यूनुस अल्वी / नूंह (मेवात, हरियाणा )
ब्रिटिश काल में हरियाणा के मेवात क्षेत्र की बेटियों के लिए बनाया गया ‘कस्टमरी लाॅ‘ अब उनके ‘हक’ पर डाल रहा है. इस ‘कानून’ के आगे न तो संविधान की चलती है और न ही शरिया की. परिणामस्वरूप मेवात की बेटियां आज भी अपने पैतृक चल-अचल संपत्ति में हिस्सेदारी से महरूम हैं.
विधवाओं को भी इस कानून के कारण भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. कस्टमरी लॉ के चक्कर में मेवात की हजारों महिलाएं आज भी अपने पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी के लिए कोर्ट-कचहरी में संघर्ष कर रही हैं.
स्थिति यह है कि कस्टमरी लाॅ मेवात की बेटियों को बढ़ावा देने के सरकारी प्रयास में भी अड़चन बना हुआ है. हालांकि समय के साथ आए बदलाव और जागरूकता की वजह से अब मेवात के बुद्धिजीवियों का एक वर्ग पैतृक चल-अचल संपत्ति में बेटियों को हिस्सेदारी से रोकने वाले कानून में बदलाव की मांग उठाने लगा है. यहां तक कि उलेमा भी बेटियों को हक दिलाने के लिए कस्टमरी लॉ (रिवाज ए कानून) को निरस्त कराने और मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू कराने की मांग उठाने लगे हैं.
गौरतलब है कि हरियाणा के पुराने गुड़गांव जिले मेवात, रेवाड़ी, फरीदाबाद व पलवल की मेव समाज की बेटियों को कस्टमरी लाॅ के तहत माता-पिता की चल अचल संपति में कोई अधिकार नहीं देता है. हद यह कि इस कानून के प्रावधानों के तहत यदि किसी बहन का भाई नहीं है तो उनके माता-पिता की मौत के बाद सारी संपत्ति नजदीकी रिश्तेदारों के नाम कर दी जाएंगी.
माता-पिता की मौत के बाद बेटी की उसके संपत्ति पर से हर तरह की दावेदारी हमेशा के समाप्त हो जाती है. बेटियां कानूनी लड़ाई लड़ना भी चाहंे तो रिवाज-ए-आम कानून उनके हक में अचड़न बन जाता है.
इस कानून से बचने के लिए मेवात में आज ऐसे हजारों दंपत्ति हैं जिनका कोई पुत्र नहीं. वो अपने नाती को गोद ले बतौर दत्तक पुत्र बनाकर वर्षों कानूनी लड़ाई के बाद अपनी पुश्तैनी संपत्ति रिष्तेदारों के पास जाने से बचाने में कामयाब तो हो गए, पर उनकी बेटियों का आज भी उसमें कोई हक नहीं .
इलाके के अधिवक्ताओं के अनुसार, मेवात इलाके में ऐसे कई मामले दशकों से कोर्ट में लंबित हैं, जिनका अब तक निपटारा नहीं हुआ है.
कहीं और नहीं है यह कानून
मेव समाज देश भर के करीब 85 जिलों में बसा हुआ है, जिनकी आबादी करीब दो करोड़ है. बावजूद इसके कस्टमरी लाॅ हरियाणा के गुरूग्राम, फरीदाबाद, मेवात, पलवल एवं रेवाड़ी को छोड़कर कहीं और लागू नहीं .यह कानून ब्रिटिश सरकार ने केवल पुराने गुड़गांव जिले के लिए बनाया गया था. अब गुरूग्राम से अलग होकर फरीदाबाद, रेवाड़ी, और नूंह जिले बन चुके हैं.
मोहम्मद मुबारिक की लंबी लड़ाई
रिवाज-ए-कानून यानी कस्टमरी लाॅ की पेचीदगियों के चलते पुन्हाना खंड के गांव जमालगढ़ के मोहम्मद मुबारिक पिछले चार दषकों से भी अधिक समय से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. मोहम्मद मुबारिक का कहना है कि उनके परिवार की कमलबी पत्नी भब्बल को कोई औलाद नहीं थी.
भब्बल का करीब 1965 में इंतकाल हो गया था. कमलबी ने मेरे पिता अब्दुल हमीद को 1983 में गोद ले लिया. उसके बाद से परिवार के दूसरे सदस्य गोदनामे को रद्द करने के लिए अदालत में पहुंचे हुए हैं. उनका कहना है कि केस लड़ते लड़ते पिता अब्दुल हमीद 2016 में चल बसे. उसके बाद से यह कानूनी लड़ाई वह लड़ रहे हैं.
मोहम्मद मुबारिक का कहना है कि गोदनामे को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने जायज माना है. बावजूद इसके अभी तक उन्हें पुश्तैनी आधी जमीन पर ही कब्जा मिला है. मोहम्मद मुबारिक का कहना है कि कमलबी की आधी जमीन पर जबरदस्ती परिवार के अन्य लोग काबिज हैं. अब पूर्ण कब्जा दिलाने का मामला पुन्हाना की अदालत में चल रहा है. अदालत के चक्कर काटते हुए उन्हें और उसके पिता को 40 साल से अधिक का समय हो गया.
तीन दशक से लड़ रहे आसिफ अली
चंदेनी के आसिफ अली भी कुुछ इसी तरह की लड़ाई लड़ रहे हैं. उन्होंने बताया कि कस्टमरी लाॅ के खिलाफ वह पिछले तीन दशक से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. उनकी शादी नूंह खंड के गांव दिहाना के जहूर खां की छोटी बेटी से 1977 में हुई थी. उनके ससुर की तीन लड़कियां हैं.
