आवाज द वॉयस/ नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि पश्चिम बंगाल सरकार महिला डॉक्टरों को नाइट शिफ्ट में काम करने से नहीं रोक सकती. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ जिसमें न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल थे, ने यह टिप्पणी तब की जब उसे पश्चिम बंगाल सरकार के उस फैसले के बारे में बताया गया जिसमें महिलाओं को नाइट शिफ्ट और 12 घंटे से अधिक काम करने से रोकने की बात कही गई है.
कोर्ट ने यह टिप्पणी उस समय की जब वह पश्चिम बंगाल के कोलकाता में सरकारी आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या के मामले में स्वप्रेरणा से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार की उस अधिसूचना पर सवाल उठाया जिसमें महिलाओं को नाइट ड्यूटी करने से रोक दिया गया है और महिला डॉक्टर 12 घंटे से अधिक शिफ्ट में काम नहीं कर सकती हैं.
हालांकि पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि वे इसे हटा देंगे. पश्चिम बंगाल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने यह भी कहा कि यह अस्थायी है और हाल ही में उठाए गए सुरक्षा उपायों का हिस्सा है. शीर्ष अदालत ने कहा कि महिलाएं रियायत नहीं, बल्कि समान अवसर चाहती हैं और महिला डॉक्टर हर परिस्थिति में काम करने को तैयार हैं.
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि महिला डॉक्टरों को सुरक्षा प्रदान करना राज्य का कर्तव्य है. इस बीच, वरिष्ठ अधिवक्ता सिब्बल ने शीर्ष अदालत को बताया कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आश्वासन दिया है कि काम पर लौटने वाले डॉक्टरों के खिलाफ कोई दंडात्मक या प्रतिकूल कार्रवाई नहीं की जाएगी. सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी के इस्तीफे की मांग करने वाले एक वकील और उनके आवेदन पर नाखुशी जताई और कहा कि यह कोई राजनीतिक मंच नहीं है. जब वकील ने अपनी दलीलें जारी रखीं, तो शीर्ष अदालत ने चेतावनी दी कि वह उन्हें अदालत से हटा देंगे.
"यह कोई राजनीतिक मंच नहीं है," अदालत ने कहा और आगे कहा कि किसी को कानूनी अनुशासन के नियमों का पालन करना होगा. शीर्ष अदालत ने कहा, "हम यहां यह देखने के लिए नहीं हैं कि आप किसी राजनीतिक पदाधिकारी के बारे में क्या सोचते हैं." सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि पीड़िता का नाम और फोटो विकिपीडिया प्लेटफॉर्म पर मौजूद है. शीर्ष अदालत ने विकिपीडिया को पिछले निर्देश का पालन करने और अपने प्लेटफॉर्म से पीड़िता की पहचान हटाने का निर्देश दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की गरिमा बनाए रखने के हित में, शासन का सिद्धांत यह है कि बलात्कार पीड़िता की पहचान का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए.