदारी संभाली हुई है.
लेकिन दिक्कत थी कि परेशानहाल हर महिला सिलाई तो नहीं जानती थी. ऐसी महिलाओं की मदद के लिए अलहरीम किचन की स्थापना की गई. अलहरीम किचन में महिलाएं वेज और नॉन-वेज थाली तैयार करती हैं.
इब्राहिम वहाब बोबरे और उनके साथी मिलकर ऑर्डर और सामान का प्रबंध करते हैं. इब्राहीम कहते हैं, “हम सबने मिलकर इस सेंटर को तैयार किया है. यहां काम करनेवाली महिलाओं को फिलहाल चार से पांच हजार रुपए प्रति माह तक की आमदनी हो जाती है.”इब्राहीम कहते हैं, “हमलोगों ने दो से तीन माह तक के खर्चे का प्रबंध कर रखा है ताकि यहां आनेवाली महिलाओं को खाली हाथ वापस न जाना पड़े.”
आत्मसम्मान के साथ रोज़ी-रोटी कमाने का जरिया और मौका देकर इस ग्रुप ने महिलाओं को आत्मविश्वास से भर दिया है. वह पूरी ईमानदारी, समय और मेहनत से साबित कर रही हैं कि इज़्ज़त की सूखी रोटी भीख में मिले तर निवाले से कहीं बेहतर है. पिछले वर्ष कोकण के कई इलाकों में समुद्री तूफ़ान ने बहुत तबाही मचाई थी.
उस समय फर्स्ट हेल्प चेरिटेबल ट्रस्ट नाम की गैर-सरकारी संस्था ने लोगों को राहत पहुंचाने का काम किया था. जब महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का विचार आया तो कारवां फाउंडेशन और नेश के साथ मिल कर उसे हकीकत में बदलने की तरफ़ क़दम बढ़ाया. मजबूर से मजबूत बनाने का अगला कदम महिलाओं को हुनर सिखाकर आत्मनिर्भर बनाने का है.
अलहरीम की जानिब से विधवा, तलाकशुदा और गरीब महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए सिलाई और पकवान बनाने के कोर्स भी अगले महीने से शुरू करने की पूरी तैयारी की जा चुकी है.
3 और 6 माह के कोर्स में अपने काम में माहिर बनाने की पूरी कोशिश की जाएगी. कोर्स पूरा करने के बाद महिलाओं को काम शुरू करने के लिए सेंटर की तरफ़ से पूरी सहायता भी की जाएगी.
इब्राहीम कहते हैं, “वो चाहें तो इसी सेंटर पर काम करके अपने परिवार की माली हालत बेहतर बनाने में सहयोग कर सकती हैं और अगर अपना काम शुरू करना चाहें तब भी उन्हें हमारा पूरा सहयोग मिलेगा. हम उनके लिए काम के ऑर्डर लाने और तैयार सामान को मार्केट तक पहुंचाने की पूरी जिम्मेदारी संभालेंगे.”वह कहते हैं, “हमारा विश्वास है कि बादल छटेंगे सूरज निकलेगा, तेरी क़िस्मत को तू खुद बदलेगा.”
अभी अलहरीम को शुरू हुए ज़्यादा समय नहीं बीता है लेकिन उन्हें लोगों का सहयोग मिलने लगा है. काम करने के लिए जरूरतमंद महिलाएं अगर घर से निकल कर आ रही हैं तो ऐसे लोगों की भी काफ़ी बड़ी संख्या है जो अलहरीम को ऑर्डर दे रहे हैं.
सुबह होते ही गैस के चूल्हे जल उठते हैं और महिलाओं की टीम स्वादिष्ट भोजन तैयार करने में जुट जाती हैं और सिलाई मशीन की घिर्रर घिर्रर की आवाज़ें दूर तक मेसेज देती हैं, आत्मविश्वास के धागे से जिंदगी की सिलाई की जा रही है.