विज्ञान और तकनीक में अपना योगदान दे रही मुस्लिम महिलाएं

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 08-05-2023
विज्ञान और तकनीक में अपना योगदान दे रही मुस्लिम महिलाएं
विज्ञान और तकनीक में अपना योगदान दे रही मुस्लिम महिलाएं

 

जतिन बरनवाल/ नई दिल्ली 

आज के वक्त में जैसे-जैसा शिक्षा का स्तर बढ़ रहा है, कई मुस्लिम महिलाएं हैं जिन्होंने एजुकेशन के दम पर विज्ञान और तकनीक में ऊंचे मुकाम हासिल किए हैं. आइए जानते है ऐसी 5 मुस्लिम महिलाओं के बारे में जो विज्ञान और तकनीक में अपना योगदान दे रही हैं. इनमें पहला नाम है समीना शाह का. समीना शाह - Thomson Reuters, न्यूयॉर्क में  Senior Research Scientist हैं. उन्हें 2009 के गूगल इंडिया वीमेन इन इंजीनियरिंग अवॉर्ड मिल चुका है.
 
 
शाह ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में बड़े पैमाने पर काम किया है. उन्होंने computerized cognitive सीखने के लिए Algorithm पेश किया है जिसे उन्होंने और उनकी टीम ने IIT दिल्ली में डेवलप किया है.
 
 
अफीफा मरियम भारत की पहली मुस्लिम महिला न्यूरोसर्जन हैं. मरियम हैदराबाद में दसवीं कक्षा में गोल्ड मेडलिस्ट रही. इसके अलावा इन्होंने सिर्फ 27 साल की उम्र में ही सर्जरी में सबसे highest degree अपने नाम किया और खुद कई कई लड़कियों के लिए मोटिवेशन बनीं. 
 
फराह हुसैन भारत की दूसरी महिला हैं जिन्होंने यूपीएससी जैसी कठिन परीक्षा पास की.  फराह राजस्थान के झुझनूं की रहने वाली है और इन्होंने ये उपलब्धि सिर्फ 26 साल में अपने नाम की. बुशरा अतीक - अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की छात्रा बुशरा को 2020 में भारत के सबसे प्रतिष्ठित विज्ञान पुरस्कार शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार मिला. उन्हें यह पुरस्कार मेडिकल साइंस के क्षेत्र में उनके अहम योगदान के लिए दिया गया.
 
खुशबू मिर्जा उत्तर प्रदेश के अमरोहा शहर की रहने वाली है. खुशबु अमरोहा चांद पर जाने वाली महिला के रूप में जानी जाती हैं. खुशबू मिर्जा इसरो में वैज्ञानिक एफ निदेशक-स्तर के पद पर है और चंद्रयान 1और चंद्रयान 2मिशनों की टीमों का हिस्सा भी रह चुकी हैं.
 
उत्तर प्रदेश में बहुत से लोग सोचते हैं कि वह चांद पर गई थीं और इसीलिए उनको मून गर्ल कहा जाता है. इन सारी महिलाओं ने पढ़ाई लिखाई के जरिए जिंदगी में ऊंचाइयां हासिल की हैं. जाहिर है सिर्फ तालीम ही महिलाओं की स्थिति का बदल सकता है.