वाशिंगटन. निर्वासित पूर्वी तुर्किस्तान सरकार ने थाईलैंड और तुर्किये द्वारा उइगर शरणार्थियों और शरणार्थियों को चीन निर्वासित करने की कथित योजनाओं की कड़ी निंदा की, और इस तरह की कार्रवाइयों को अंतरराष्ट्रीय कानून का सीधा उल्लंघन बताया. निर्वासित सरकार ने कहा कि निर्वासन से दोनों देश उइगर लोगों के खिलाफ चल रहे नरसंहार को सक्षम करने में भागीदार बन जाएंगे.
ईटीजीई ने कहा, ‘‘13 वर्षों से अधिक समय से, 48 उइगर शरणार्थियों को थाईलैंड में अमानवीय परिस्थितियों में अन्यायपूर्ण तरीके से हिरासत में रखा गया है. विश्वसनीय रिपोर्टें अब संकेत देती हैं कि उन्हें चीनी शासन में जल्द ही निर्वासित किया जा सकता है. इसी तरह, तुर्किये, जो कभी नरसंहार से भाग रहे उइगरों के लिए एक अभयारण्य था, दर्जनों, संभवतः कई और उइगर शरणार्थियों को हिरासत में ले रहा है और निर्वासित करने की धमकी दे रहा है, जिससे उन्हें उत्पीड़न का गंभीर खतरा है.’’
अपने बयान में, निर्वासित सरकार ने इस बात पर जोर दिया कि पूर्वी तुर्किस्तान चीन का हिस्सा नहीं है, बल्कि चीनी औपनिवेशिक कब्जे वाला एक राष्ट्र है. इसने जोर देकर कहा कि उइगरों को चीनी शासन में निर्वासित करने से उन्हें कारावास, यातना, जबरन श्रम और यहां तक कि मृत्युदंड भी भुगतना पड़ेगा. ईटीजीई ने तर्क दिया कि यह गैर-वापसी के सिद्धांत का स्पष्ट उल्लंघन होगा, जो अंतर्राष्ट्रीय शरणार्थी कानून की आधारशिला है.
निर्वासित पूर्वी तुर्किस्तान सरकार ने संयुक्त राष्ट्र और संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूरोपीय संघ और जापान सहित अन्य लोकतांत्रिक देशों से उइगर शरणार्थियों की सुरक्षा के लिए तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया. इसने उन देशों में उनके शरण और पुनर्वास की सुविधा का आह्वान किया जो उन्हें सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं.
बयान में चेतावनी दी गई कि कार्रवाई करने में विफल रहने से चीन की नरसंहार की कार्रवाइयों को बढ़ावा मिलेगा और वैश्विक शरणार्थी सुरक्षा कमजोर होगी. सरकार ने जोर देकर कहा कि इतिहास उन लोगों का कठोर न्याय करेगा, जिन्होंने निष्क्रियता या मिलीभगत के माध्यम से इन अपराधों को सक्षम किया. तत्काल हस्तक्षेप के आह्वान ने मानवीय गरिमा की रक्षा और उइगर लोगों के खिलाफ आगे के अत्याचारों को रोकने के लिए वैश्विक एकता की आवश्यकता पर प्रकाश डाला.
चीन में, विशेष रूप से झिंजियांग में उइगरों के उत्पीड़न में व्यापक मानवाधिकार हनन शामिल है, जिसमें ‘पुनः शिक्षा शिविरों’ में बड़े पैमाने पर हिरासत में लेना, जबरन श्रम और भारी निगरानी शामिल है. चीनी सरकार पर धार्मिक दमन, सांस्कृतिक विनाश और जबरन आत्मसात करने, उइगर भाषा, धार्मिक प्रथाओं और सांस्कृतिक परंपराओं को सीमित करने का आरोप लगाया गया है. रिपोर्ट में परिवारों को अलग-थलग करने, जबरन उन्हें शिक्षा देने और उइगर विरासत स्थलों को नष्ट करने का संकेत दिया गया है. अंतर्राष्ट्रीय निकायों और मानवाधिकार संगठनों ने इन कार्रवाइयों को नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराध करार दिया है, जबकि चीन इन दावों का खंडन करता है और इन्हें झूठा और चरमपंथ से लड़ने के अभियान का हिस्सा बताता है. यह स्थिति सबसे विवादास्पद वैश्विक मानवाधिकार मुद्दों में से एक बनी हुई है.