ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
जब कोई स्त्री अपने जीवनसाथी को खोती है तो उसके जीवन से सभी रंग चले जाते हैं. उसे अपनी जिंदगी से कोई लगाव नहीं रहता और हमारा समाज न सिर्फ उसे अँधेरे में छोड़ देता है बल्कि उसके अधिकारों की भी कहीं कोई चर्चा नहीं की जाती मानों अब वे मनुष्य ही न रही हो. लेकिन जब वहीँ स्त्री अपने साथ-साथ दूसरों की जिंदगी में भी रंग भर दे तो वो कहलाती है आज के युग की महिला.
ये कहानी है एक विधवा महिला एनजीओ चालक नरगिस खान की. जिसने अपने पति को खोने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और समाज की रूढ़ीवादी सोच को पीछे छोड़ अपनी जिंदगी की डोर खुद अपने हाथों में थाम कर अपने साथ-साथ दूसरों के अधिकार और उनके कल्याण के लिए लड़ाई लड़ी.
नरगिस खान जिनके मरहूम शोहर वली मोहोम्मद ने 2005 में दुनिया को अलविदा कह दिया. इसके बाद नरगिस खान बिलकुल टूट गई लेकिन अब उन्हें अपने दोनों बेटों की जिंदगी सवारनी थी साथ ही उनके सामने था एक एनजीओ 'एकता सुधार समिति' जिससे काफी लोगों को आस थी कि उनकी जिंदगी यहां से सवर जाएगी.
एनजीओ 'एकता सुधार समिति' की शुरुवात
नरगिस खान ने आवाज द वॉयस को बताया कि 1996 में वे अपने पति संग भजनपुरा दिल्ली में यमुना पार बसने आई जहां की हालत उस वक़्त काफी खराब थी. वाहन मुलभुत सुविधाओं का आकाल था. उस मोहल्ले में केवल वे ही मुसलमान थे बाकी सारे अन्य समुदाय के थे. बावजूद इसके एकता और भाईचारे का प्रतीक देते हुए उनके शोहर वली मोहोम्मद ने एनजीओ 'एकता सुधार समिति' की शुरुवात की और वहां के लोगों के लिए सभी सुविधा उपलब्ध करने के लिए वे वहां के एमएलए से मिले जिसके बाद उस जगह का विकास हुआ. वहां लोगों को पीने के लिए स्वच्छ पानी मिला, रोड बनी, बिजली का ट्रासंफॉर्मर भी लगा और लगभग एक से दो साल के अंदर उस जगह के लोगों को मेरे शोहर ने अपने एनजीओ 'एकता सुधार समिति' के बैनर तले सभी मुलभुत सुविधाएं मुहईया कराई.
बुजुर्गों की शिक्षा पर भी ध्यान दिया
नरगिस खान ने बताया कि मैने मेरे पति संग मिलकर बुजुर्गों की शिक्षा पर भी ध्यान दिया और हमारे एनजीओ के माध्यम से उनको इतना पढ़ाया और सिखाया ताकी वे खुद अपने हस्ताक्षर कर सके साथ ही उनके साथ कोई धोखा न कर सके इसके लिए भी उन्हें शिक्षित और जागरूक किया.
शोहर का इंतकाल
नरगिस खान ने आवाज द वॉयस को बताया कि जब 2005 में मेरे शोहर का इंतकाल हुआ तब मेरी उम्र मात्र 45 साल थी. लेकिन मैने उनके एनजीओ को मरने नहीं दिया और उसे सुचारु रखा. मेने ठाना कि मैं अपने एनजीओ के माध्यम से लोगों को ऐसे कौशल सिखाऊंगी जिससे वे अपनी जिंदगी में कभी किसी पर निर्भर न रहे और अपनी रोजी-रोटी खुद कमा सकें.
