जितेंद्र पुष्प / गया ( बिहार )
उत्तर प्रदेश का फिरोजाबाद शहर चूड़ियों के निर्माण के लिए देश-दुनिया में अलग पहचान रखता है. इस दिशा में बिहार के गया शहर का भी एक वर्ग चल निकला है. इनकी बनाई लहठी की चूड़ियां देश के कई हिस्से में धूम मचा रही हैं.
लहठी यानी लाख की चूड़ियां, बिंदी... युवतियों और महिलाओं के लिए प्रमुख सौंदर्य प्रसाधन हैं. सुहागिन लहठी-चूड़ी, सिंदूर, बिंदी को सुहाग का प्रतीक मानती हैं. उपरोक्त सौंदर्य प्रसाधन के बिना सुहागिन महिलाओं का सोलह श्रृंगार अधूरा होता है. तीज त्यौहार, शादी - समारोह या अन्य खुशी के मौके पर महिलाओं को सजने - संवरने का पसंदीदा सौंदर्य प्रसाधन है कलात्मक लहठी और चूड़ियां.
बिहार के गया जिले के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में कलात्मक लहठी और चूड़ियां बनाने का कारोबार करने वाले गरीब युवक युवतियों और जरूरतमंद महिलाओं के जीवन में खुशहाली का रंग भर रहे हंै. इस जिले में कलात्मक लहठी और चूड़ी बनाने का कारोबार अब गृह उद्योग का रूप ले चुका है. मुस्लिम समुदाय के लोग इसे अपनाकर स्वावलंबी बन रहे हैं.
विष्णु की नगरी गया के वार्ड नंबर 6 में स्थित है इकबाल नगर. इकबाल नगर के लगभग हर घर में आकर्षक लहठी और चूड़ी का निर्माण किया जा रहा है. इकबाल नगर निवासी और गया करबला के सामने लहठी और चूड़ी निर्माण सामग्री के सप्लायर एच बी इंटरप्राइजेज ( हाजी बैंगल ) के प्रोपराइटर 40 वर्षीय शारिक अहमद बताते हैं, ‘’
यहां के युवक और युवतियों के हाथों में हुनर है. मुहल्ले के लगभग 30 प्रतिशत घरों में लहठी, चूड़ियां बनाने का कार्य किया जा रहा है.इस मुहल्ले के खुर्शीद अहमद कोरोना काल से पहले जयपुर (राजस्थान) में लहठी चूड़ी बनाने का कार्य करते थे.
कोरोना के समय खुर्शीद अपने घर इकबाल नगर आ गए. यहां ही उन्हांेने लहठी चूड़ी बनाने का काम अपने घर पर षुरू कर दिया. अब खुर्शीद की पत्नी और बच्चे भी लहठी बनाने का काम सीख कर अपने इनके काम में हाथ बटा रहे हैं.
फिरोज और शाहनवाज फुलवारी शरीफ ( पटना) निवासी हैं. दोनों गया शहर के मोरियाघाट स्थित लहठी चूड़ी के मेटेरियल सप्लायर ए वन बैंगल से लहठी चूड़ी बनाने की सामग्री खरीदने आए हैं.
दोनांे का फुलवारी शरीफ में लहठी चूड़ी बनाने का कारखाना है. उनके यहां कई युवक और युवतियां लहठी-चूड़ी बनाने का कार्य करते हंै. फिरोज बताते हंै, ’’ पहले जयपुर में रहकर एक मजदूर के रूप में चूड़ी कारखाना में कार्य किया.
अब यह काम अपने घर फुलवारी शरीफ में कर रहे हैं. परिवार और मुहल्ले के कुछ युवक - युवतियां काम सीख कर स्वरोजगार में लगे हैं.’’फिरोज बताते हैं कि लहठी बनाकर घर बैठे एक व्यक्ति 300 से 400 रुपए प्रतिदिन कमा लेता है.
फिरोज के अनुसार, गया का मोरियाघाट लहठी चूड़ी के निर्माण सामग्री की खरीद और निर्मित (लाह चूड़ी) की बिक्री का प्रमुख मंडी बन चुका है. षहर लहठी चूड़ी के थोक मंडी में बदल चुका है.
लहठी चूड़ी के मेटेरियल सप्लायर कुतुबुद्दीन और एच बी इंटरप्राइजेज के प्रोपराइटर शारिक अहमद लगभग एक दशक से इस व्यवसाय से जुड़े हैं. इस मंडी में एक दर्जन से अधिक मेटेरियल सप्लायर और दो दर्जन से अधिक निर्मित लहठी चूड़ी के थोक क्रेता - विक्रेता दुकानदार हैं.
मंडी में हर आकार - प्रकार के ब्राॅस, आयरन, प्लास्टिक, कांच पर डिजाइन करने के लिए केमिकल, पाउडर,स्टोन,फिगर, चेन, बुरादा सहित अन्य आवश्यक सामग्री उपलब्ध है. कुतुबुद्दीन बताते हैं, ‘‘ गया मंडी से गया जिले के बेलागंज, चाकंद, मानपुर, शेरघाटी, चंदौती, परैया, इस्माइलपुर, नवीनगर के अलावे नवादा,औरंगाबाद,जहानाबाद के लोग लहठी चूड़ी के निर्माण सामग्री खरीद कर ले जाते हैं और निर्मित लहठी यहां के मंडी में बेचते हैं.
मोरियाघाट में लहठी-चूड़ी के थोक व्यापारी लक्की बैंगल्स के प्रोपराइटर मोहम्मद शाह उमैर बताते है ’’ गया बिहार और झारखंड का थोक लहठी चूड़ी की मंडी है. गया में निर्मित लहठी चूड़ी बिहार के मगध प्रमंडल के अलावा पटना, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, छपरा, पूर्णिया, कटिहार, सुपौल,बख्तियारपुर, बगहा, मधुबनी, झारखंड प्रदेश के रांची, हजारीबाग, बोकारो, डाल्टेनगंज, गढ़वा,रामगढ़, पतरातु, पारसनाथ के व्यापारी गया में खरीददारी करने आते हैं.
कहावत है एक बनिया से बाजार नहीं बसता है. गया के लहठी-चूड़ी मंडी के मार्केट को भव्यता प्रदान करने में मोरियाघाट के फरहान बैंगल्स,फैशन बैंगल्स, न्यू एस के बैंगल्स, बथानी बैंगल्स, जिगर बैंगल्स, ब्यूटी बैंगल्स, एस पी बैंगल्स, नूर बैंगल्स, रोजी बैंगल्स, नगीना बैंगल्स, इंडियन बैंगल्स जैसे कई दर्जन दुकान हैं, जहां से लहठी-चूड़ी की थोक खरीद - बिक्री होती है.
शारिक अहमद बताते हैं, ‘‘गया में डिजाइनदार लहठी चूड़ी बनाने का काम करीब डेढ़ दशक से चल रहा है. कोरोना काल के बाद इस काम में काफी तेजी आई है. जो कारीगर जयपुर, कानपुर या अन्य स्थानों के कारखानों में लहठी बनाते थे, वे कोरोना को लेकर अपने घर आ गए.
यहां अपने घर पर चूड़ी लहठी बनाने लगे. निर्माण सामग्री गया में ही मिल जाता है. बिक्री भी यहीं हो रही है. धीरे - धीरे यह काम परिवार और आसपास के युवक - युवतियां भी सीख कर स्वरोजगार से जुड़ गए हैं.