शाहताज बेगम खान
‘पीरियड्सः शर्म नहीं, शर्म नहीं.’ यह सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि एक आंदोलन का नाम है. जो डॉ. सानिया सिद्दीकी की सोच और चिंता का नतीजा है. इसके पीछे की कहानी बताते हुए उन्होंने कहा, ‘‘मेरे क्लीनिक में आने वाली अधिकांश महिलाएं समान चिंताओं को साझा करती हैं. उन चिंतित माताओं को अपनी 12-13 वर्षीय बेटी के यौवन की ओर अग्रसर होने के साथ ऋतुस्राव (माहवारी) की मूल बातें समझ में नहीं आती हैं और यह भी कि आवश्यक जानकारी पर कैसे चर्चा करें.
डॉ. सानिया सिद्दीकी ने कहा, ‘‘मुझे जल्द ही एहसास हुआ कि मासिक धर्म यानी पीरियड्स के बारे में बात करने की सख्त जरूरत है.’’ फिर वह दुनिया की आधी आबादी, महिलाओं की आवाज बन गईं इस संदेश के साथ कि पीरियड्सः शर्म नहीं, शर्म नहीं.
इस नारे के साथ मासिक धर्म के प्रति जागरुकता अभियान को आंदोलन में बदलने वाली डॉ. सानिया सिद्दीकी अब पुणे में नहीं, बल्कि देश में किसी परिचय की मोहताज हैं. वह कहती हैं कि हम दृढ़ता से मानते हैं कि मासिक धर्म केवल महिलाओं का मुद्दा नहीं है, बल्कि, यह एक मानवीय मुद्दा है और इसलिए इस विषय पर दोनों लिंगों को संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है.
उन्होंने बतााया कि इसी सोच और सरोकार से उनकी प्रेरणा का ही परिणाम था कि 2018 में, हमजोली फाउंडेशन की स्थापना की गई, जो समाज के सभी वर्गों में युवा लड़कियों, महिलाओं और पुरुषों के बीच मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता के लिए समर्पित एक गैर सरकारी संगठन है. मैं जागरूकता पैदा करने के लिए काम कर रही हूं.
आवाज-द वॉयस से बात करते हुए डॉ. सानिया सिद्दीकी ने कहा कि इस विषय को इस हद तक छुपा कर रखा गया है कि अक्सर मांएं भी अपनी बेटियों से इस मुद्दे पर बात करने से झिझकती हैं और उन्हें भी संकेतों की जरूरत होती है.
वर्ष 2018 में स्थापित हमजोली फाउंडेशन ने महिलाओं के मासिक विशेष दिनों और महिलाओं के स्वास्थ्य पर एक पेशेवर चर्चा शुरू की. उनके जागरूकता अभियान को कई समान विचारधारा वाले लोगों का समर्थन और सहयोग मिला है. अब तक दस अलग-अलग शहरों में लगभग दस से अधिक शहरों में आयोजन कर चुकी है. 400 जागरुकता सत्रों में, उन्होंने हजारों महिलाओं को मासिक धर्म और स्वच्छता के बारे में बुनियादी जानकारी प्रदान की है.
मासिक धर्म क्यों जरूरी है?
मासिक धर्म महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिससे एक नई पीढ़ी का जन्म होता है. फिर भी इतने महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करना आज भी अनैतिक माना जाता है. लाखों-करोड़ों लड़कियां बचपन से गुजर जाती हैं और बिना किसी तैयारी के यौवन में प्रवेश कर जाती हैं. घर में मां या बड़ी बहन भी लड़की के पहले मासिक धर्म शुरू होने पर मासिक धर्म की बात करती हैं.
डॉ. सानिया कहती हैं कि जब हम बच्चियों से बात करते हैं, तो अक्सर पाते हैं कि वे अपना पहला अनुभव भूली नहीं हैं. उस समय मासूम और जवान बच्चियों ने जो दर्द, डर और तकलीफें झेलीं. उनके मन और मस्तिष्क पर इसने हमेशा के लिए अपनी छाप छोड़ी है.
