नई दिल्ली और तेल अवीव
गाजा पट्टी में इजरायली हवाई हमलों ने एक बार फिर दुनिया को हिलाकर रख दिया है. हाल ही में हुए हमलों में कम से कम 100 फिलिस्तीनी नागरिकों की मौत हो गई है, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं. कई अन्य लोग घायल हुए हैं और सैकड़ों लोग बेघर हो गए हैं.
यह हमला युद्धविराम के समाप्त होने के बाद हुआ है, जिसे इजरायल ने हमास द्वारा बंधकों को रिहा करने और समझौते की शर्तों का पालन न करने के कारण एकतरफा तरीके से समाप्त कर दिया.गाजा में ये हमले इजरायली सेना द्वारा किए गए, जो कि हमास के ठिकानों को निशाना बना रहे थे.
इजरायली सेना के मुताबिक, इस कार्रवाई का उद्देश्य हमास के आतंकवादी ठिकानों को नष्ट करना था. हमलों में कई क्षेत्रों, जैसे कि दीर अल-बलाह, खान यूनिस और राफा में घरों और संरचनाओं को निशाना बनाया गया. हमले की शुरुआत मध्य गाजा से हुई, और यह सुबह के समय किए गए थे.
गाजा में हुए इस ताजा हमले के बाद, वैश्विक स्तर पर तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों और देशों ने इजरायल के इस हमले की निंदा की है, जबकि कुछ ने इसे आत्मरक्षा के रूप में सही ठहराया है. संयुक्त राष्ट्र और विभिन्न मानवाधिकार संगठनों ने गाजा में नागरिकों के खिलाफ इजरायल की कार्रवाई को अनुपयुक्त और निर्दयतापूर्ण बताया है.
अल जज़ीरा के अनुसार, गाजा पट्टी में इजरायली हवाई हमलों में 100 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं. यह हमला 19 जनवरी, 2025 को हमास के साथ युद्धविराम समझौते के बाद से सबसे बड़ा हमला माना जा रहा है.
गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि अब तक 48,572 फिलिस्तीनी नागरिकों की मौत हो चुकी है और 112,032 लोग घायल हुए हैं. हालांकि, गाजा के सरकारी मीडिया कार्यालय ने मृतकों की संख्या 61,700 से अधिक बताई है, जिसमें मलबे के नीचे दबे हजारों लोगों की मौत की आशंका है.
इजरायल द्वारा की गई कार्रवाई को लेकर हमास ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. उनका कहना है कि इजरायल ने एकतरफा तरीके से युद्धविराम समझौते को तोड़ा है, और यह उनके नागरिकों के खिलाफ युद्ध अपराध है. हमास ने आरोप लगाया कि इजरायल ने गाजा में आम नागरिकों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है, जबकि उनकी सेना सिर्फ आतंकवादियों के ठिकानों पर हमला कर रही थी.
इजरायल के प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा है कि इजरायल के पास किसी भी प्रकार के सुरक्षा समझौते को आगे बढ़ाने का कोई आधार नहीं है, क्योंकि हमास ने बंधकों को रिहा करने से बार-बार इनकार किया है और प्रस्तावों को खारिज कर दिया है.इसके बाद इजरायली सेना ने गाजा में हमास के खिलाफ कड़ी कार्रवाई शुरू करने का निर्णय लिया है.
गाजा में हुई हिंसा पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया भी तीव्र रही है. संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और विभिन्न मानवाधिकार संगठनों ने गाजा में इजरायल के हमलों की कड़ी निंदा की है. यूएन के बाल एजेंसी यूनिसेफ ने इस बात का खुलासा किया कि मारे गए लोगों में कम से कम छह और आठ साल के दो बच्चे भी शामिल हैं, जो इस संघर्ष के निर्दोष पीड़ित हैं.
इस घटना के बाद, यमन में हौथियों के समर्थन में हजारों लोग सड़कों पर उतरे. हौथी लड़ाकों ने धमकी दी कि वे अमेरिकी और इजरायल से जुड़े जहाजों पर हमले जारी रखेंगे. यह हमला गाजा में इजरायल की नाकाबंदी के 16वें दिन हुआ था. अमेरिका और इजरायल ने इन हमलों को गाजा के नागरिकों के खिलाफ उनकी नीतियों के तहत किया जाने वाला "निर्दयतापूर्ण आक्रमण" करार दिया.
गाजा में चल रहे इस संघर्ष की जड़ें बहुत पुरानी हैं. 7 अक्टूबर 2023 को हमास के नेतृत्व में किए गए हमलों में इजरायल के 1,139 नागरिकों की मौत हो गई थी, और 200 से अधिक को बंदी बना लिया गया था. उसके बाद से गाजा में इजरायल के हमलों में फिलिस्तीनियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इजरायल ने अपने इन हमलों को अपनी सुरक्षा के दृष्टिकोण से उचित बताया है, जबकि फिलिस्तीनियों ने इसे अत्याचार करार दिया है.
गाजा पट्टी में जारी हिंसा के बाद वैश्विक स्तर पर यह चिंता बढ़ गई है कि यदि यह संघर्ष यूं ही जारी रहा, तो न केवल क्षेत्रीय, बल्कि वैश्विक सुरक्षा पर भी गंभीर प्रभाव पड़ेगा. इजरायल-हमास संघर्ष के कारण अब तक कई देशों ने इसके समाधान के लिए मध्यस्थता की कोशिशें की हैं, लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका है.
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि दोनों पक्षों के बीच बातचीत की राह नहीं खुली तो यह संघर्ष और भी भयंकर रूप ले सकता है. वैश्विक नेताओं ने इस संघर्ष को समाप्त करने के लिए शांति वार्ता की आवश्यकता पर जोर दिया है, लेकिन फिलहाल कोई ठोस समाधान दिखाई नहीं दे रहा है.
गाजा पट्टी में इजरायली हमलों में 100 से अधिक फिलिस्तीनी नागरिकों की मौत ने एक बार फिर से इस क्षेत्र में संघर्ष और हिंसा के नए दौर की शुरुआत की है. यह संकट न केवल मध्य-पूर्व, बल्कि समूचे विश्व के लिए चिंता का विषय बन चुका है.अब देखना यह होगा कि क्या वैश्विक समुदाय इस हिंसा को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठा पाएगा, या यह संघर्ष और बढ़ेगा.