तौसीफ रज़ा
लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम आ गए हैं और यह दिखा दिया है कि लोकतांत्रिक प्रणाली चुनावी राजनीति का सबसे सुंदर रूप क्यों है. यह प्रणाली समाज के हर वर्ग को प्रतिनिधित्व देती है. चाहे वह किसी भी जाति, वर्ग या धर्म से हो. चुनाव परिणामों ने एक सुखद आश्चर्य दिया है, जिसमें लोगों ने अल्पसंख्यक समुदायों की प्रगतिशील महिलाओं को भी मौका दिया है. खासकर मुस्लिम समुदाय से.इस चुनाव में देश के सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश में भारी उतार-चढ़ाव देखा गया.
सबसे दिलचस्प जीतों में से एक कैराना लोकसभा सीट से आई, जहां समाजवादी पार्टी ने 27 वर्षीय इक़रा हसन को अपना उम्मीदवार बनाया. इक़रा ने बीजेपी के प्रदीप कुमार को 69,116 वोटों से हराया.इक़रा का परिवार पिछले 40 वर्षों से राजनीति में है. उनके दादा अख़्त हसन ने 1984 में कांग्रेस के टिकट पर कैराना से चुनाव लड़ा और जीते . सांसद बने. उन्होंने उस समय बसपा सुप्रीमो मायावती को हराया था.
मायावती पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रही थीं. बाद में, उनके पिता मुनव्वर हसन ने परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया और 1996 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसद चुने गए. 2008 में एक सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई.
मुनव्वर हसन की मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी तबस्सुम हसन ने 2009 में बसपा टिकट पर कैराना लोकसभा सीट से चुनाव जीता. तबस्सुम ने 2018 में बीजेपी सांसद हुकुम सिंह की मृत्यु के बाद हुए उपचुनाव में भी विजय प्राप्त की. इक़रा के बड़े भाई नाहिद हसन तीन बार विधायक रहे हैं. उन्होंने 2022 में जेल से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीते.
गैंगस्टर एक्ट के तहत उनके बड़े भाई की गिरफ्तारी इक़रा के जीवन में टर्निंग पॉइंट बन गई. उन्होंने चुनाव में अपने भाई की जीत सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी ली. इक़रा हसन ने नई दिल्ली के क्वीन मैरी स्कूल से पढ़ाई की है. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर विमेन से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की है. इसके अलावा, उन्होंने लंदन के SOAS विश्वविद्यालय से कानून की भी पढ़ाई की है.
इक़रा का कहना है कि उनके पिता की मृत्यु के बाद राजनीति में बदलाव आया . सांप्रदायिक मुद्दे सबसे बड़े मुद्दे बन गए. चुनाव में कुल 5 लाख 28 हजार 13 वोट पाने और सबसे युवा सांसदों में से एक बनने के बाद, अब इक़रा अपने निर्वाचन क्षेत्र के लाखों युवाओं की उम्मीदों और आकांक्षाओं को पूरा करने की जिम्मेदारी संभालती हैं और लाखों लोगों के लिए एक आदर्श बनकर उभरी हैं.
सजदा अहमद का मामला भी कुछ ऐसा ही है, जो पश्चिम बंगाल के उलुबेरिया लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (TMC) की उम्मीदवार थीं. सजदा ने बीजेपी के अरुण उदयपाल चौधरी को करारी शिकस्त दी. सजदा अहमद ने 7 लाख 24 हजार 622 वोट हासिल किए, जबकि अरुण उदयपाल चौधरी को 5 लाख 5 हजार 949 वोट मिले. सजदा मलिक ने 2019 के लोकसभा चुनावों में भी बीजेपी के जॉय बनर्जी को हराया था.
62 वर्षीय सजदा अहमद ने 1983 में कोलकाता विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने अपने पिता सुल्तान अहमद का समर्थन किया. उनकी विरासत को संभाला. अपने पिता की मृत्यु के बाद, सजदा अहमद ने 2018 में हुए उपचुनाव में पहली बार लोकसभा चुनाव जीता और तब से उन्होंने उलुबेरिया लोकसभा सीट को बरकरार रखा है.
सजदा अहमद उलुबेरिया के पूर्व दो बार के सांसद और टीएमसी के प्रमुख मुस्लिम चेहरे सुल्तान अहमद की विधवा हैं, जिनका 4 सितंबर 2017 को हृदय गति रुकने से निधन हो गया था.सजदा ने नामांकन भरने से पहले एक साक्षात्कार में कहा था,"बहुत पहले, मेरे पति ने मुझे राजनीति में शामिल होने के लिए कहा था. लेकिन मैंने मना कर दिया था.
परिवार में पहले से ही दो राजनीतिज्ञ थे और मेरे पास बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी थी. मैंने प्रचार नहीं किया हो सकता है, लेकिन मैं अपने पति के 30 साल के राजनीतिक करियर के दौरान उनके साथ हमेशा परछाई की तरह रही हूं. इतने सालों बाद, आज जब मैं इस चुनाव में उतरूंगी, तो यह उनकी इच्छा को पूरा करने का एक तरीका होगा.”
ऐसी प्रगतिशील महिलाओं का संसद में शामिल होना निश्चित रूप से अल्पसंख्यकों की रुचि को बढ़ावा देगा और निश्चित रूप से भारत की छवि को सबसे विविधतापूर्ण लोकतंत्र के रूप में विश्व में मजबूती देगा.