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हाजियों की मौत की खबरों से भ्रम फैलाः लियाकत अली अफाकी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  mahashmi@awazthevoice.in | Date 21-06-2024
The news about the death of pilgrims has spread confusion: Liaquat Ali Afaqui
The news about the death of pilgrims has spread confusion: Liaquat Ali Afaqui

 

मंसूरुद्दीन फरीदी /नई दिल्ली

हज 2024 के पिछले पांच दिनों में 29 भारतीय हज  यात्रियों की मृत्यु हो गई है, जबकि अन्य 29 हज यात्रियों की हज से पहले प्राकृतिक कारणों से मृत्यु हो गई है. अब तक हज के दौरान 58 भारतीय यात्रियों की मृत्यु हो गई है.हाजियों में अधिकतर बुजुर्ग हैं जिनकी उम्र 60साल से अधिक है.लेकिन खास बात यह है कि इस भीषण गर्मी में भारतीय सीआईएसएफ और आईटीबीपी के जवानों ने न सिर्फ भारतीय हज यात्रियों को सुरक्षित स्थानों या टेंटों तक पहुंचाया,दूसरे देशों के संकटग्रस्त तीर्थयात्रियों की भी मदद की.

आवाज द वाॅयस से बात करते हुए हज कमेटी ऑफ इंडिया के सीईओ लियाकत अली अफाकी ने हज के आखिरी पांच दिनों के दौरान अत्यधिक गर्मी के कारण जानमाल के नुकसान और हालात का खुलासा किया. उन्होंने कहा कि निस्संदेह गर्मी की तीव्रता का अनुमान लगाना मुश्किल होगा,क्योंकि अराफात और मीनाके बीच तापमान 52 सेल्सियस था.

इतनी धूप में कई किलोमीटर का सफर जिंदगी का सबसे कठिन दौर साबित हुआ. इन हालात में भी भारतीय दल के स्टाफ ने कोई कसर नहीं छोड़ी.दरअसल, रविवार को हज 2024 खत्म हो गया. 18 लाख हज  यात्रियों ने हज किया और साथ ही यह भी घोषणा की गई कि हज पूरा और सफल रहा. लेकिन हज के दूसरे दिन अचानक 550 हज  यात्रियों के अत्यधिक गर्मी और ठंड के कारण सड़कों पर मरने की ख़बरें आ गईं, जिनमें से अधिकांश मिस्र के हज यात्री थे, जिनकी संख्या 300 से अधिक थी.

इस संबंध में जब आवाज द वॉयस ने हज मिशन पर सऊदी अरब में मौजूद सीईओ लियाकत अली अफाकी से संपर्क किया तो उन्होंने हालात पर रोशनी डालते हुए कहा कि कई खबरें गलतफहमियां पैदा कर रही हैं. दरअसल,भारत के 58तीर्थयात्रियों की मौत हो गई है लेकिन उनमें से 29 की मौत प्राकृतिक कारणों से हुई है.जिनकी मौत हज से पहले या उसके दौरान बीमारी से हुई है.

याद रखना चाहिए कि पिछले साल हज के दौरान भारत के 200से अधिक तीर्थयात्रियों की प्राकृतिक कारणों से मृत्यु हो गई थी.गौर करने वाली बात यह भी है कि हज में दूसरा सबसे बड़ा दल भारत का है.इस बार यह संख्या 175हजार थी.

 मदद कैसे करें

हज मिशन के कार्यवाहक लियाकत अली अफाकी ने कहा कि हज के आखिरी पांच दिनों में गर्मी बहुत ज्यादा थी. इस बीच, अराफात मैदान से लेकर मीना तक, जहां हज यात्रियों के बीमार होने की खबर आई, हमारे स्वयंसेवक उस स्थान पर पहुंचे, व्हीलचेयर, स्ट्रेचर और उन्हें अपने कंधों पर उठाकर चिकित्सा केंद्र या तम्बू तक ले गए.जिसके लिए इन स्वयंसेवकों को कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ा.

परेशान हज यात्रियों की तलाश भी करनी पड़ी. इसके बावजूद स्वयंसेवकों ने भीषण गर्मी और धूप में हिम्मत नहीं हारी. उन्होंने एक घटना बताई कि कैसे एक भारतीय स्वयंसेवक ने राजमार्ग पर फंसे एक अफ्रीकी हज यात्री की जान बचाई.आईटीबीपी के जवान मोहम्मद सफ़ी एक भारतीय हज यात्री को अपने कंधों पर ले जा रहे थे तभी उनकी नज़र एक नाइजीरियाई हज यात्री पर पड़ी जो बेहोश था.

मोहम्मद सैफी भारतीय हज यात्री को तंबू तक ले गए और फिर नाइजीरियाई हज यात्री की मदद करने के लिए वापस गए.उसे अपने कंधे पर बिठाकर ढाई किलोमीटर दूर अपने तंबू तक ले गए.उन्होंने कहा कि उन्हें अफ़्रीकी तंबू में देखकर ख़ुशी हुई .सभी ने मोहम्मद सफ़ी को पुरस्कार देकर पुरस्कृत करने की कोशिश की, लेकिन मोहम्मद सफ़ी ने यह कहते हुए नकद पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया कि उनमें केवल सेवा का जुनून है.

