मोहम्मद अकरम / मोतिहारी, बिहार
बुधवार के रोज करीब बारह बजे जैसे ही मोतिहारी जिले (पूर्वी चंपारण) के ढाका थाना से सटे और ढ़ाका-बैरगनिया मार्ग स्थित पिपरा वाजिद गांव में दाखिल होते ही, मेरी मुलाकात गांव के आखरी हिस्से पर मौजूद स्कूल के बच्चों से हुई. यह स्कूल अपनी बदहाली के आंसू रो रहा है. पता चला कि राज्य सरकार की तरफ से शिक्षा व्यवस्था को बेहतर और सुधार करने की बात तो की जाती है, लेकिन जमीनी स्तर पर हालत आज भी बद से बदतर हैं. कुछ गज की जमीन पर बने स्कूल में जमीन के अभाव में दो स्कूल एक ही बिल्डिंग में चलते हैं. 5-6 शिक्षक की जगह पर सिर्फ दो शिक्षक को तैनात किया गया है. दूसरा स्कूल एनपीएस के तहत नवसृजित राजकीय प्राथमिक विधालय चलता है. यहां भी शिक्षक की कमी है.
दरअसल, पिपरा बाजिद गांव के इतिहास के बारे में जब हमने अतीत को खंगालने की कोशिश की, तो पता चला कि इस अल्पसंख्यक बाहुल्य गांव की आबादी 3,500 है, जिसमें 95 प्रतिशत अल्पसंख्यक (मुसलमान) है और पांच फीसदी हिन्दू धर्म के लोग सदियों से एक साथ रह रहे हैं.
Mahfooz Rahi
सामाजिक कार्यकर्ता महफूज राही गांव के इतिहास के पन्नों को पलटते हुए बताते हैं कि इस गांव में सिर्फ चार खानदान के लोग रहते हैं. इस गांव को आबाद वाले हाजी मलंग साहब थे, जिनके तीन लड़के हुसैन, ईमान और जाफर थे, उनसे जो औलाद पैदा हुईं, उनमें हाजी ऐनुल हक, मोहवद्दीन, हाजी शफीक और इसहाक थे. कमो-बेस इन्हीं चार लोगों की पीढ़ी इस गांव में आबाद है.
शिक्षा और संस्कार खत्म
Village kids
महफूज राही आज से तीस-चालिस वर्ष पूर्व के वक्त को याद करते हुए खुशी से कहते हैं कि जो पुराने जमाने के लोग थे, उनके अंदर तालीम (शिक्षा) की कमी थी, लेकिन अदब (संस्कार) था, उस वक्त यहां के लोग सरकारी और गैर सरकारी मैदान में अव्वल आते थे और देश और समाज की सेवा करते थे. मगर नई पीढ़ी के युवा, और खास तौर पर मुस्लिम पीढ़ी के अंदर संस्कार और शिक्षा दोनों गायब है. मोबाइल के ज्यादा इस्तेमाल ने नई पीढ़ी को बर्बाद कर दिया है. छोटे छोटे बच्चे पढ़ाई को छोड़कर रील और टिक टॉक बना रहे हैं.
एक बिल्डिंग में दो स्कूल
इस मुस्लिम आबादी में सिर्फ एक स्कूल की बिल्डिंग है, जहां शिक्षकों की कमी है. कोई बड़ा मदरसा भी नहीं है, जहां कम से कम मुस्लिम लड़कियां दीन व दुनिया को समझ सकें.
युवाओं को नजदीक से समझने वाले मोहम्मद नाजिर अनवर ने हमें बताया कि गांव में अच्छी सड़क नहीं हैं. ढ़ाका-घोड़ासहन मार्ग के करसहिया चौक से गांव की तरफ आने का रास्ता बहुत ज्यादा खराब है. इसे बनाने के लिए स्थानीय बीजेपी विधायक पवन कुमार जयसवाल ने शिल्यानास भी किया,लेकिन अब तक कुछ भी नहीं बना है. गांव में किसी तरह की कोई मेडिकल सेवा नहीं, जरूरत पड़ने पर ढाका रेफरल अस्पताल मरीजों को ले जाना पड़ता है, जहां डॉक्टरों की किल्लत है.
पहले बीडीओ डीईओ पैदा होते थे
महफूज राही इस बारे में कुछ देर सोचने के बाद कहते हैं कि एक छोटा सा मदरसा है, लेकिन वहां भी पढ़ाई अच्छी नहीं होती हैं. वह इस बात पर खुशी व्यक्त करते हैं कि लड़कों के मुकाबले में लड़कियां पढ़ाई में आगे हैं. यहां की बच्चियां ढाका में मौजूद स्कूलों में पढ़ाई करने बस से जाती हैं. इसके अलावा लोग जरूरत के अनुसार, बड़े शहरों में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवा रहे हैं. वह आगे कहते हैं कि इस गांव ने बीडीओ बदरुज्जमां (रिटायर) और डीईओ सुलतान (रिटायर) दिए, लेकिन इस वक्त हालत चिंताजनक है, उम्मीद है कि लड़कियां ही भविष्य में समाज का नाम रोशन करेंगी.
