ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
हमीदा बानो ने 1940 और 1950 के दशक में पुरुषों की चुनौती देते हुए कहा था कि जो मुझे दंगल में हरा देगा मैं उससे शादी कर लूंगी. पहला कुश्ती मैच जिसने हमीदा को सही मायनों में पहचान दिलाई, वह 1937 में लाहौर के फिरोज खान के साथ था. हमीदा ने उस मैच में फिरोज को चित कर दिया. लोगों ने उन्हें ‘अलीगढ़ की एमेज़ॉन’ (Amazon of Aligarh) कहना शुरू कर दिया था. कुश्ती भारत का पसंदीदा और काफी पुराना खेल है। हालांकि कुश्ती में हमेशा से पुरुषों का दबदबा रहा है. हमारे समाज में ऐसा माना जाता रहा है, कि कुश्ती पुरुषों का खेल है, क्योंकि महिलाएं कमजोर होती है. लेकिन हामिदा भानू ने पुरुषों को उन्हीं के खेल में धूल चटाकर भारत की पहली प्रोफेशनल महिला पहलवान बनीं थी. हामिदा बानू की कामयाबी को गूगल ने सराहते हुए उनका गूगल डूडल बनाया है.
हमीदा बानो का जन्म 1900 में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था. जब खेलों में महिलाओं की भागीदारी को हतोत्साहित किया गया तो उन्होंने इस प्रथा को चुनौती देने के लिए पहलवानी (कुश्ती) के क्षेत्र में प्रवेश किया. हालाँकि, उनके जुनून ने रूढ़ियों पर काबू पा लिया और वह जल्द ही भारत में पहली (रिकॉर्डेड) महिला पहलवान बन गईं, जिन्होंने एक क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया.
पहलवान हमीदा बानो मिर्ज़ापुर में पैदा हुई थीं. सलाम नाम के एक पहलवान की उस्तादी में कुश्ती की ट्रेनिंग के लिए वो अलीगढ़ चली आईं थीं. यहीं से उन्होंने अपने पेशेवर पहलवानी करियर की शुरुआत की. देश में कोई महिला पहलवान नहीं थी, जिससे वो दंगल कर सकें. ऐसे में उन्होंने मर्द पहलवानों को चुनौती देना शुरू कर दिया.
हमीदा ने 1954 में रूस की वीरा चस्तेलिन को एक मिनट से भी कम समय में पछाड़कर सभी को चकित कर दिया. छोटे गामा नाम के मशहूर पहलवान ने आखिरी समय में हमीदा से लड़ने से मना कर दिया था. वीरा को चित करने के बाद हमीदा ने यूरोप जाकर लड़ने का फैसला किया. यहीं से उनका करियर ग्राफ नीचे की तरफ गिरने लगा.
यूपी के मिर्जापुर में जन्मीं हमीदा बानो की डाइट ही बड़े बड़ों के पसीने छुड़ाने के लिए काफी है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, हमीदा बानो की हाइट 5 फीट 3 इंच थी और उनका वजन 107 किलो था.
उस वक़्त एक महिला पहलवान से लड़का मर्द अपनी बेइज़्ज़ती समझते थे. कई पहलवानों ने उनसे लड़ने को मना भी कर दिया. छोटे गामा नाम से मशहूर एक पहलवान ने भी आख़िरी वक़्त में उनसे लड़ने से इन्कार कर दिया था. महाराष्ट्र के कोल्हापुर में एक और मुक़ाबले में जब उन्होंने शोभा सिंह पंजाबी नाम के एक मर्द को पराजित किया तो कुश्ती के शौक़ीनों ने उन्हें बुरा-भला कहा और उन पर पत्थर फेंके. हालात इतने बिगड़ गए थे कि पुलिस को बुलाना पड़ गया.
उस समय लोगों की सोच थी कि जानबूझकर डमी पहलवान उतारे जाते हैं, ताकि मुकाबला मनोरंजक लगे. हालांकि, ये कभी साबित नहीं हुआ. भारतीय शेरनी हमीदा बानो ने 1954 में मुंबई में रूस की ‘मादा रीछ’ कहलाने वाली वीरा चस्तेलिन को भी एक मिनट से कम समय में शिकस्त दी थी. तब उन्होंने कहा था कि वो यूरोपीय पहलवानों से कुश्ती लड़ने के लिए यूरोप जाएंगी.
कहते हैं कि वो रोजाना 6 लीटर दूध, पौने तीन किलो सूप, सवा दो लीटर फलों का जूस पीती थीं. इसके साथ ही एक मुर्गा, एक किलो मटन, 450 ग्राम मक्खन, 6 अंडे, लगभग एक किलो बादाम, 2 बड़ी रोटियां और 2 प्लेट बिरयानी खाती थीं. दिन के 24 घंटों में वह 9 घंटे सोती थीं और 6 घंटे एक्सरसाइज करती थीं और बाकी समय खाती रहती थीं.
हमीदा बानो के ट्रेनर सलाम पहलवान नहीं चाहते थे कि वह यूरोप जाए. नाराज सलाम ने डंडे से मारकर हमीदा के पैर और हाथ तोड़ दिए थे. इसके बाद वह कुश्ती से गायब हो गईं. कहा जाता है कि बाद में दूध बेचकर अपना घर चलाती थीं.