बिहार के शेरशाहबादी मुस्लिम परिवारों की लड़कियां क्यों रह जाती हैं अनब्याही!

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 11-12-2024
Why do girls from Shershahabadi Muslim families of Bihar remain unmarried? s. photo
Why do girls from Shershahabadi Muslim families of Bihar remain unmarried? s. photo

 

अभिषेक कुमार सिंह / पटना/वाराणसी

बिहार के शेरशाहबादी मुस्लिम परिवारों की परंपराएं ऐसी हैं कि ज्यादातर लड़कियां ताउम्र कुंवारी रह जाती हैं, परिवार बेटी के लिए रिश्ता नहीं खोज सकते.बिहार के सुपौल जिले के कोचगामा प्रखंड में मुसलमानों का एक समुदाय ऐसा भी है जो अपनी लड़कियों का रिश्ता नहीं खोज पाते हैं. यह समुदाय है शेरशाहबादी मुस्लिम समुदाय.

शेरशाहबादी समुदाय में लड़की के परिजन न तो अपनी बेटी के लिए रिश्ता खोजते हैं और न ही किसी से ऐसा करने को कह सकते हैं. अगर वे ऐसा करते हैं तो यह समझा जाता है कि लड़की में जरूर कोई दोष है जो खुद ही उसके लिए लड़का तलाश रहे हैं. तब लड़की की शादी और भी मुश्किल हो जाती है.

इस समुदाय में आमतौर पर 15 से 20 साल की उम्र तक लड़कियों की शादी हो जाती है. अगर वे 25 साल की उम्र पार कर जाती हैं तो उन्हें 'बूढ़ी' समझ लिया जाता है. ऐसे में उनकी शादी होनी मुश्किल हो जाती है.लड़की वाले सिर्फ रिश्ता आने का इंतजार ही कर सकते हैं. इसलिए जिन लड़कियों के लिए रिश्ता आता है उनकी तो शादी हो जाती है, लेकिन जिनके लिए नहीं आता वो ताउम्र सिर्फ रिश्ते का इंतजार ही करती रह जाती हैं.

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शेरशाहबादी मुस्लिम समुदाय की परंपराएं ही कुछ ऐसी हैं कि इनमें लगभग हर दस में से दो लड़कियां ताउम्र अविवाहित ही रह जाती हैं.यह अजब-गजब रिवायत बिहार के सुपौल जिले में नेपाल बॉर्डर से बमुश्किल दस किलोमीटर की दूरी पर कोचगामा पंचायत में आज भी मौजूद है. मुस्लिमबहुल इस क्षेत्र में ज्यादातर मुस्लिम शेरशाहबादी समुदाय के ही हैं. इस पंचायत के साथ ही सीमांचल के कई दूसरे जिलों और नेपाल में भी शेरशाहबादी समुदाय के लोग रहते हैं.

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता अबु हिलाल बताते हैं, “महिलाओं के अविवाहित रह जाने की यह समस्या तब से मजबूत हुई जब से लोग दहेज के लालच में फंसना शुरू हुए. अब उन्हीं लड़कियों की शादी आसानी से होती है जो या तो खूबसूरत हों या जिनके पास दहेज देने के लिए पैसा हो.”

अबू हिलाल बताते हैं, “जिन लड़कियों का कद कुछ कम है, रंग गोरा नहीं है या नैन-नक्श अच्छे नहीं हैं उनकी शादी होनी मुश्किल हो जाती है. कई बार ऐसा भी होता है कि दो-तीन बहनों में से लड़के वालों को छोटी बहन पसंद आ गई तो, ऐसे में बड़ी लड़की से पहले छोटी की शादी हो जाती है और फिर बड़ी की शादी लगातार मुश्किल होती चली जाती है.”

जो लड़कियां अविवाहित रह जाती हैं वह अपनी खानदानी सम्पत्ति पर भी दावा नहीं कर पाती. ऐसे में वह लड़कियां हमेशा अपने भाई पर बोझ समझी जाती हैं और माना जाता है कि वे भाई के रहम पर ही पल रही हैं और भाई उन्हें साथ रखकर उन पर अहसान कर रहा है.

इनमें से अधिकतर महिलाएं कुपोषण और एनीमिया से पीड़ित होती हैं क्योंकि बेहद मुश्किल से इन्हें दो वक्त का खाना नसीब होता है. रमजान में जो लोग जो दान-धर्म करते हैं उसके सहारे ही इनका पेट भरता है.

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शेरशाहबादी मुसलमान की पहचान

बीबीसी हिंदी में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में रहने वाली शेरशाहबादी आबादी अति पिछड़ा वर्ग में आती है. ये बिहार के सुपौल, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, अररिया ज़िलों में ज़्यादा संख्या में है.इनमें ये परंपरा है कि लड़कियों की शादी के लिए लड़के वालों की तरफ़ से ही पैग़ाम या अगुआ (शादी का मध्यस्थ) जाता है.

इस परंपरा का पालन इतनी मज़बूती से किया जाता है कि अगर किसी लड़की के लिए शादी का पैग़ाम नहीं आए तो वो अविवाहित रह जाती है.यही वजह है कि बिहार में जहां कहीं भी शेरशाहबादी हैं, वहां आपको ऐसी ही अविवाहित महिलाएं या लड़कियां मिल जाएंगी.

