मलिक असगर हाशमी / नई दिल्ली
एक दशक बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए, और इसके नतीजे कई मायनों में अप्रत्याशित साबित हुए. पाकिस्तान से लगते इस संवेदनशील सूबे में हो रहे बदलाव की बयार चुनाव के दौरान भी साफ दिखी. जहां एक ओर मतदाताओं ने रिकॉर्ड तोड़ मतदान किया, वहीं कुछ समय के लिए दो समुदायों के बीच खिंची कड़वाहट की दीवार भी टूटती नजर आई.
इसका सबसे बड़ा उदाहरण इंदरवाल विधानसभा सीट से चुने गए निर्दलीय विधायक प्यारे लाल शर्मा की जीत है, जो इस बात का संकेत देती है कि जम्मू-कश्मीर में सामाजिक और राजनीतिक ताने-बाने में बदलाव हो रहे हैं.
इंदरवाल में हिंदू उम्मीदवार की ऐतिहासिक जीत
जम्मू-कश्मीर के इंदरवाल विधानसभा क्षेत्र, जहां 80% मुस्लिम आबादी है, से पहली बार एक हिंदू उम्मीदवार की जीत ने सबको चौंका दिया. इस क्षेत्र को पूरी तरह से मुस्लिम बहुल माना जाता रहा है. ऐसे में किसी हिंदू प्रत्याशी की जीत अकल्पनीय मानी जा रही थी. लेकिन प्यारे लाल शर्मा ने इस परंपरा को तोड़ते हुए बड़ी जीत दर्ज की.
चुनाव के दौरान शर्मा को जिस तरह मुस्लिम समुदाय का समर्थन मिला, वह इस बात का सबूत है कि जम्मू-कश्मीर में धार्मिक सौहार्द और सामाजिक समरसता की जड़ें अभी भी मजबूत हैं.शर्मा ने बताया कि इस सीट पर 20% हिंदू आबादी है, जिनमें से मात्र 6,000 से 7,000 वोट ही पड़े.
उन्होंने कहा, "इन 6,000 वोटों में से 4,000 मुझे मिले और बाकी बीजेपी के खाते में गए. लेकिन, असली जीत का कारण मुसलमानों का भारी समर्थन था. मुसलमानों ने बड़ी संख्या में मुझे वोट दिया और मैं चुनाव जीत गया."
उनकी जीत का अंतर सिर्फ 643 वोटों का था, लेकिन यह जीत उनके लिए एक बड़ा संकेत था कि कश्मीर अब पहले जैसा नहीं रहा.
धार्मिक सौहार्द का नया अध्याय
शर्मा की जीत इसलिए और खास हो जाती है क्योंकि उनके मुकाबले दो हाजी उम्मीदवार थे, जो मुस्लिम समुदाय से थे. इसके बावजूद, मुस्लिम मतदाताओं ने उन पर भरोसा जताया. शर्मा इस समर्थन के लिए बेहद आभारी हैं. कहते हैं, "मैं उनका शुक्रिया इलाके में बेहतर काम करके अदा करूंगा." उनकी यह जीत धार्मिक सौहार्द और कश्मीर में बदलती राजनीतिक संस्कृति की मिसाल है.
यह घटना कश्मीर में पिछले कुछ दशकों में हुए सामाजिक और राजनीतिक बदलावों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है. एक समय था जब कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार और आतंकवाद के कारण धार्मिक असहमति की जड़ें गहरी हो गई थीं. लेकिन यह जीत यह दिखाती है कि कश्मीर बदल रहा है. लोग अब आपसी भाईचारे और विकास की बात कर रहे हैं.
— Kairos Issar (@chadxsharma) October 18, 2024
शर्मा की राजनीतिक यात्रा और नेशनल कॉन्फ्रेंस
सूत्रों के अनुसार, प्यारे लाल शर्मा अब नेशनल कॉन्फ्रेंस में शामिल हैं. चुनाव से पहले, उन्हें पार्टी द्वारा टिकट नहीं दिया गया था, जिसके चलते उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया. हालांकि, अब वे अपनी जीत के बाद एक बार फिर से पार्टी में शामिल होने पर विचार कर रहे हैं.
इंदरवाल में उनकी जीत ने एक नया राजनीतिक समीकरण पैदा किया है. उन्होंने वरिष्ठ नेता गुलाम मोहम्मद सरूरी को 643 वोटों के मामूली अंतर से हराया. शर्मा को कुल 14,195 वोट मिले, जबकि सरूरी, जो इससे पहले दो बार इस सीट से विधायक रह चुके हैं, को 13,552 वोट हासिल हुए.
नेशनल कॉन्फ्रेंस की वापसी और उमर अब्दुल्ला की ताजपोशी
नेशनल कॉन्फ्रेंस इस चुनाव में 42 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. पार्टी ने अपने गठबंधन सहयोगी कांग्रेस, जिसने छह सीटें जीती हैं, के साथ मिलकर सरकार बनाने की तैयारी शुरू कर दी. फारूक अब्दुल्ला ने चुनाव नतीजों के बाद घोषणा की कि उनके बेटे उमर अब्दुल्ला ही केंद्र शासित प्रदेश में गठबंधन सरकार का नेतृत्व करेंगे.
फारूक अब्दुल्ला ने कहा, "लोगों ने अपना जनादेश दे दिया है। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि वे 5 अगस्त को लिए गए फैसले (अनुच्छेद 370 को निरस्त करना) को स्वीकार नहीं करते हैं.
कश्मीर में बदलते हालात
इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक माहौल तेजी से बदल रहा है. प्यारे लाल शर्मा की जीत, नेशनल कॉन्फ्रेंस की वापसी, और धार्मिक सौहार्द का पुनर्जीवन – ये सभी इस बात का संकेत हैं कि कश्मीर अब पहले जैसा नहीं रहा. कश्मीर के लोग अब विकास, सामाजिक समरसता, और शांति की ओर बढ़ रहे हैं.
शर्मा की जीत से यह संदेश भी मिलता है कि धार्मिक सीमाएं अब उतनी महत्वपूर्ण नहीं रह गई हैं, जितनी पहले थीं. कश्मीर के लोग अब अपने नेता का चुनाव उनके काम और ईमानदारी के आधार पर कर रहे हैं, न कि उनके धर्म के आधार पर. यह बदलाव आने वाले समय में जम्मू-कश्मीर के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को और भी उज्जवल बना सकता है.
शर्मा की इंदरवाल से जीत कश्मीर की राजनीति में एक नया अध्याय
प्यारे लाल शर्मा की इंदरवाल से जीत ने जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक नया अध्याय लिख दिया है. उनकी जीत ने यह साबित कर दिया कि कश्मीर बदल रहा है और लोग अब विकास और भाईचारे की दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं. यह घटना इस बात का सबूत है कि कश्मीर में राजनीतिक स्थिरता और सामाजिक सौहार्द की ओर एक नई शुरुआत हो रही है.