उनका मानना है कि अगर लड़कियों को बुनियादी जानकारी समय पर मुहैया करा दी जाए, तो उन्हें मासिक धर्म की प्राकृतिक प्रक्रिया को समझने में आसानी होगी कि यह उनके जीवन का अहम हिस्सा है. पूर्व सूचना के कारण वे किसी मानसिक दबाव के शिकार नहीं होंगे
पीरियड्स में कैसी शर्म?
डॉ. सानिया सिद्दीकी का कहना है कि हम मासिक धर्म और प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में लोगों को जानकारी देते हैं. हमारी कोशिश है कि इस संबंध में महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों को भी बुनियादी जानकारी मुहैया कराई जाए. लोग आज भी खुलकर बात करने से झिझकते हैं, लेकिन अब चीजें बदल रही हैं.
वह बताती हैं कि सिर्फ सैनिटरी पैड के इस्तेमाल को बढ़ावा देना ही काफी नहीं है. स्वच्छता का मतलब सिर्फ सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करना नहीं है. कपड़े पहनना, सैनिटरी पैड को समय-समय पर बदलना, अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह धोना, कागज में लपेटना और पैड आदि के इस्तेमाल के बाद उन्हें कूड़ेदान में फेंकना भी हमारी बातचीत का हिस्सा है.
ज्यादातर महिलाएं पीरियड्स के दौरान नहाना छोड़ देती हैं. इस समय उन्हें सामान्य दिनों से भी ज्यादा साफ-सफाई की जरूरत होती है. उन्हें न नहाने की सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ना बहुत मुश्किल होता है.
डॉ. सानिया कहती हैं कि जब हम स्कूलों में लड़कियों से बात करने जाते हैं, तो हम लड़कियों की मांओं से भी मिलते हैं, क्योंकि हम मानते हैं कि बदलाव घर के अंदर से आता है, न कि हमारे या सरकार जैसे एनजीओ से.
स्वास्थ्य विज्ञान और हमारी जिम्मेदारी
डॉ सानिया सिद्दीकी ने आवाज-द वॉयस से कहा कि ज्यादातर लड़कियां पीरियड्स के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होती हैं और घर में भी खुलकर चर्चा न होने के कारण इस दौरान होने वाली परेशानियों के बारे में किसी को बता नहीं पाती हैं.
कभी उनकी साफ-सफाई तो कभी उनके पीरियड्स की अनियमितता उन्हें परेशान करती है. यही एहतियात है और छोटी-छोटी समस्याएं धीरे-धीरे बीमारी का रूप ले लेती हैं. अक्सर यही अनभिज्ञता गंभीर बीमारियों का रूप ले लेती है. वे पॉलीसिस्टिक डिम्बग्रंथि सिंड्रोम की शिकार हो जाती हैं. अगर लड़कियों को होने वाली समस्याओं का समय पर इलाज किया जाए, तो डॉक्टर की सलाह से इन छोटी-मोटी समस्याओं को बहुत आसानी से दूर किया जा सकता है.
चुप्पी तोड़नी होगी
लड़कियों के यौवन में प्रवेश करने पर हर महिला के शरीर में बदलाव आते हैं, जिसमें महिलाओं की प्रजनन क्षमता का सक्रिय होना और मासिक धर्म की प्राकृतिक प्रक्रिया का शुरू होना महत्वपूर्ण है.
डॉ. सानिया का कहना है कि हम लोगों को केवल मौखिक जानकारी ही नहीं देते हैं, बल्कि उन्हें एक किट, जरूरी सामान का एक डिब्बा भी देते हैं, जिसमें सैनिटरी पैड, अंडरवियर, साबुन, तीन से छह महीने तक इस्तेमाल किए गए पैड शामिल होते हैं. यह सामग्री उर्दू, हिंदी और मराठी में, कहानी के रूप में होती है.
टावाज-द वॉइस को डॉ. सानिया ने बताया कि हम कोशिश करते हैं कि उन्हें सैनिटरी नैपकिन की सफाई और इस्तेमाल करना सिखाएं और अब स्कूलों में भी लड़कियों के लिए सैनिटरी नैपकिन मुहैया कराया जाता है.