नरगिस खान ने सिखाया छात्रों को कौशल
नरगिस खान खुद सिलाई और कड़ाई में निपुण हैं. उन्होनें कई बच्चियों को ये कला सिखाई. वहीँ कुछ कंप्यूटर लगवाए और छात्रों को कंप्यूटर कोर्स कराया. छात्रों को इंग्लिश स्पीाकिंग कोर्स भी कराया साथ ही उन्हें दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर सेल्फ डिफेंस की क्लासेस भी दिलाई. वे कहतीं हैं कि दिन में 3बजे से शाम 5बजे तक मैने ये क्लासेस चलाई.
एनजीओ बना नरगिस खान का साथी
नरगिस खान अब पूरी तरह से एनजीओ के कामों में मशरूफ रहतीं हैं जो उन्हें उनकी पति के साथ होने का अहसास हर पल देता है. वे भूल चुकी हैं कि वे एक विधवा हैं. उनका एनजीओ ही उनका साथी बन चूका है. नरगिस खान ने अलीगढ मुस्लिम विश्वविधालय से उर्दू भाषा में एम.ए किया हुआ है.
उनकी शादी 25 मार्च 1980 में हुई. उनके पति वली मोहोम्मद कश्मीर से थे और शादी के बाद वे दिल्ली के निवासी बने वहीँ नरगिस खुद बिजनौर से हैं.
नरगिस खान ने आवाज द वॉयस को बताया कि 27सितंबर 2005को उनके पति ने अंतिम साँस ली उनको मधुमेय की बीमारी भी थी वहीँ वे अपने पति संग बिताएं पलों को याद कर कहतीं हैं कि हमारा पूरा परिवार साथ ही खाना खाता था. कभी अगर दोपहर में मेरे शोहर घर न आ पाते तो हम भी खाना नहीं खाते थे. नरगिस खान के पति वली मोहम्मद फ़ूड कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया में कार्यरत थे.
एनजीओ की प्रेसिडेंट नरगिस खान
60वर्षीय नरगिस खान आज उस एनजीओ की प्रेसिडेंट हैं जिसकी नीव उनके शोहर ने रखी थी. वर्ष 2012में उनके एनजीओ 'एकता सुधार समिति' के लिए दिल्ली सरकार ने एक बिल्डिंग भी अलॉट की. जहां नरगिस खान आज भी बच्चों को शिक्षित कर रहीं हैं. कभी-कभी वे स्टेशनरी वितरण भी करतीं हैं. वे अपनी टीम के साथ सर्वे भी करतीं हैं और जरूरतमंदों के लिए हमेशा खड़ी रहती हैं.
नरगिस खान को दिल्ली सरकार से मिली सरहाना
नरगिस खान ने बताया कि एक दिन अचानक जब दिल्ली के 125एनजीओ का सर्वे दिल्ली सरकार ने कराया तो उनका एनजीओ सफाई में पहले नंबर पर आया और दिल्ली सरकार ने उनकी सरहाना की.
नरगिस खान ने दिलाया रोजगार
नरगिस खान ने बताया कि हाल फ़िलहाल ही उन्होनें केयर टेकर ट्रेनिंग भी कुछ युवाओं को देनी शुरू की है इस क्षेत्र में वे आगे जाकर नौकरी पा सकेंगें. वैसे अबतक उनके एनजीओ के माध्यम से वे लगभग 1000छात्रों को इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स करा चुकीं हैं. कम से कम 100बच्चों को कम्प्यूटर कोर्स करा चुकी हैं. और वे वे सभी अच्छी नौकरियां कर रहे हैं.
नरगिस खान को उनके समाजसेवी कार्यों के लिए विभिन मंचों पर सम्मानित भी किया गया. वे लोगों को जागरूक करने के लिए केम्पस का आयोजन भी लगातार करती रहतीं हैं. नरगिस खान अपनी पूरी जिंदगी इस एनजीओ को न्योछावर कर चुकी हैं. उनकी जिंदगी इस एनजीओ के कार्यों के इर्द-गिर्द ही घूमती हैं. उनके दोनों बेटे अब व्यापारी हैं.
23 जून को अंतर्राष्ट्रीय विधवा दिवस दुनिया भर में विधवाओं की दुर्दशा के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनके अधिकारों और कल्याण की वकालत करने के लिए मनाया जाता है.