अब पहले जैसा माहौल नहीं
Mohammad Nazir Anvar
शिक्षा और नई पीढ़ी के बारे में नाजिर अनवर, महफूज राही के बात से सहमत हैं. वह कहते हैं कि गांव में अब पहले जैसा माहौल नहीं रहा. पहले जैसा प्रेम व्यवहार खत्म होने के कगार पर है. कुछ ही घराने के गार्जियन अपने बच्चों पर ध्यान दे रहे हैं. लड़कों के मुकाबले लड़कियां शिक्षा में आगे है, दिल्ली, कोटा और पटना में इस गांव की लड़कियां मेडिकल की तैयारी कर रहे हैं.
लड़कियां लड़कों से आगे
Villagers having tea
बीच गांव में एक चाय की दुकान पर 85 वर्षीय बुजुर्ग जफीर आलम से मुलाकात हुई. उन्होंने बताया कि नई नस्ल के बच्चों को पढ़ाई की जगह कमाने के लिए कम उम्र में घर वाले मुंबई, दिल्ली, गुजरात भेज दे रहे हैं, लेकिन लड़कियां एक दूसरे की देख-देख कर पढ़ाई की तरफ जा रही है और बड़ी संख्या में हर वर्ष लड़कियां कामयाब हो रही हैं.
शासन-प्रशासन ध्यान नहीं देते हैं
जफीर आलम गांव में बुनियादी सहूलियत नहीं होने के सवाल पर कहते हैं कि इस तरफ शासन-प्रशासन का ध्यान नहीं हैं. नाला खराब है. कई बार लोगों ने पदाधिकारी को दरख्वास्त दिया है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती है. वह इस पर बात पर गर्व महसूस करते हैं कि पहले ये गांव पढ़ाई-लिखाई के लिए पूरे इलाके में मशहूर था, लेकिन आज नहीं है, इसमें कुछ जिम्मेदार लोगों की कमी भी है.
दो सौ साल पुराना पेड़
Two hundred years old tree
गांव से दक्षिणी और पूर्वी किनारे पर मौजूद पाकड़ का पेड़ गांव की कई पीढ़ी की गवाह है, जो आज भी अपने छाव के नीचे गर्मी के दिनों में लोगों को सुकून देता है और बच्चों के लिए खेल की जगह है. महफूज राही के मुताबिक इस पाकर वृक्ष की उम्र दो सौ साल से ज्यादा है. जहां आज भी हर शाम लोगों की महफिलें लगती हैं. ठीक उसके बगल में मौजूद सरकारी पोखर जहां मछलियों का पालन होता है, गांव की तारीख का अटूट हिस्सा है.
राज्य सरकार का बहुत बड़ा दखल
कुछ महीने पहले ढाका नगर परिषद का चुनाव हुआ, जिसमें चेयरमैन के पद पर इम्तियाज अख्तर ने जीत दर्ज की, वह कहते हैं कि लड़कियां अगर आज शिक्षा की तरफ आगे बढ़ रही हैं, तो उसमें राज्य सरकार का बहुत बड़ा दखल है. ये गांव ढ़ाका से जुड़ा हुआ है, जिसके कारण लड़कियां आने जाने में खुद को सेफ समझती हैं और वह शिक्षा में बेहतर कर रही है.
Imtyaz Akhtar
वह आगे कहते हैं कि जब राज्य सरकार ने साइकिल, स्कॉलरशिप देना शुरू कियाख् तो उसका असर लड़कों के मुकाबले लड़कियों पर ज्यादा पड़ा है. वह घरों से निकल कर शिक्षा में आ रही हैं.
काशिफ इकबाल युवा है. वे दिल्ली में काम करते हैं और इस समय वह वर्क फ्रॉम होम काम रहे हैं. वह कहते हैं कि गांव में आज भी लोग एक दूसरे से मिलजुल कर रह रहे हैं. मेरी बहन यूपीएससी की तैयारी कर रही हैं.
लड़कियों में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़
kashif iqbal
लड़कियों के पढ़ाई में आगे होने का कारण के बारे में काशिफ इकबाल कहते हैं कि इस की बुनियादी कारण लोगों का जागरूक होना है. लड़कों का शिक्षा की तरफ रुझान कम होना मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल है. लड़कियों के अंदर एक दूसरे से आगे निकलने को कोशिश होती है. मगर लड़कों में उस तरह का मामला नहीं है. लड़का बड़ा हुआ और पढ़ाई नहीं की, तो उसके माता-पिता बड़े शहरों में कमाने के लिए भेज देते हैंख् लेकिन लड़कियों के साथ ऐसा नहीं हैं. वह हर तरह की चीज को दरकिनार करके शिक्षा की तरफ आगे बढ़ रही हैं.
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