वह इसे एक सकारात्मक कदम मानती हैं. हालांकि, वह अपनी चिंता व्यक्त करती हैं और कहती हैं कि तमाम कोशिशों के बावजूद आंकड़े बताते हैं कि केवल बारह फीसदी महिलाएं ही सैनिटरी पैड, टैम्पोन, मेंस्ट्रुअल कप आदि का इस्तेमाल कर रही हैं.
डॉ. सानिया सिद्दीकी के मुताबिक, हिजफान ने महिला स्वच्छता में एक सर्टिफिकेट कोर्स भी शुरू किया है, जिसमें स्कूल के शिक्षक, कॉलेज के छात्र और कई गंभीर लोग रुचि ले रहे हैं और बड़ी संख्या में हमजोली फाउंडेशन जैसे लोगों ने एक मजबूत टीम का गठन कर लोगों को जगाने की कोशिश की है.
यह युद्ध अकेले नहीं लड़ा जा सकता
डॉ. सानिया सिद्दीकी का कहना है कि हम जैसी तमाम संस्थाएं लोगों को जागरूक तो कर ही सकती हैं, लेकिन सुविधाएं देने की जिम्मेदारी सरकार और प्रशासन की होती है. वह कहती हैं कि स्कूली पाठ्यक्रम में मासिक धर्म की विस्तृत जानकारी दी जाए, तो बच्चे इसमें जानकारी हासिल कर सकते हैं. समय हैं, लेकिन स्पष्ट, सरल और आसान भाषा में, इस जानकारी को स्पष्ट रूप से पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए.
शौचालय, पानी की सुविधा, कूड़ेदान आदि की उपलब्धता जैसी बुनियादी सुविधाओं का प्रावधान न होने के कारण लड़कियां हर महीने स्कूल से अनुपस्थित रहती हैं और कई लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं.
डॉ. सानिया सिद्दीकी सरकार और स्कूल प्रशासन से इस पहलू पर विशेष ध्यान देने का अनुरोध करती हैं. उनका कहना है कि हमें मासिक धर्म के बारे में किसी भी तरह से जानकारी देने की जरूरत है. मासिक धर्म शुरू होने के बाद नहीं, बल्कि लड़कियों के यौवन तक पहुंचने से पहले. प्रावधान किया जाना चाहिए. देने के लिए. ताकि लड़कियां स्वस्थ जीवन जी सके.हम अपनी तरफ से यह प्रयास कर रहे हैं
कड़ी मेहनत और प्रशंसा
डॉ सिद्दीकी ने हिंदी और उर्दू में युवा लड़कियों के लिए अनूठी अवधि की शिक्षा पुस्तकें लिखी हैं, जो कहानी के रूप में हैं और मासिक धर्म के सभी पहलुओं को आसान और मजेदार तरीके से समझाती हैं.
भारतीय सेना, श्रीनगर रेजीमेंट (चिनार कॉर्प्स) द्वारा अपने ‘मिशन सद्भावना’ के तहत युवा लड़कियों के बीच बड़े पैमाने पर वितरण के लिए उर्दू पुस्तक का चयन किया गया है. कई स्कूल भी इस पुस्तक का उपयोग अपने शिक्षकों और छात्रों को पढ़ाने के लिए कर रहे हैं.
वर्ष 2022 में मासिक धर्म और स्वच्छता पर सबसे अधिक सत्र आयोजित करने के लिए इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया गया था. वह देश के कई प्रमुख प्रिंट और ऑनलाइन मीडिया प्लेटफॉर्म पर अपने आंदोलन को लेकर अतिथि बनती रहती हैं. उसे अक्सर विभिन्न एफएम चौनलों और टॉक शो में मासिक धर्म और स्वच्छता के बारे में बात करने के लिए आमंत्रित किया जाता है.
उन्हें इस क्षेत्र में उनके अनुकरणीय कार्य के लिए बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अवार्ड, वुमन ऑफ इन्फ्लुएंस अवार्ड, एक्सीलेंस अवार्ड और ट्रेलब्लेजर ऑफ द ईयर अवार्ड से सम्मानित किया गया है.