विश्व जल दिवसः मेवात में जल संरक्षण के लिए इब्राहिम बघोला कहे जाते हैं जलपुरुष

Story by  यूनुस अल्वी | Published by  [email protected] | Date 23-03-2023
मेवात के जलपुरुष इब्राहिम बघोला
मेवात के जलपुरुष इब्राहिम बघोला

 

विश्व जल दिवस विशेष

यूनुस अलवी/ मेवात/ हरियाणा

 

इब्राहिम बघोला को अगर मेवात का जल पुरुष कहा जाता है तो यह हर तरह से सही है. आखिर मेवात में पानी बचाने की उनकी कोशिशें रंग भी ला रही हैं. मेवात के नूंह ज़िले के गांव बघोला निवासी 65 वर्षीय इब्राहिम 1990 से मेवात में जल संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं. इस दौरान वह अरावली पहाड़ के ऊपर बने बरसाती तालाबो की उड़ाही कराकर ठीक कर चुके हैं.2000 में चेक डेम बनाकर जलस्तर को ऊपर लाने की काफी कोशिश कर रहे हैं.


अब इब्राहिम जल पुरुष राजेन्द्र सिंह के साथ मिलकर मेवात में चेक डेम बनाने के कार्य पर जुटे हुए हैं. फिलहाल तरुण भारत संघ के अध्यक्ष राजेंद्र सिंह के सहयोग से मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर द्वारा 13फरवरी को गांव पाट खोरी में जल संरक्षण के काम का शुभारंभ किया गया है. उनकी योजना है कि मेवात में अरावली पर्वत श्रृंखला में जलस्तर बढ़ाने के लिए कई चेक डेम बनाये जाएंगे.

 

मेवात के जलपुरुष इब्राहिम बघोला

 

घाटा शमशाबाद में सेवल वाला बांध पहले सूखा रहता था लेकिन आज इब्राहिम बघोला की मेहनत से यह पानी से भरा हुआ है. इसे 2000 में बनवाया था. इतना ही नहीं भोड गांव के ऊपर पहाड़ में सौरा वाला जौहड की कायाकल्प करने में भी इब्राहिम बघोला का अहम हिस्सा रहे. जो बरसात के मौके पर हर समय भरा रहता है. वही भोंड गांव के ऊपर पहाड़ में जोहड़ बना है, जिसे भूरा सय्यद का जोहड़ कहते हैं. इसकी मरम्मत करने में भी इब्राहिम बघोला ने काफी मेहनत की.

 

नीति आयोग द्वारा 2018 में घोषित सबसे पिछड़े जिले में शुमार हरियाणा के मेवात (नूंह) के चारों खंडों में भूजल की स्थिति सबसे खराब है. हरियाणा पब्लिक हेल्‍थ इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट की रिपोर्ट बताती है, नूंह में पेयजल की स्थिति प्रदेश में सबसे खराब है. पेयजल के लिए लोगों को कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता है.

 

इब्राहिम बघोला

 

इतना ही नहीं, अरावली पहाड़ में रहने वाले जानवरो को जब पीने के पानी की किल्लत होती है तो वे गांवो की ओर रुख कर लेते हैं. अब तक कई तेंदुए और जऱख गांवों में घुस चुके हैं. पेयजल की लगातार दिक्‍कत को देखते हुए जल संरक्षण को लेकर कदम उठाने की सख्‍त जरूरत थी, लेकिन कोई इसमें आगे नहीं आ रहा था.

 

पानी की किल्‍लत को देखते हुए जल संरक्षण का बीड़ा उठाया नूंह जिले के फिरोजपुर खंड के गांव बघोला निवासी हाजी इब्राहिम ने. उन्‍होंने वह काम किया, जो काम केंद्र या राज्‍य सरकार को करना चाहिए. अरावली की तलहटी में बसे दो गांव घाटा-शमशाबाद में पानी की दिक्‍कत को देखते हुए यहां बांध (चेक डैम) बनवाने के बारे में सोचा. ताकि बारिश का पानी जमा होकर ग्राउंड वाटर को रिचार्ज कर सके.