इस रिपोर्ट में शेरशाहबादी मुस्लिम आबादी बहुल कोचगामा पंचायत के मुखिया पति नुरुल होदा बताते हैं, "हम लोगों ने कुछ साल पहले ऐसी अविवाहित महिलाओं की लिस्ट बनाई थी. तब इनकी संख्या 250 थी, अब तो ये और बढ़ गई होगी."अब बात यह है की एक ही पंचायत में जब यह आंकड़ा इतना बड़ा है तो भारत और नेपाल के कई जिलों में रहने वाली इस कुल आबादी में यह संख्या निश्चित ही हजारों में होगी.

हिंदी अखबार दैनिक भास्कर में छपी एक रिपोर्ट में विधानसभा चुनाव लड़ चुके और कोचगामा पंचायत के दो बार मुखिया रह चुके शाह जमाल उर्फ लाल मुखिया को उद्धृत किया गया है जो बताते हैं कि कुछ साल पहले इस समस्या को सुलझाने के लिए पूरे समुदाय ने एक बैठक बुलाई थी.

भारत और नेपाल के अलग-अलग इलाकों में रह रहे शेरशाहबादी समुदाय के लोगों ने इस बैठक में शामिल होकर तय किया था कि अब लड़की वालों को भी रिश्ता खोजने या इसकी पहल करना शुरू कर देना चाहिए.इस रिपोर्ट में लाल मुखिया कहते हैं, “इस पहल से काफी असर हुआ.

अब ऐसी लड़कियों की संख्या कम है, जिनकी शादी नहीं हो रही हो. अब तो लड़कियां खुद भी लड़के को पसंद कर लेती हैं और उनकी शादी हो जाती है.” लेकिन, गांव के अन्य लोग लाल मुखिया की इस बात से सहमत नहीं हैं. पेशे से प्राइवेट टीचर अबु हिलाल कहते हैं, “उस बैठक के बाद भी कुछ नहीं बदला है. लोग आज भी लड़की का रिश्ता लेकर नहीं जाते.”

आज भी समुदाय की लड़कियों के लिए घर से निकलने पर सौ पहरे हैं, उन्हें काम करने या मजदूरी करने की भी इजाजत नहीं है और वे पढ़ाई भी सिर्फ मदरसों में ही कर सकती हैं.द हंगर प्रोजेक्ट के लिए काम करने वाली शाहीना परवीन ने इन महिलाओं की आवाज कई बार उठा चुकी हैं.

शाहीना परवीन का मानना हैं कि इस समस्या से निकलने के लिए जो कदम उठाए जाने चाहिए, उनमें से एक अहम कदम लड़कियों को शिक्षित और आत्मनिर्भर बनाना भी है. वे कहती हैं, ‘ये लड़कियां अगर बाहर निकलेंगी, अच्छी पढ़ाई करेंगी और नौकरियां करने लगेंगी तो निश्चित ही इस समस्या से भी निकल जाएंगी.’

शेरशाह सूरी से संबंध का दावा

बीबीसी हिंदी के मुताबिक, ठेठी बंगाली (उर्दू और बंगाली का मिश्रण) बोलने वाले शेरशाहबादी ख़ुद को बादशाह शेरशाह सूरी से जोड़ते हैं.इन लोगों का दावा है कि यह लोग शेरशाह की सेना में सैनिकों के तौर पर शामिल हुए थे. शेरशाह, सूरी वंश के संस्थापक थे और उन्होंने मुग़ल बादशाह हुमांयू को पराजित कर अपनी सल्तनत स्थापित की थी.

ऑल बिहार शेरशाहबादी एसोसिएशन के अध्यक्ष सैय्यदुर्रहमान रहमान कहते हैं, "इन लोगों को शेरशाह ने आबाद किया था. मज़बूत क़दकाठी, मेहनती और नदी किनारे बसने वाले ये लोग बिहार के अलावा बंगाल, झारखंड और नेपाल की सीमा पर बसते हैं.''

''बिहार में इनकी आबादी तक़रीबन 40लाख है और सीमांचल की 20विधानसभा सीटों पर गेम चेंजर हैं. बिहार में ये लोग शैक्षणिक और आर्थिक तौर पर बहुत पिछड़े हुए हैं."

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पैसे और तालीम से अलग लड़की का रंग अहम

आर्थिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े समाज से आने वाले इस समुदाय में औरतों की पढ़ाई ज़्यादातर पांचवी कक्षा तक ही होती है.औरतों को घर से बाहर निकलने की आज़ादी नहीं होती और पुरूष भी मज़दूरी के पेशे या फिर दर्ज़ी का काम करने के लिए सूरत, जयपुर, कोलकाता जैसे बड़े शहरों में चले जाते हैं.

शादी के लिए पैग़ाम के अलावा जो चीज़ सबसे ज़्यादा इस समाज में मायने रखती है वो है लड़की का शारीरिक रंग.बताते चले की शेरशाबादिया, भारत के पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड राज्य में पाया जाने वाला एक बंगाली मुस्लिम समुदाय है. वे शेख समुदाय से संबंधित हैं और पश्चिम बंगाल और बिहार के शेखों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी हैं.

समुदाय द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सामान्य उपनामों में शेख, सेख, हक, इस्लाम, मोंडल शामिल हैं. उनमें से अधिकांश सुन्नी मुसलमान हैं जो अहल-ए हदीस आंदोलन से जुड़े हैं.ये लोग मुख्यतः गंगा नदी के उत्तरी तट पर बिहार के कटिहार जिले से लेकर दक्षिणी तट पर झारखंड के साहिबगंज जिले तक. और दक्षिणी तट पर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले और उत्तरी तट पर पश्चिम बंगाल के मालदा जिले तक फैली चारों और डुबास (निचली भूमि) में रहते हैं.