नई दिल्ली
एक अमेरिकी संघीय न्यायाधीश ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के प्रशासन द्वारा भारतीय छात्र बदर खान सूरी के निर्वासन की योजना को रोक दिया है. सूरी पर आरोप है कि उनका हमास, एक फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह से कथित संबंध है और उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से इस समूह का प्रचार किया और यहूदी विरोधी बयानबाजी की.
वर्जीनिया के एलेक्जेंड्रिया में अमेरिकी जिला न्यायाधीश पेट्रीसिया जाइल्स ने 20 मार्च को एक आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि सूरी को निर्वासित नहीं किया जाएगा, जब तक कि अदालत का कोई नया आदेश नहीं आता. यह आदेश न्यायालय द्वारा सूरी की हिरासत और निर्वासन पर चल रही सुनवाई के दौरान जारी किया गया.
होमलैंड सुरक्षा विभाग (DHS) ने सूरी पर आरोप लगाया कि उन्होंने हमास के प्रति अपनी सहानुभूति जताई और इसके लिए सोशल मीडिया पर प्रचार किया, जिसके चलते 15 मार्च को अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने निर्णय लिया कि सूरी को उनके कथित गतिविधियों के कारण निर्वासित किया जा सकता है.
बदर खान सूरी एक पोस्टडॉक्टरल फेलो हैं और जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में अलवलीद बिन तलाल सेंटर फॉर मुस्लिम-क्रिश्चियन अंडरस्टैंडिंग से जुड़े हुए हैं. वे एक अमेरिकी नागरिक से विवाहित हैं और फिलिस्तीनी मूल की उनकी पत्नी मफेज़ सालेह हैं.
सूरी की गिरफ्तारी के बाद उनकी कानूनी टीम ने दावा किया कि उनका निर्वासन उनकी पत्नी की फिलिस्तीनी पृष्ठभूमि और उनके खुद के फिलिस्तीनी समर्थक विचारों के कारण किया जा रहा है.
संघीय एजेंटों ने सोमवार रात वर्जीनिया के रॉसलिन स्थित सूरी के घर के बाहर उन्हें गिरफ्तार किया था. उनके वकील ने अदालत के आदेश का स्वागत करते हुए इसे "सूरी को उचित प्रक्रिया मिलने की दिशा में पहला कदम" बताया है.
ट्रम्प प्रशासन ने अक्टूबर 2023 में गाजा में हमास द्वारा किए गए हमले के बाद, उन व्यक्तियों को निशाना बनाने की योजना बनाई थी जिन्होंने फिलिस्तीनी समर्थक विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया था. इस संदर्भ में, हाल ही में कोलंबिया विश्वविद्यालय के छात्र महमूद खलील को भी इसी तरह के आरोपों में गिरफ्तार किया गया था और निर्वासित करने की मांग की गई थी.
अमेरिकी नागरिक अधिकार संगठनों ने ट्रम्प प्रशासन के इस कदम की आलोचना करते हुए कहा है कि यह उन नागरिकों और छात्रों को निशाना बना रहा है जो अपनी सरकार की नीतियों से असहमत हैं और इसका उद्देश्य राजनीतिक आलोचकों को डराना है.
इस घटना ने अमेरिकी राजनीति और आव्रजन कानूनों पर महत्वपूर्ण सवाल खड़े किए हैं, खासकर जब यह सवाल उठता है कि क्या किसी व्यक्ति की पहचान या विचारधारा के आधार पर उसे निशाना बनाया जा सकता है.