 

पेशे से किसान इब्राहिम के पास पैसे नहीं थे, लेकिन इनके इरादे बुलंद थे. बकौल इब्राहिम, “साल 2000में बारिश ठीक हुई थी. लेकिन इसके बावजूद अरावली से सटे इन गांवों में पानी की बहुत किल्‍लत थी.”

 

इसके बाद उन्‍होंने जल संरक्षण को लेकर काम करने का मन बनाया, पहले तो समझ नहीं आया कि करें क्‍या.. उनके दिमाग में अरावली की पहाडि़यों से उतरने वाला पानी रोकने का ख्‍याल आया. वहीं से बांध (चेक डैम) बनाने के बारे में सोचा. इसके लिए दिल्‍ली स्थित गांधी संग्रहालय में कार्यरत अपने दोस्‍त महंत तिवारी से बात की और उसके बाद बांध के लिए माकूल जगह तलाशने के लिए अरावली की खाक छाननी शुरू की.

 

मेवात में जल संरक्षण

 

कई दिनों की मशक्‍कत के बाद एक घाटा-शमशाबाद गांव के बीच का एक जगह मिली. लेकिन, इब्राहिम का कोई बांध बनाने का इल्‍म नहीं था, तो इसके लिए दोस्‍त महंत तिवारी की मदद से तरुण भारत संघ में जल पुरुष राजेंद्र सिंह से संपर्क किया. उन्‍होंने बांध की तकनीकी पहलू के बारे में समझा और उससे मदद ली.

 

इसके बाद इब्राहिम ने पहले खुद का पैसा जोड़ा और काम शुरू करवाया, लेकिन जल्‍द ही तंगी ने गिरफ्त में ले लिया. इसके बाद उन्‍होंने दोस्‍तों और कुछ ग्रामीणों से मदद ली और करीब दो लाख की लागत और चार महीने की मशक्‍कत के बाद अरावली की पानी बहने से रोकने के लिए तलहटी से 50गज की ऊंचाई पर डेढ किमी के क्षेत्रफल में बांध बनवाकर खड़ा कर दिया. हाजी इब्राहिम के विजन को देखते हुए पत्‍थर वाले बांध बनाने के‍ लिए पत्‍थर मुफ्त दिए तो गांव वालों ने श्रम दान किया.

 

हरियाणा कृषि विभाग के हाइड्रोलॉजी विंग की रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 1974 से इस क्षेत्र में भूजल स्‍तर गिरना शुरू हुआ था और उसके बाद लगातार गिरावट आती गई. वर्ष 2000 तक इस क्षेत्र में भूजल स्‍तर 400 फीट से अधिक नीचे पहुंच गया था, अब तो वाटर लेवल 800 फुट से 1000 फुट गहरा चला गया है. लेकिन इस बांध के बनने के बाद भूजल स्‍तर में धीरे-धीरे और सुधार आया और अब करीब 150 फुट पर पानी उपलब्‍ध है.

 

इस नतीजे को देखते हुए साल 2006 में वन विभाग ने अरावली से सटे दो गांवों में बांध बनाने का निर्णय लिया था, हालांकि कुछ बांध पर अभी भी काम पूरा नहीं हुआ है.

 

सहगल फाउंडेशन के साथ काम कर चुके पर्यावरणविद चेतन अग्रवाल कहते हैं, “अरावली से सटे गांव की भूमि रेतीली है. लेकिन अधिक ढलान होने की वजह से पानी बर्बाद हो जाता था. व्‍यक्तिगत प्रयास के बाद वहां भूजल स्‍तर में सुधार हुआ है. जिससे वहां रहने वाले करीब चार हजार लोगों को फायदा पहुंच रहा है.”

 

फिरोजपुर झिरका में कई गांवों में बांध बनाने के लिए 13 फरवरी को तरुण भारत संघ में राजेंद्र सिंह ने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल को गांव पाटखोरी में इसका उद्घाटन किया. वही मुख्यमंत्री ने संघ को 50 लाख की मदद करने की घोषणा की.