उर्दू केवल भाषा नहीं, हमारी संस्कृति और विरासत का हिस्सा है : आईएएस अधिकारी अजीम उल हक़

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 06-02-2025
Urdu is not just a language, it is part of our culture and heritage: IAS officer Azim ul Haq
Urdu is not just a language, it is part of our culture and heritage: IAS officer Azim ul Haq

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

आईएएस अधिकारी अजीम उल हक़ ने कहा कि  "उर्दू केवल एक भाषा नहीं, बल्कि हमारी तहज़ीब, संस्कृति और विरासत का प्रतीक है. इसका उत्थान हमारी नई पीढ़ी की ज़िम्मेदारी है. वर्तमान समय में बदलाव की तेज़ लहरों ने सभी भाषाओं को प्रभावित किया है, लेकिन हमें इसे संरक्षित और प्रचारित करने के लिए समर्पित प्रयास करने होंगे." 

आईएएस अधिकारी अजीम उल हक़ ने आगे कहा,उर्दू भाषा भारत की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है. यह न केवल देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी अलग पहचान रखती है.
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वह उर्दू  के प्रचार-प्रसार और नई नस्ल में इसके प्रति रुचि बढ़ाने के उद्देश्य से शमां एजुकेशनल एंड पॉलिटेक्निक सोसायटी द्वारा "उर्दू और नई नस्ल" विषय पर आयोजित गोष्ठी में बोल रहे थे. यह कार्यक्रम किरोड़ीमल कॉलेज के अकादमिक ऑडिटोरियम में संपन्न हुआ, जिसमें उर्दू भाषा की अहमियत, उसके संरक्षण और युवाओं में इसकी लोकप्रियता बढ़ाने के प्रयासों पर विचार-विमर्श किया गया.

आईएएस अधिकारी अजीम उल हक़ ने आगे कहा कि उर्दू का भविष्य युवाओं के हाथ में है, और जिस तरह से नई पीढ़ी इस भाषा को सीख रही है, वह आशाजनक है. हमें इसे और अधिक सशक्त बनाने के लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे.

उर्दू के विकास के लिए समर्पित प्रयास

किरोड़ीमल कॉलेज के प्राचार्य प्रो. दिनेश खट्टर ने इस अवसर पर कहा, "हमारे कॉलेज का उर्दू विभाग हमेशा से इस भाषा के प्रचार और शिक्षा में अग्रणी रहा है. शमां एनजीओ के साथ मिलकर हम उर्दू भाषा को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए कृतसंकल्प हैं. यह हम सबकी ज़िम्मेदारी है कि उर्दू को जीवंत बनाए रखने के लिए प्रयास करें और आने वाली पीढ़ियों को इसकी अहमियत समझाएं."

शमां एनजीओ का योगदान

शमां एजुकेशनल एंड पॉलिटेक्निक सोसायटी के महासचिव डॉ. फ़हीम बेग ने संस्था के कार्यों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि "शमां एनजीओ पिछले 27 वर्षों से शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और भाषाओं के प्रसार में कार्यरत है. इसी क्रम में, हम युवा पीढ़ी को उर्दू से जोड़ने और उन्हें रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने के लिए सेमिनारों और कार्यशालाओं का आयोजन कर रहे हैं."

उन्होंने बताया कि संस्था जल्द ही एक "आओ उर्दू सीखें" अभियान चलाएगी, जिसके तहत गली-मोहल्लों और बाज़ारों में कैम्प लगाए जाएंगे और दुकानों पर उर्दू साइन बोर्ड लगाए जाएंगे, जिससे आम लोगों में उर्दू भाषा के प्रति प्रेम जागे.
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उर्दू: सिर्फ़ भाषा नहीं, रोजगार का ज़रिया भी

संगोष्ठी में विशेषज्ञों ने उर्दू भाषा के व्यावसायिक महत्व पर भी प्रकाश डाला. डॉ. नदीम अहमद ने कहा, "उर्दू सिर्फ मुशायरों और फिल्मों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह रोजगार के नए द्वार भी खोलती है. पत्रकारिता, अनुवाद, शोध और शिक्षण जैसे क्षेत्रों में उर्दू की मांग लगातार बनी हुई है."

इसी क्रम में, युवा पत्रकार जावेद रहमानी ने बताया कि उर्दू भारत की अपनी भाषा है, जिसका विकास इसी मिट्टी में हुआ. "आज दुनिया भर में उर्दू साहित्य, समाचार और फिल्म इंडस्ट्री में उर्दू का व्यापक प्रभाव देखा जा सकता है.. यह भाषा वैश्विक स्तर पर भी अपनी छाप छोड़ रही है."

सम्मान समारोह

इस अवसर पर प्रसिद्ध शायर शरफ़ नानपारवी और इकबाल मसूदी हुनर ने अपने कलाम पेश किए. सेमिनार में डॉ. याहया सबा, डॉ. मुजीब, डॉ. मोहम्मद मोहसिन, डॉ. नदीम अहमद, डॉ. पुष्पेंद्र कुमार नीम, उर्दू भाषा और समाज सेवा के लिए सतीश गर्ग, मोहम्मद जहूर, फ़हीम अहमद, इकबाल अंसारी, शाहबाज खान आदि को विशेष सम्मान से नवाज़ा गया.

कार्यक्रम में समाजसेवी शाहिद अंसारी, अफसर सैफी, मोहम्मद सादिक, याक़ूब खान, ज़ाहिद हुसैन, प्रेरणा शर्मा समेत बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे. संगोष्ठी की शुरुआत क़ुरान की तिलावत से हुई. उर्दू भाषा के उत्थान और संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है.

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इस तरह की संगोष्ठियाँ नई पीढ़ी को इस भाषा से जोड़ने और इसके महत्व को समझाने में सहायक साबित होंगी. भाषा के प्रचार और रोजगार से जोड़ने के लिए इस तरह के अभियानों को और अधिक बढ़ावा देने की ज़रूरत है.