मलिक असगर हाशमी /नई दिल्ली
जामिया हमदर्द विश्वविद्यालय के कुलपति, प्रोफेसर मोहम्मद अफशर आलम ने आगामी दस वर्षों में भारत को विश्व के तीन प्रमुख देशों में शुमार होने का विश्वास जताया. उन्होंने कहा कि ब्रिटिश शासन ने भारत को एकजुट नहीं रहने देने के लिए षड्यंत्र रचकर उसका विभाजन करवा दिया था. पहले पाकिस्तान और फिर बांग्लादेश का निर्माण इसी योजना का हिस्सा था.
उनका मानना है कि ब्रिटिश शासन को भय था कि यदि भारत एकजुट रहा तो वह अन्य देशों से आगे निकल जाएगा. उन्होंने छात्रों और उपस्थित लोगों से एकजुट रहकर देश के उत्थान में योगदान देने की अपील की.
ये विचार अफशर आलम ने जामिया हमदर्द के इस्लामिक स्टडीज विभाग में आयोजित पुस्तक विमोचन समारोह के दौरान रखे. इस कार्यक्रम में खुसरो फाउंडेशन और इस्लामिक स्टडीज विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘भारत की शरई हैसियत’ का हिंदी संस्करण लॉन्च किया गया. इस मौके पर पुस्तक के लेखक डॉक्टर जफर दारिक कासमी भी उपस्थित रहे.
भारतीय मुसलमानों का देशप्रेम और इतिहास
अपने संबोधन में अफशर आलम ने भारत में मुस्लिम समाज के देशप्रेम पर चर्चा की और कहा कि "हमने विभाजन के समय पाकिस्तान का विकल्प ठुकरा दिया था. भारतीय मुसलमान किसी भी अन्य नागरिक से कम देशभक्त नहीं हैं.
आजादी के संघर्ष में मुसलमानों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, जो देशभक्ति के उदाहरणों से भरा हुआ है." उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत के मुसलमानों ने हमेशा इस देश को अपना घर माना है और देशप्रेम उनके व्यक्तित्व का हिस्सा है.
‘दारूल हरब’ पर एक नई दृष्टि
इस कार्यक्रम में खुसरो फाउंडेशन की पुस्तक ‘भारत की शरई हैसियत’ में ‘दारूल हरब’ के विचार पर एक बौद्धिक बहस को बढ़ावा देने की कोशिश की गई है. आम धारणा है कि मुसलमान भारत को ‘दारूल हरब’ मानते हैं, जिसका अर्थ होता है "जहां संघर्ष अनिवार्य है या जहां से पलायन किया जा सकता है."
फाउंडेशन के कन्वीनर डॉ. हफीजुर्रहमान ने इस विषय पर बात करते हुए इसे एक ऐतिहासिक संदर्भ में रखा . कहा कि ‘दारूल हरब’ का मुद्दा अब पुरानी बात है, आज की दुनिया हर जगह ‘हाउस ऑफ पीस’ यानी ‘दारुल अमन’ है.
अफशर आलम ने कहा कि मिडिवल एज के दौरान कुछ धार्मिक अवधारणाएं चर्चा में थीं, लेकिन आज भारत में लोकतंत्र के सभी उदाहरण मौजूद हैं. भारत की भूमि पर ऐसा लोकतंत्र है जहां हर धर्म और समुदाय को बराबरी का दर्जा दिया गया है. उन्होंने कहा कि भारत के संविधान के तहत सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हैं.
सूफिज्म और भक्ति आंदोलन
अफशर आलम ने सूफिज्म और भक्ति आंदोलन का जिक्र करते हुए बताया कि भारतीय संस्कृति में इन आंदोलनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इन आंदोलनों ने भारत में आपसी भाईचारे और सौहार्द्र को मजबूत किया है. आज भी उनका प्रभाव समाज में देखा जा सकता है. सूफिज्म के विचार और भक्ति आंदोलन भारतीय लोकतंत्र के मूल तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं.
