पाकिस्तान-अफगानिस्तान में कभी भी हो सकती है जंग, बॉर्डर की ओर बढ़ रहे तालिबानी लड़ाके

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 27-12-2024
Taliban fighters moving towards border
Taliban fighters moving towards border

 

नई दिल्ली. पाकिस्तान और अफगानी तालिबान के बीच यह विवाद उस समय गहराया, जब तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने हाल ही में वजीरिस्तान के मकीन इलाके में पाकिस्तानी सेना के 30 जवानों को मार गिराया. इसके जवाब में, पाकिस्तान ने एयरस्ट्राइक करके यह संदेश देने की कोशिश की कि वह अपने सैनिकों की हत्या बर्दाश्त नहीं करेगा.

आजतक की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ समय से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच धधक रही आग ने अब विकराल रूप ले लिया है. अफगानिस्तान पर पाकिस्तान की ओर से की गई एयरस्ट्राइक से शुरू हुआ तनाव अब बढ़ता जा रहा है. तालिबान के 15 हजार लड़ाके पाकिस्तान की ओर बढ़ रहे हैं. इस बीच खबर है कि पाकिस्तान की सेना और वायुसेना ने पेशावर और क्वेटा से सेना को तैनात कर दिया है.

सूत्रों की मानें तो पाकिस्तानी सेना की कुछ टुकड़ियां अफगान सीमा पर पहुच गई है. वहीं, अफगान तालिबान मीर अली सीमा के पास पहुंच गया है. हालांकि, अभी तक गोलीबारी का कोई संकेत नहीं मिला है लेकिन तैनाती बढ़ा दी गई है.

 

इस बीच अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने काबुल में पाकिस्तानी दूतावास के प्रभारी को तलब किया है. अफगान विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता हाफिज जिया अहमद ने इस हमले की कड़ी निंदा की और इसे दोनों देशों के संबंधों में दरार डालने का प्रयास बताया.

 

यह विवाद उस समय गहराया, जब तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने हाल ही में वजीरिस्तान के मकीन इलाके में पाकिस्तानी सेना के 30 जवानों को मार गिराया.इसके जवाब में, पाकिस्तान ने एयरस्ट्राइक करके यह संदेश देने की कोशिश की कि वह अपने सैनिकों की हत्या बर्दाश्त नहीं करेगा

अफगान तालिबान के पास भारी मात्रा में हथियार और दुर्गम इलाकों में छिपने की क्षमता है. उनके पास एके-47, मोर्टार, रॉकेट लॉन्चर जैसे आधुनिक हथियारों का विशाल भंडार है. इसके अलावा, तालिबानी लड़ाके उन पहाड़ों और गुफाओं से हमले करते हैं, जिनके बारे में पाकिस्तानी सेना को जानकारी तक नहीं है.

शहबाज शरीफ सरकार पहले से ही आर्थिक संकट, सीपैक प्रोजेक्ट में देरी और बलूचिस्तान में अलगाववाद जैसी समस्याओं से जूझ रही है. इन मुद्दों ने सरकार और सेना दोनों को कमजोर किया है. अब तालिबान के साथ टकराव ने इस संकट को और बढ़ा दिया है.

अफगान तालिबान लंबे समय से यह दिखाता आया है कि वह किसी भी बड़े सैन्य शक्ति के सामने झुकने वाला नहीं है. अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियों को उसने वर्षों तक चुनौती दी और आखिरकार उन्हें अफगानिस्तान से लौटने पर मजबूर कर दिया. पाकिस्तान के पास न तो वैसी सैन्य ताकत है और न ही आर्थिक क्षमता, जिससे वह तालिबान का सामना कर सके.

मीर अली बॉर्डर पर बढ़ती गतिविधियों के चलते पाकिस्तान ने भी अपनी सेना को अलर्ट पर रखा है. सीमाई इलाकों में सैनिकों की तैनाती तेज कर दी गई है. स्थानीय लोगों में डर का माहौल है और स्थिति किसी बड़े संघर्ष का संकेत दे रही है. तनाव बढ़ने के साथ ही यह देखना होगा कि पाकिस्तान और तालिबान के बीच यह टकराव किस ओर बढ़ता है.

तालिबान का उभार अफगानिस्तान से रूसी सैनिकों की वापसी के बाद 1990 के दशक की शुरुआत में उत्तरी पाकिस्तान में हुआ था. पश्तो भाषा में तालिबान का मतलब होता है छात्र खासकर ऐसे छात्र जो कट्टर इस्लामी धार्मिक शिक्षा से प्रेरित हों. कहा जाता है कि कट्टर सुन्नी इस्लामी विद्वानों ने धार्मिक संस्थाओं के सहयोग से पाकिस्तान में इनकी बुनियाद खड़ी की थी. तालिबान पर देववंदी विचारधारा का पूरा प्रभाव है. तालिबान को खड़ा करने के पीछे सऊदी अरब से आ रही आर्थिक मदद को जिम्मेदार माना गया.

शुरुआती तौर पर तालिबान ने ऐलान किया कि इस्लामी इलाकों से विदेशी शासन खत्म करना, वहां शरिया कानून और इस्लामी राज्य स्थापित करना उनका मकसद है. शुरू-शुरू में सामंतों के अत्याचार, अधिकारियों के करप्शन से आजीज जनता ने तालिबान में मसीहा देखा और कई इलाकों में कबाइली लोगों ने इनका स्वागत किया लेकिन बाद में कट्टरता ने तालिबान की ये लोकप्रियता भी खत्म कर दी लेकिन तब तक तालिबान इतना पावरफुल हो चुका था कि उससे निजात पाने की लोगों की उम्मीद खत्म हो गई.

तालिबान की ताकत कितनी है कि वह अफगानिस्तान की सेना पर भारी पड़ रहा? अफगानिस्तान के फर्स्ट वाइस प्रेसिडेंट कहते हैं- श्तालिबान का जल्द खात्मा होगा. उनके पास 80 हजार के करीब लड़ाके हैं और अफगानिस्तान की सेना के पास 5 से 6 लाख के बीच सैनिक. इसके अलावा अफगानिस्तान के पास वायु सेना है जो तालिबान पर भारी पड़ेगी.श् हालांकि, इस दावे के बावजूद कई ऐसे फैक्ट हैं जो जमीनी स्तर पर तालिबान को मजबूत साबित कर रहे हैं.

तालिबान का मैनपावर सोर्स कबाइली इलाकों में बसे कबीले और उनके लड़ाके हैं. इसके अलावा कट्टर धार्मिक संस्थाएं, मदरसे भी उनके विचार को सपोर्ट कर रहे हैं. लेकिन इन सबसे ज्यादा पाकिस्तानी सेना और आईएसआई की सीक्रेट मदद तालिबान के लिए मददगार साबित हो रही है. अमेरिकी खुफिया आकलन भी जमीनी हालात को साफ करते हैं जिसमें कहा गया है कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के 6 महीने के भीतर अफगानिस्तान सरकार का प्रभुत्व खत्म हो जाएगा और तालिबान का शासन आ सकता है.