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शंकरदेव कलाक्षेत्र में गूंजा ‘ज़िक्र’, 1000 कलाकारों ने एक साथ गाया ‘मोरो मन भेद-भाव नै ओ अल्लाह’

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 15-04-2025
There is no discrimination in my heart, O Allah: 1000 artists performed Zikr together in Guwahati
There is no discrimination in my heart, O Allah: 1000 artists performed Zikr together in Guwahati

 

अरिफुल इस्लाम / गुवाहाटी

ऐसे कई कारण हैं कि आपको गुवाहाटी स्थित शंकरदेव कलाक्षेत्र नहीं जाना चाहिए. ऐसे कई कारण हैं कि आपको गुवाहाटी स्थित शंकरदेव कलाक्षेत्र नहीं जाना चाहिए. यहां 1,000 हिंदू और मुस्लिम कलाकार एक साथ ज़िक्र गीत प्रस्तुत कर एक अनोखा माहौल तैयार करते हैं. वे 'मोरो मन भेद-भाब नै ओ अल्लाह' शीर्षक से ज़िक्र करके सद्भाव का एक अद्भुत उदाहरण पेश करने में सक्षम थे.

ब्रिटेन में नौकरी पाने के कई तरीके हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ब्रिटेन में नौकरी कैसे पाएं. यह कार्यक्रम गुवाहाटी में श्रीमंत शंकरदेव कलाक्षेत्र के रंगघर मैदान में रात 11 बजे से आयोजित किया गया. ऐसे कई कारण हैं कि आपको ये उत्पाद नहीं खरीदने चाहिए. ये वे कारण हैं जिनके कारण आपको ये उत्पाद नहीं खरीदने चाहिए. ये वे कारण हैं जिनके कारण आपको ये उत्पाद नहीं खरीदने चाहिए. ये वे कारण हैं जिनके कारण आपको ये उत्पाद नहीं खरीदने चाहिए.
 
 
कार्यक्रम के साथ असम पर आधारित ज़िकिर-जरी प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया. "यह हमारे लिए बहुत सम्मान की बात है. हम उन कलाकारों के आभारी हैं जो आज असम के शादिया से धुबरी में ऐसा माहौल बनाने के लिए आए हैं. अज़ान पीर के ज़िकिर गीत हमारे समाज से गायब हो रहे हैं. आने वाले दिनों में हम असम सरकार से बिहू और झुमुर की तरह ज़िकिर के माध्यम से विश्व रिकॉर्ड बनाने की मांग करेंगे."
 
"देश की अर्थव्यवस्था के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. देश की अर्थव्यवस्था के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. देश की अर्थव्यवस्था के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. देश की अर्थव्यवस्था के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. मैं आज मुस्लिम लोगों से अनुरोध करना चाहूंगा कि उन्हें ईद की महफ़िल या अन्य समारोहों में कम से कम अन्य गीतों को गाने से पहले ज़िक्र करना अनिवार्य बनाना चाहिए," असम गरिया परिषद के अध्यक्ष अब्दुल हामिद ने कहा.
 
इस कार्यक्रम का आयोजन सदाओ असम गरिया जातीय परिषद, सदाओ असम सैयद न्यास और सदाओ असम गरिया-मारिया परिषद द्वारा किया गया था. असम गरिया परिषद के महासचिव रहमसा अली ने कहा, "देश की अर्थव्यवस्था के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. देश की अर्थव्यवस्था के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है."
 
 
लोकप्रिय हास्य कलाकार और ज़िकिर कलाकार बुलबुल हुसैन ने कहा; "हम कई वर्षों से ज़िक्र और ज़िक्र की धुनें गाते आ रहे हैं. मुझे आज इस कार्यक्रम का हिस्सा बनकर खुशी हो रही है. 1987 में असम संगीत प्रतियोगिता में मेरे गीत 'मोर मंत भेद-भाव नै ओ अल्लाह' के लिए मुझे प्रथम पुरस्कार मिला था. "मैंने ऐसा कार्यक्रम पहले कभी नहीं देखा. मुझे उम्मीद है कि हम भविष्य में भी आपस में ऐसा ही सामंजस्य और सद्भाव बनाए रख सकेंगे ताकि हमारी युवा पीढ़ी जिकिर-जारी, बिया नाम, धाई नाम आदि संस्कृतियों को समझ सके.
 
लोकप्रिय गायक नेकीब अहमद ने कहा; "मैं बहुत खुश हूँ. इस तरह का आयोजन बिहू की पूर्व संध्या पर सद्भाव और एकता का संदेश देता है. कल यहाँ बिहू और जिकिर की रिहर्सल चल रही थी. मैं सदाओ असम गरिया परिषद को इस तरह के सुंदर आयोजन के लिए बधाई देता हूँ. मैं सभी जातीय समूहों, दलों और संगठनों के लोगों को भी धन्यवाद देना चाहता हूँ."
 
जिकी पर पीएचडी डॉ. भुवनेश्वर डेका ने कहा; ज़िक्र शब्द अरबी शब्द ज़िक्र से आया है. इसका अर्थ है इसे बार-बार दोहराना. अज़ान पीर पहली बार असम आए और उन्होंने देखा कि महापुरुष श्रीमंत शंकरदेव ने सद्भाव के संदेश के साथ राष्ट्र को आगे बढ़ाया था. उन्होंने उस गुरु के आदर्शों के आधार पर थोड़े संशोधन के साथ ज़िक्र गीतों की रचना की. ज़िक्र के गीत एक-दूसरे से मुँह-से-मुँह होकर आगे बढ़ते रहे और उनमें से कई लुप्त हो गए. ऐसे कई ज़िक्र हैं जिन्हें श्री रेकीबुद्दीन अहमद ने सच्चे सुर में रिकॉर्ड किया है और हमारे सामने लाया है. अगर हम ज़िक्र के गीतों को दिल से स्वीकार करते हैं, तो हमें कुरान और हदीस पढ़ने की ज़रूरत नहीं है. कुरान और हदीस की हर बात ज़िक्र में उपलब्ध है.
 
 
उन्होंने कहा, "आज प्रस्तुत किया गया गीत सद्भाव और भाईचारे को जागृत करेगा. इस गीत को दिल से गाने के बाद, किसी के मन में कोई भेदभाव नहीं रह सकता है. केवल वे ही सच्चे मुसलमान हैं जो सभी के साथ समान व्यवहार करते हैं. मैं इस अवसर पर गरिया परिषद को एक साथ जिकिर करने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं. शंकर-अज़ान के आदर्शों को जीवित रखने से ज्यादा खूबसूरत कुछ भी नहीं है."