विदुषी गौड़ / नई दिल्ली
दक्षिण कश्मीर की एक दृढ़ निश्चयी महिला ने समाज के पूर्वाग्रहों और रूढ़ियों को तोड़कर कश्मीर में बदलाव की लहर ला दी है. तबस्सुम एक वकील हैं, जो एडवोकेट सिबगात के नाम से लोकप्रिय हैं. वह न केवल अदालत के अंदर कानूनी लड़ाई लड़ती हैं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर की पंजा वादक भी हैं. तबस्सुम ने महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करके और उन्हें उज्जवल भविष्य की ओर मार्गदर्शन देकर उन्हें सशक्त बनाया है.
तबस्सुम का सफर आसान नहीं था. उनका जन्म ऐसे स्थान पर हुआ था, जो कभी आतंकवाद का गढ़ था. सोपोर के निकट तुजार शरीफ गांव में जन्मी तबस्सुम ने बहुत छोटी उम्र में (2012 में) अपनी मां को खो दिया था. इसके बाद पूरे परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी तबस्सुम के कंधों पर आ जाती है. उन्होंने समाज की आपत्तियों के बावजूद अपने पिता से पुनर्विवाह करने का आग्रह किया. इसके बाद तबस्सुम और उसके भाई ने अपनी सच्ची मां को पूरे दिल से गले लगा लिया.
उन्होंने कहा, ‘‘हमारा समाज दूसरी शादी के विचार को आसानी से स्वीकार नहीं करता, लेकिन मैंने अपने पिता को दूसरी शादी करने के लिए मजबूर किया. हमने अपनी सौतेली माँ को अपना माना उन्होंने भी हमें स्वीकार किया.’’
सामाजिक मानदंडों को चुनौती देने में इस विश्वास ने आज तबस्सुम को एक मजबूत महिला बना दिया है. उनकी दिवंगत मां अपनी बेटी को काले कोट में वकील के रूप में देखना चाहती थीं, इसलिए तबस्सुम ने अपनी मां के सपने को पूरा करने के लिए कानून का क्षेत्र चुना. अब श्रीनगर उच्च न्यायालय की अधिवक्ता के रूप में उन्होंने अपना जीवन लोगों, विशेषकर महिलाओं में कानूनी जागरूकता पैदा करने के लिए समर्पित कर दिया है.
तबस्सुम ने कहा, ‘‘हमारे समाज में महिलाओं को सदैव दोयम दर्जे का स्थान दिया गया है. महिलाओं को पहले अपने पिता और फिर अपने पति के प्रभुत्व में रहना सिखाया जाता है. ऐसा क्यों हो रहा है?’’ उन्होंने कहा, ‘‘महिलाओं को अपने जीवन पर नियंत्रण होना चाहिए और अपने निर्णय स्वयं लेने में सक्षम होना चाहिए.’’
अपनी कानूनी प्रैक्टिस के माध्यम से, वह महिलाओं को उनके अधिकारों के बारे में शिक्षित करती हैं और सलाह देती हैं. उन्होंने उन्हें अपने लिए खड़े होने और अन्याय से लड़ने के लिए भी प्रोत्साहित किया.
अपने कानूनी करियर के अलावा, तबस्सुम एक राष्ट्रीय स्तर की पंजा खिलाड़ी भी हैं. उन्होंने 75 किग्रा और 95 किग्रा वर्ग में प्रतिस्पर्धा की. अपनी लगन और कौशल के कारण उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कई पदक जीते हैं. तबस्सुम को अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए भी चुना गया था, लेकिन व्यक्तिगत और व्यावसायिक दायित्वों के कारण वह भाग नहीं ले सकीं.
कश्मीर जैसे क्षेत्र की एक महिला के लिए पंजा जैसे खेल में उत्कृष्टता हासिल करना कोई छोटी उपलब्धि नहीं है, जिसमें शारीरिक शक्ति की आवश्यकता होती है. “मुझे हमेशा से ही खेलों में रुचि थी, लेकिन हमारे क्षेत्र में महिलाओं के लिए इसे अपनाना आसान नहीं था. तबस्सुम ने भावुक होकर कहा, ‘‘मैं यह ऊर्जा युवा लड़कियों तक पहुंचाना चाहती हूं और उन्हें बाधाएं तोड़ने के लिए प्रोत्साहित करना चाहती हूं.’’ समुदाय के कल्याण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता कानून और खेल से परे भी है. उन्होंने डिजिटल दुनिया के बढ़ते प्रभाव को ध्यान में रखते हुए एक साइबर जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किया.
उन्होंने कहा, ‘‘युवा लोग हमारे समाज का एक अनिवार्य हिस्सा हैं, उन्हें साइबर कानून और डिजिटल सुरक्षा के बारे में शिक्षित करना बहुत महत्वपूर्ण है.’’
अधिवक्ता तबस्सुम की कहानी धैर्य, दृढ़ संकल्प और बदलाव की कहानी है. चाहे अदालत में हो, कुश्ती के मैदान पर हो या समुदाय में, वह न्याय और सशक्तिकरण के लिए लड़ रहे हैं. तबस्सुम का दृढ़ निश्चय और सकारात्मक दृष्टिकोण न केवल कश्मीर में, बल्कि पूरे देश में महिलाओं के लिए आशा और प्रेरणा रहा है.