बिहार में उर्दू की लड़ाई अब सड़कों पर

Story by  सेराज अनवर | Published by  [email protected] | Date 15-12-2024
The fight for Urdu is now on the streets in Bihar
The fight for Urdu is now on the streets in Bihar

 

सेराज अनवर/पटना 

 उर्दू है जिसका नाम हमीं जानते हैं 'दाग़' 
हिन्दोस्तां में धूम हमारी जुबाँ की है !!


बिहार में उर्दू अपने हाल पर आंसू बहा रही है. द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्राप्त होने के बाद भी यह मीठी ज़बान राज्य में बेगाना बनी हुई है.उर्दू के विकास और विस्तार के लिए बनी बिहार उर्दू अकादमी और बिहार राज्य उर्दू परामर्शदात्री समिति गुज़श्ता छह सालों से बिना सचिव,बिना चेयरमैन के चल रहे है. यानी कमिटी का गठन ही नहीं हुआ है.जबकि,उर्दू अकादमी के पदेन अध्यक्ष मुख्यमंत्री होते हैं.

उर्दू को लेकर अन्य कई मसअले हैं.उर्दू के हक़-हक़ुक़ की लड़ाई अब सड़कों पर आ गयी है.उर्दू काउंसिल हिन्द ने शनिवार को राजधानी पटना में एक बड़ा धरना का आयोजन कर कई मांगे रखी.अस्सी के दशक के बाद उर्दू को अपना जायज़ अधिकार दिलाने के लिए उर्दू से मोहब्बत करने वाले लोग सड़क पर उतरे.


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 द्वितीय राजभाषा वाला बिहार पहला राज्य 

बिहार पहला राज्य है ,जहां उर्दू को सबसे पहले द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्रदान हुआ. डॉ. जगन्नाथ मिश्रा जब दूसरी बार 1980 में बिहार के मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने 10 जून को अपने कैबिनेट की पहली बैठक में  उर्दू को द्वितीय राजभाषा का दर्जा देने का फैसला  लिया.

हालांकि,उनके इस फैसले का काफी विरोध  हुआ.उर्दू वालों ने उन्हें मीर ए उर्दू के ख़िताब से नवाज़ा था.जबकि,उर्दू विरोधियों ने उन्हें मौलवी जगन्नाथ मिश्रा कह कर चिढ़ाया था.उस वक़्त उर्दू तहरीक अपने चरम पर थी. पहली बार उर्दू को चुनावी मुद्दा बनाया गया था.

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गांव-गांव में उर्दू तहरीक चल पड़ी थी.लोग सड़क पर थे.धरना-जुलूस चल रहा था.ग़ुलाम सरवर,बेताब सिद्दीकी,शाह मुश्ताक़,तक़ी रहीम,अब्दुल मोग़नी आदि उर्दू के झंडाबरदार थे.इनकी अगुआई में उर्दू बिहार में परवान चढ़ रही थी.

मगर उर्दू को बिहार में दूसरी सरकारी ज़बान का दर्जा हासिल होने के बाद उर्दू तहरीक आहिस्ता-आहिस्ता सुस्त पड़ गयी.उर्दू अंज़ूमन दो हिस्सों में बंट गयी.एक का नेतृत्व ग़ुलाम सरवर ने किया और दूसरे की कमान अब्दुल मोग़नी ने सम्भाल ली.राज्य में अभी उर्दू के तीन संगठन काम कर रहे हैं.

अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू सरकारी वित्तीय सहायता प्राप्त संगठन है. यह सरकारी संगठन है.इसके सचिव अब्दुल कय्यूम अंसारी हैं.दूसरा संगठन उर्दू एक्शन कमिटी उर्दू के बड़े सहाफ़ी और कौमी तंज़ीम के सम्पादक अशरफ फ़रीद की सदारत में चल रही है.तीसरा संगठन उर्दू काउंसिल हिन्द है .जिसके अध्यक्ष पूर्व मंत्री शमायल नबी हैं.उर्दू काउन्सिल हिन्द ने ही धरना का आयोजन किया.
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 उर्दू काउंसिल हिन्द की क्या है मांग?