दूसरे दिन, नाइजीरियाई तम्बू से मुहम्मद सफ़ी को उनकी भावना के लिए सामूहिक रूप से धन्यवाद देने के लिए आमंत्रित किया गया था, लियाकत अली अफ़ाकी ने कहा कि एक घटना थी जहां लखनऊ के एक जोड़े को तीन दिनों में चार बार रखा गया था .हर बार हमारे स्वयंसेवकों ने खोज की थी.महिला एक बार गलत बस में चढ़ गई थी जिसके बाद उसने अपने आस-पास की तस्वीरें भेज दीं.उन्हें देखकर स्वयंसेवक उनके पास पहुँचे और उन्हें वापस ले आये.

उन्होंने कहा कि इस बार सऊदी अधिकारियों ने अराफात और मीना में अन्य देशों की एम्बुलेंस को अनुमति नहीं दी.गर्मी इतनी तेज थी कि बूढ़े लोग खुले आसमान के नीचे बेहोश होने लगे. जब हमें खबर मिली तो हमारे स्वयंसेवकों को पैदल ही भागना पड़ा.

उपलब्ध सुविधाओं की मदद से बीमारों को ढूंढकर लाना पड़ा.प्रत्येक स्वयंसेवक को तीर्थयात्रियों की सहायता के लिए दो से तीन किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता था.अगर हमारे पास एंबुलेंस होती तो ये काम और तेजी से हो जाता. उन्होंने कहा कि ऐसे समय में हमारी एंबुलेंस दूसरे देशों के तीर्थयात्रियों की भी मदद करती हैं.

एक और महत्वपूर्ण बात, उन्होंने कहा कि इस बार भीड़ को नियंत्रित करने के लिए जमरात से वापसी का मार्ग बदल दिया गया था, लेकिन बुजुर्ग तीर्थयात्रियों के लिए वापसी यात्रा में अधिक समय लगा.कोई गर्मी से परेशान था तो कोई रास्ता भटकने के डर से परेशान था.

लियाकत अली अफाकी ने आवाज द वॉयस को बताया कि हज के दौरान अत्यधिक गर्मी घातक होने का एक मुख्य कारण उम्र है.मृतकों में अधिकतर की उम्र साठ वर्ष से अधिक है.गर्मी निश्चित रूप से अवर्णनीय थी.तीर्थयात्रियों को इस गर्मी में खुले आसमान के नीचे लगभग आठ किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ी.जो इस गर्मी में जीवन की सबसे कठिन परीक्षा बन जाती है.

उन्होंने कहा, महत्वपूर्ण बात यह है कि अधिकांश भारतीय तीर्थयात्री जमरातों के आसपास थे, जो पांच सौ गज के दायरे में रहते थे, जिसके कारण वे बड़े पैमाने पर जोखिम में थे.ज्यादा देर रुकना नहीं पड़ा. जबकि हज कमेटी ने एक दिन पहले ही भारतीय हज यात्रियों को रात 11 बजे से सुबह 4 बजे के बीच बाहर न निकलने के निर्देश जारी किए थे. जिन लोगों ने इसका पालन किया वे सुरक्षित रहे.

' उन्होंने कहा कि हज कमेटी ने 70साल से अधिक उम्र के हज यात्रियों के लिए एक सहायक रखने की शर्त रखी है ताकि जो बुजुर्ग हज यात्री हैं उनके साथ हर समय कोई न कोई हो.

हर साल हज एक नई चुनौती

लियाकत अली अफाकी ने कहा कि हमने ऐसे हज यात्रियों को वापस भेज दिया है जो अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने में विफल रहे हैं, जबकि इस संबंध में आगे की जांच की जा रही है.अगर कोई इस तरह नजर आया तो उसे भी वापस भेज दिया जाएगा.

उन्होंने कहा कि ध्यान देने वाली बात यह है कि खादिम हज के पास बचाव या राहत कार्य का कोई अनुभव या प्रशिक्षण नहीं है. वे केवल हज यात्रियों के लिए मार्गदर्शक के रूप में काम करते हैं.वहीं राहत कार्य में अर्धसैनिक बलों को लगाया गया है. अब भविष्य में हम कोशिश करेंगे कि खादिम हज्जाज को भी इन परिस्थितियों का सामना करने का अनुभव हो.

उन्होंने कहा कि एक बात यह भी विचार करने लायक है कि सऊदी अरब सरकार के कानून या नियम हर साल बदलते हैं, इसलिए खादिम हज को सब कुछ पता होना संभव नहीं है.उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है संदेह है कि खामियां या कमियां होंगी, हम उन पर विचार करेंगे.हर साल हज एक नई चुनौती है.'