भ्रांतियों को दूर करने की अपील
समारोह के दौरान अफशर आलम ने छात्रों से अपील की कि वे ‘दारूल हरब’ और मुसलमानों के प्रति फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिए संवाद स्थापित करें. उन्होंने कहा कि भारत में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए.
जामिया हमदर्द भी इस एकजुटता का उदाहरण है. उनके अनुसार, जामिया हमदर्द देश के शीर्ष 40 विश्वविद्यालयों में से एक है और यह सरकार से उचित समर्थन प्राप्त कर रहा है, जो इस बात का प्रमाण है कि अल्पसंख्यक संस्थान भी भारत के लोकतंत्र में समान अधिकार और अवसर प्राप्त कर सकते हैं.
संविधान सभी को समान अवसर देता है : अध्यक्ष,इंटरफेथ हार्मनी फाउंडेशन
समारोह के गेस्ट ऑफ ऑनर, इंटरफेथ हार्मनी फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. ख्वाजा इफ्तिखार ने अपने वक्तव्य में ‘दारूल हरब’ के सिद्धांत को खारिज कर दिया और भारतीय संविधान की विशेषताओं पर चर्चा की.
उन्होंने कहा कि भारत का संविधान सभी नागरिकों को समान अवसर और अधिकार देता है, जिसके कारण मुस्लिम समाज के कई लोग सर्वोच्च पदों पर पहुंच चुके हैं. उन्होंने मुसलमानों के भारत को शरई तौर पर कैसे देखते हैं, इस बारे में स्पष्ट किया कि इस पर समाज में गलतफहमियों का प्रमुख कारण अविश्वास है. यदि सभी धर्मों के लोग गर्व से कहें "हम भारतीय हैं" तो यह देश की एकता का प्रतीक होगा.
डॉ. इफ्तिखार ने कहा कि भारत की ‘यूनिटी इन डायवर्सिटी’ एक अनूठी विशेषता है, जो सुख-दुख के साझा अनुभवों में परिलक्षित होती है. उन्होंने छात्रों को सलाह दी कि वे एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान का भाव रखें और अपने आस-पास के समुदायों को समझने का प्रयास करें.
छात्रों को संदेश: संवाद की आवश्यकता
कुलपति अफशर आलम ने छात्रों को सकारात्मक सोच विकसित करने की सलाह दी और पड़ोसी देशों में हो रही घटनाओं का उदाहरण देकर कहा कि भारत के संविधान की ताकत के कारण यहां लोग सुरक्षित हैं. उन्होंने कहा कि भारत के लोकतंत्र में धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक सद्भाव की मिसालें देखने को मिलती हैं.
अन्य के विचार
इस्लामिक स्टडीज विभाग के अध्यक्ष प्रो. अरशद हुसैन ने खुसरो फाउंडेशन की पहल की सराहना करते हुए इस बात पर जोर दिया कि ऐसे संवादों के माध्यम से समाज में फैली भ्रांतियों को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए.
डॉ. सफिया आमिर और प्रो. हुसैन ने भी अपने विचार व्यक्त किए और भाईचारे को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल दिया. पुस्तक के लेखक, डॉ. जफर दारिक कासमी ने कहा कि इस किताब का उद्देश्य समाज में फैल रही गलतफहमियों को दूर करना और भाईचारे को बढ़ावा देना है.
कार्यक्रम का शुभारंभ और समापन
कार्यक्रम की शुरुआत कुरान की तिलावत से हुई, इसके बाद छात्र रेहान ने नात और दरूद पेश किया. स्वागत भाषण खुसरो फाउंडेशन के निदेशक सिराज कुरैशी ने दिया. इस अवसर पर फाउंडेशन के एक अन्य निदेशक रामवीर सिंह और आवाज़-द-वॉयस के चीफ एडिटर आतिर खान भी उपस्थित थे. इस्लामिक स्टडीज के अध्यक्ष द्वारा अध्यक्षता की गई इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. हफीजुर्रहमान ने किया.