 1. छः वर्षों से बंद उर्दू परामर्शदातृ समिति का पुनर्गठन किया जाए और उसे संवैधानिक अधिकार दिया जाए.
 2. छः वर्षों से स्थगित बिहार उर्दू अकादमी का पुनर्गठन किया जाए. 
 3. 12 हजार उर्दू टीईटी अभ्यर्थियों का रिजल्ट जारी किया जाए. 
4. हाई स्कूल के मानक मंडल में एक उर्दू शिक्षक का इजाफा किया जाए. 
 5. उर्दू आबादी के छात्रों के लिए मैट्रिक तक उर्दू की अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था की जाए. 
 6. नीतीश कुमार की घोषणा के मुताबिक हर स्कूल में एक उर्दू शिक्षक बहाल किया जाए.
 7. उर्दू स्कूलों के विद्यार्थियों को उर्दू में किताबें उपलब्ध करायी जाए. 
 8. उर्दू अखबारों को हिंदी के बजाय उर्दू में विज्ञापन दिया जाए.
 9. मदरसा इस्लामिया शमसुल होदा, पटना के सभी पद लम्बे अंतराल से रिक्त हैं, उन पर नियुक्ति किया जाए. 
10. "अरबी एवं फारसी शोध संस्थान" पटना के सभी पद लंबे समय से खाली पड़े हैं उन पर नियुक्ति किया जाए. 
11. मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष की बहाली की जाए एवं इसका पुनर्गठन किया जाए. 
12. बिहार के अल्पसंख्यक आयोग का पुनर्गठन किया जाए. 
13. उर्दू निदेशालय का लम्बे समय से बंद पड़े राजभाषा शिखर सम्मान पुरस्कार जारी किया जाए.
14. बिहार के सभी विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों में जहां उर्दू विभाग की स्थापना नहीं हुई है, वहां द्वितीय राजभाषा उर्दू का विभाग खोला जाए. 
 15. विभागीय उर्दू परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले सरकारी सेवकों को एक अतिरिक्त वेतन वृद्धि दी जाए.

 
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 बिहार उर्दू अकादमी का काम क्या है?

 उर्दू भाषा और साहित्य के प्रचार-प्रसार के साथ ही उसके विकास का काम करने के लिए 1972 में बिहार उर्दू अकादमी की स्थापना हुई थी.इसके पदेन अध्यक्ष मुख्यमंत्री होते हैं. छह साल से न कमेटी है न सचिव. डॉ.मुश्ताक़ अहमद नूरी के बाद यहां कोई पूर्ण रूपेण सचिव नहीं हुए.

सचिव और कमेंट नहीं रहने की वजह से कामकाज ठप है.उर्दू भाषा संस्कृति को बढ़ावा देने और विचारों और अनुभवों के आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से यह विभिन्न अवसरों पर सेमिनार, मुशायरा, सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि आयोजित करती है.

यह जरूरतमंद उर्दू लेखकों के लिए रचनात्मक लेखन को प्रकाशित करने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है.इसी तरह छह साल से उर्दू परामर्शदातृ समिति के चेयरमैन का पद खाली है.बिहार सरकार ने मंत्रिमंडल सचिवालय के अधीन उर्दू परामर्शदातृ समिति का गठन किया था. शफ़ी मशहदी के बाद से चेयरमैन का पद खाली है.कमेटी भी नहीं है.परामर्श देने वाला भी कोई नहीं है. इस वजह से कई बार सरकार संकट में पड़ जाती है.

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पटना के गर्दनीबाग में धरना 

उर्दू काउंसिल हिन्द के महासचिव डॉ असलम जावेदां ने आवाज़ द वायस से कहा कि शिक्षा विभाग ने दिनांक 15 मई 2020 को पत्रांक 1099, द्वारा मैट्रिक में उर्दू की अनिवार्यता समाप्त करके उर्दू आबादी के छात्रों को अपनी मातृभाषा की शिक्षा प्राप्त करने से वंचित कर दिया है.यही नहीं धीरे -धीरे सैंकड़ों उर्दू मकतब और उर्दू स्कूलों को हिन्दी स्कूलों में बदल दिया गया है.

उर्दू शिक्षकों का पदस्थापन उन स्कूलों में किया जा रहा है जहां उर्दू के बच्चे नहीं हैं और जहां उर्दू के बच्चे हैं वहां उर्दू शिक्षक का पदस्थापन नहीं किया जाता है. उर्दू डायरी का प्रकाशन भी रोक दिया गया है.दो दिवसीय जश्न-ए-उर्दू और ऑल इंडिया मुशायरा का आयोजन भी कई वर्षों से बंद है. इस तरह एक सुनियोजित साजिश के तहत द्वितीय राजभाषा उर्दू को धीरे-धीरे समाप्त किया जा रहा है

.शमायल नबी सरकार को चेताया है कि यदि उर्दू की समस्याओं को जल्द हल नहीं किया गया तो इससे भी बड़ा आंदोलन होगा.उन्होंने कहा कि द्वितीय राजभाषा और अकलियतों की मातृभाषा उर्दू पूर्णतः उपेक्षित है और उसके खुली नाइंसाफी की जा रही है

.एआईएमआईएम के विधायक अख्तरुल ईमान,इंजीनियर आफ़ताब आलम,एडवोकेट आदिल हसन आदि धरना में मौजूद थे.अस्सी के दशक के बाद विधानसभा चुनाव से पूर्व उर्दू तहरीक एक बार फिर अंगड़ाई ले रही है.



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