कोई लड़का नहीं है.शादी से पहले ही उनके ससुर का इंतकाल हो गया था. ससुर के गुजरने के बाद से ससुर जहूर खान की सातवीं पुस्त (पीडी) के बच्चों ने उनकी सास को जमीन को लेकर तंग करना शुरु कर दिया.
इससे परेशान होकर उनकी सास असगरी ने उनके बेटे परवेज को 1992 में गोद ले लिया. आफिस अली का कहना है कि गोद लेने के बावजूद कस्टमरी लॉ की आड़ में ससुर जहूर खां के दूर के परिवार वालों ने गोदनामे को अदालत में चुनौती दे दी है.
आसिफ का कहना है कि 1996 में सेशन कोर्ट ने गोदनामे का फैसला उनके हक में दे दिया था. अब यह मामला हाई कोर्ट में लंबित है. आसिफ के अनुसार, सास का मई 2019 में इंतकाल हो गया. आखिरी समय तक वो अपनी सास की सेवा करते रहे.
आसिफ ने प्रदेश सरकार से अपील की है कि वह मेव समाज की बेटियों के लिए लड़का-लड़की एक समान करने के लिए कानून लाए. सरकार जब तक पुराने कानून को समाप्त नहीं करेगी मेव बेटियों को उनके वालिद की चल- अचल संपत्ति में बराबर का हक नहीं मिल पाएगा .
अधिवक्ता महेश कुमार कहते हैं,यह कानून ब्रिटिश सरकार के समय में बनाया गया था. आज बेटियों को आगे लाने व समाज में बराबर का दर्जा देने के लिए रिवाज-ए-कानून में परिवर्तन की आवश्यकता है. कस्टमरी लॉ का खत्म होना ही बेहतर है.
उलेमा भी हैं इस कानून के खिलाफ
मेवात के उलेमा का कहना है कि कस्टमरी लॉ संविधान और शरिया कानून दोनों के खिलाफ है. इस ब्रिटिश कानून के रहते मेवात की बच्चियों को उनका हक नहीं मिल सकता. उलेमा का कहना है कि यह ऐसा कानून है जो मेवाती लड़कियों को उनकी पैतृक संपत्ति में हिस्से से दूर रखता है.
इसके विपरीत इस्लाम में लड़कियों को पैतृक संपत्तियों में हिस्सा देने का आदेश है. कस्टमरी लॉ के चलते मेवात की हजारों लड़कियां अपनी खानदानी संपत्ति से वंचित हैं. अब मेवात की बेटियों की हक की आवाज बुलंद करने का समय आ गया है.
मेवात के मुफ्ती जाहिद हुसैन कहते हैं कि हरियाणा के मेवात इलाके में कस्टमरी लॉ निरस्त कर मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू करना चाहिए. इसकी मांग जोर पड़क रही है. इलाके के उलेमा मेवात के राजनेताओं से मुलाकात कर कस्टमरी लॉ (रिवाज ए कानून) निरस्त कराने और मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू कराने की मांग कर चुके हैं. उनकी मांग पर मेवात के तीन विधायकों ने विधानसभा में प्राइवेट बिल लाने का वादा किया है.
मुफ्ती जाहिद हुसैन सहित अन्य उलेमा ने कस्टमरी लॉ को शरीयत के खिलाफ बताया. उनका कहना है कि इस्लाम बेटियों को उनके पैतृक संपत्ति में हिस्सा देने की वकालत करता है. कस्टमरी लॉ मुस्लिम महिलाओं और बेटियों को पैतृक जायदाद से वंचित करता है. यह निरस्त होना चाहिए.
उन्होंने बताया कि इस्लाम में बेटे को पैतृक जमीन से दोगुना और बेटी को एक गुणा हिस्सा देने का प्रावधान है. जितनी बेटी और बेटे होंगे उनके हिसाब से पैतृक संपत्ति में बटवारे का इस्लाम में प्रावधान है. जबकि कस्टमरी लॉ इस्लाम के कानून के खिलाफ है.
नूंह के विधायक आफताब अहमद, पुन्हाना के विधायक मोहम्मद इलियास का कहना है कि मेवात के उलेमा ने उनके सामने मांग रखी है. कस्टमरी लॉ को निरस्त कराकर मुस्लिम लॉ के जरिया मुस्लिम बेटियों को उनके पैतृक जायदाद में हिस्सा दिलाएंगे.
उनका कहना है कि कस्टमरी लॉ पंजाब एक्ट है जो हरियाणा में भी लागू है. वह मेवात के अन्य विधायकों से बात करेंगे और उलेमा की मांग पर सहमति बनाएंगे. आगामी विधानसभा सत्र में इस कानून के खिलाफ प्राइवेट बिल लाया जाएगा.
क्या है कस्टमरी लॉ
कस्टमरी लॉ यानी रिवाज ए कानून को अंग्रेजों के समय बनाया गया था.मगर आजादी के बाद भी इसे जारी रखा गया है. हरियाणा में कस्टमरी लॉ पंजाब ऐक्ट के तहत बना हुआ है. इसके जानकार अधिवक्ता नूरूद्दीन नूर का कहना है कि अगर किसी आदमी के बेटा न हो और बेटियां हैं तो उसकी जायदाद में से बेटी को हिस्सा जाने की बजाए लड़कियों के पिता के खून के रिश्ते में जमीन अपने आप चली जाएगी.
पति के मरने के बाद महिला उस जमीन से अपना गुजर बसर तो कर सकती है, लेकिन वह संपत्ति को बेच नहीं सकती.
केवल किसी बच्चे के गोद लेने से ही चल-अचल संपत्ति रुक सकती है. बच्चे को गोद लेने से महिला अपने पति की जमीन को पति के परिवार वालों के पास जाने से तो रोक लेती है, लेकिन इससे उसकी बेटियों को कोई लाभ नहीं मिलता.