अरिफुल इस्लाम / गुवाहाटी
क्या सिनेमा में महिलाओं की अहमियत कम है ? दर्शक सिनेमा में महिलाओं के किस तरह के चरित्र देखना पसंद करते हैं ? स्त्री को आपत्तिजनक पोशाक में, नृत्य करते हुए, कैसे ? क्या कैमरे के पीछे रहने वाला पुरुष प्रधान समाज हमेशा महिलाओं को उपेक्षित करता रहा है ? इन महत्वपूर्ण सवालों पर असम की लोकप्रिय फिल्म समीक्षक और पत्रकार फरहाना अहमद बांग्लादेश की राजधानी ढाका में आयोजित 11वें ढाका इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में चर्चा करती नजर आईंं.
14 जनवरी से 22 जनवरी तक आयोजित 11 वें ढाका इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में उन्होंने असम फिल्म क्रिटिक्स की हैसियत से भाग लिया. साथ ही उन्हांेने फिल्मों में महिलाओं के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा में भाग लिया. फिल्म महोत्सव में दुनिया के 71 देशों के लोग भाग ले रहे हैं.
इसी बीच वहां 15 और 16 जनवरी को एक विशेष समारोह आयोजित किया गया, जिसमंे ढाका अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन -2023 मंे भाग लेने वाली महिला फिल्म निर्माता, अभिनेत्रियां और फिल्म निर्माण में शामिल महिला विद्वान विशेष तौर से आमंत्रित की गईं.
इसमंें वार्ताकार की हैसियत से उनसे बातचीत करने के लिएफरहाना अहमद मौजूद रहीं.बाद में आवाज-द वॉयस के से एक साक्षात्कार में पत्रकार और फिल्म समीक्षक फरहाना अहमद ने कहा, दक्षिण एशियाई सिनेमा में महिलाओं का वस्तुकरण हुआ है.
बांग्लादेश में आयोजित सम्मेलन में मेरी चर्चा का विषय यही था. सामान्य तौर पर, पिछले 150 वर्षों के सिनेमा के इतिहास में, महिलाओं को अहमियत नहीं दी गई. इसपर मैंने ढाका मंे अपनी राय रखी. हिंदी सिनेमा में लोगों के नजरिए से महिलाओं को पेश किया जाता है.
आज की फिल्मों में बहुत अभद्रता है. इसने युवा पीढ़ी को प्रभावित किया है. फिल्मों खासकर कुछ अप्रासंगिक दृश्य डाले जाते हैं .जैसे कि यह आइटम हों. ऐसी महिलाओं को सिनेमा में देखकर हम थक गए हैं. मुझे लगता है कि समाज पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है.
ओटीटी प्लेटफार्म गाली या अश्लील दृश्य दिखाते है. दूसरी ओर, यह महिलाओं, बूढ़ों, बच्चों के खिलाफ अपराध है.फिल्म समीक्षक फरहाना अहमद कहती दर्शकों को अधिक संख्या में सिनेमाघर तक लाने के लिए अच्छी तकनीक में महारत हासिल करना जरूरी है. तब आप ऐसे अपराध रोक पाएंगे. ढाका में इन मुद्दों पर बात की.
दूसरी ओर, ढाका अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के उद्घाटन समारोह में भाग लेने के बाद, असमिया पत्रकारों और फिल्म समीक्षकों ने बांग्लादेश के राष्ट्रीय टेलीविजन चैनल के साथ एक आमंत्रण अतिथि साक्षात्कार में भाग लिया.
बांग्लादेश में आयोजित सम्मेलन की थीम को ध्यान में रखते हुए फिल्म समीक्षक फरहाना अहमद ने भी असम या असमिया सिनेमा का जिक्र किया. बेशक, मौजूदा असमिया सिनेमैटोग्राफी में अश्लीलता या महिला अशुद्धता जैसी कोई महत्वपूर्ण घटना नहीं दिखाई गई है.
बता दें कि 1977 में उत्तर लखीमपुर में जन्मी फरहाना अहमद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त पत्रकार, लेखक, फिल्म समीक्षक, फिल्म निर्माता, सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरणविद् हैं. पत्रकारिता और जनसंचार में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त करने के बाद फरहाना मीडिया से जुड़ गईं.