शगुफ्ता नेमत
कहते हैं न ‘जहां चाह, वहां राह’. और ईश्वर भी उन पर ही जिम्मेदारियों का बोझ डालता है, जो उसे उठा सकें. शायद आप सब उनके नाम से अधिक, उनके काम से परिचित होंगे, वह हैं शाहीन बाग क्षेत्र की महिला पार्षद अरीबा खान.
मैं पहली बार उनसे मिलने के लिए उनके पास, किसी राजनीतिक दल से जुड़े होने या पार्षद होने के कारण नहीं गई थी, बल्कि मैं किसी ऐसी सामाजिक कार्यकर्ता की तलाश में थी, जिनका हमारे क्षेत्र में बड़ा योगदान रहा हो. तो इस संबंध में लोगों से बातचीत करने पर लोगों ने मुझे उनसे मिलने का सुझाव दिया. उनसे मिलकर ऐसा लगा कि लोगों का सुझाव गलत नहीं था.
समाज सेवा की भावना से ओत-प्रोत मैंने उनमें एक नई ऊर्जा का संकल्प और संचार पाया. मेरे यह प्रश्न पूछने पर कि इस उम्र में आपने यह शौक कहां से पाला, वो पहले मुस्कुराईं, फिर कहने लगीं विरासत में मिली है. अपने पापा को हमेशा समाज सेवा करते देखा है.
देखते-देखते मेरे अंदर का भी वह बीज कब पौधा बन गया, पता ही नहीं चला. और यह मेरे रब का एहसान है कि इस समाज सेवा के लिए उसने मुझे एक मंच भी दे दिया और मैं भी उस नाटक का एक मुख्य पात्र बन गई.
मगर यह इच्छा मन में जगी कि मैं केवल एक नाटक का पात्र बनकर न रह जाऊं, जो परदा गिरते ही अपनी भूमिका को भूल जाता है, बल्कि मैं नाटक का वह पात्र बनूं कि जिस रंगमंच के लिए मुझे चुना गया है, उसके लिए निरंतर भूमिका अदा करती रहूं.
उनकी बातों में मुझे दृढ़ संकल्प और कर्तव्य परायणता के भाव तो नजर आए, मगर उयमें विश्वास की डोर तब बंधी, जब अचानक से मेरी दृष्टि यह देखकर अचंभित रह गई कि जिस अल्फाज अस्पताल के सामने कूड़े का ढेर लगा रहता था, वहां एक-दो पेड़ लहराते नजर आए, जिसे बदलने का भी उन्होंने दृढ़ निश्चय किया था.
अपनी समाज सेवा से जुड़े कार्यों के बारे में, उन्होंने कोरोना पीड़ित लोगों को ऑक्सीजन सिलेंडर और बेड मुहय्या कराने की भी बात बताई, जो कोरोना काल की एक गंभीर समस्या थी.
समय पर ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध न होने के कारण कितने लोग इलाज से वंचित रह गए. तब अपने निवास स्थल के बाहर ही सेवा शिविर लगाकर उन्होंने ऑक्सीजन ही नहीं, लोगों के भोजन तक का प्रबंध किया. यहां तक कि उन्होंने अपने हाथों से भी भोजन बनाकर गरीब तथा बेसहारा लोगों में भोजन का वितरण किया, जो उनके महानतम् व्यक्तित्त्व को दर्शाता है.
दिल्ली में 2020 में हुए दंगों में भी, उन्होंने धर्म तथा राजनीति से ऊपर उठकर अधिक से अधिक लोगों तक राहत सामग्री पहुंचाने का प्रबंध किया और अन्य लोगों को भी इस मुहिम से जोड़ा, ताकि बहुत बड़े पैमाने पर लोगों की सहायता की जा सके.
आज भी विभिन्न सरकारी तथा गैर सरकारी विद्यालयों में आमंत्रित किए जाने पर, वह वहां जाकर स्कूल के छात्रों का मनोबल बढ़ाती नजर आती हैं, जिसे देखकर लगता है कि अपने राजनीतिक कार्य क्षेत्र के अतिरिक्त वह बच्चों के लिए भी कुछ कर गुजरने के लिए दृढ़ संकल्प हैं.
हमारी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि उन्हें उनके लक्ष्य में सफलता मिले और उनके माध्यम से समाज के अधिक से अधिक लोगों का कल्याण हो.
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