बाड़मेर के रेगिस्तान में चमक रहा सैयद गुलाम हुसैन जिलानी के सपनों का 'कैम्ब्रिज’

Story by  फरहान इसराइली | Published by  [email protected] | Date 09-11-2024
The 'Cambridge' of Syed Ghulam Hussain Jilani's dreams is shining in the desert of Barmer
The 'Cambridge' of Syed Ghulam Hussain Jilani's dreams is shining in the desert of Barmer

 

फ़रहान इसराईली/ जयपुर

राजस्थान के पश्चिमी जिले बाड़मेर का एक छोटा सा गांव सूजा शरीफ, जिसे सरकारी रिकॉर्ड में सूजों का निवाण के नाम से दर्ज किया गया है. आज शिक्षा की मिसाल बन गया है.इस गांव में 1870 ई. (1927 विक्रम संवत) में दर्स जाति के लोगों ने बसना शुरू किया और मस्जिद तथा मदरसे का निर्माण करवाया.

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लेकिन इस गांव का असली रूपांतरण तब शुरू हुआ जब यहां के निवासी, पीर सैयद गुलाम हुसैन शाह जिलानी ने लगभग 20 वर्ष पहले एक ऐसा सपना देखा जिसमें केवल दीनी तालीम ही नहीं,दुनियावी शिक्षा भी शामिल थी.उन्होंने अपने इस मिशन को किसी छोटे मदरसे के तहखाने में सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे एक विश्व स्तरीय संस्थान का रूप देने का दृढ़ निश्चय किया.

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शिक्षा का संकल्प और एक ऐतिहासिक सफर

पीर सैयद गुलाम हुसैन शाह जिलानी ने एक टीम तैयार की जो उनके इस मिशन में उनका साथ दे सके.उन्होंने इस संस्था को केवल तालीम का माध्यम नहीं बनाया.यहां आने वाले छात्रों को बेहतरीन सुविधा देने का सपना देखा.इस सपने को साकार करने के लिए उन्होंने पहले विशाल हॉस्टल और सभी सुविधाओं वाला स्कूल भवन तैयार किया, जिसमें छात्रों के स्वस्थ शरीर और मानसिक विकास के लिए सभी आवश्यक प्रबंध किए गए.

आज, 20 वर्षों के कठिन परिश्रम और त्याग के बाद, पीर साहब के इसी सपने को हम इस शिक्षा संस्थान के रूप में देख सकते हैं.अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं और आराम का त्याग कर, उन्होंने मुसलमानों की तरक्की में शिक्षा का दीपक जलाया.यही वजह है कि उनकी उम्र का आधा सफर पूरा करते हुए उनका स्वास्थ्य भी इस संघर्ष का प्रमाण है.उन्होंने इस संस्थान को विश्व स्तरीय बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया.

रेगिस्तान में एक 'कैम्ब्रिज' जैसी झलक

राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 525किमी दूर, बाड़मेर जिले के रेतीले धोरों और वीरान जंगलों के बीच स्थित सूजा शरीफ में, दारुल उलूम फैजे सिद्दीकिया का विशाल भवन किसी विदेशी विश्वविद्यालय की झलक प्रस्तुत करता है.प्रवेश द्वार पर ही इसके भव्य निर्माण का एहसास होता है.

इस संस्थान में तीन मंजिला विशाल हॉस्टल भवन है, जिसमें छात्रों के ठहरने के लिए 10बड़े हॉल हैं.प्रत्येक हॉल में 12छात्रों के लिए अलग-अलग बिस्तर, अलमारी, और नहाने के लिए अलग स्थान जैसी सुविधाएं दी गई हैं.छात्रों को यहां अच्छी जीवनशैली देने के लिए सभी सुविधाएं मुहैया करवाई गई हैं.

सरकारी सहयोग और समाज का योगदान

इस परियोजना में भारत सरकार के अल्पसंख्यक विभाग के मौलाना आजाद एजुकेशन फाउंडेशन, बाड़मेर के सांसदऔर स्थानीय विधायक ने आर्थिक सहयोग दिया है, जिससे इस संस्थान को नई ऊंचाइयां मिल सकीं.दारुल उलूम फैजे सिद्दीकिया के तीन मंजिला स्कूल भवन में प्रत्येक मंजिल पर 10 हॉल हैं, जहां छात्रों के बैठने की उचित व्यवस्था है.

इसके साथ ही,स्कूल में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा गया है, जिसके लिए वजू खाने बनाए गए हैं.2008में, इस भवन की नींव राजस्थान सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री अमराराम चौधरी ने रखी थी.

अतिथि सत्कार का इंतजाम

इस संस्थान में आने वाले मेहमानों के लिए गेस्ट हाउस बनाया गया है, जिसमें अटैच बाथरूम सहित घर जैसी सुविधाएं हैं.यहां अतिथि सत्कार के लिए अलग से भोजनशाला भी है.इसके अलावा, छात्रों के लिए एक विशाल भोजनशाला टीन शेड में बनाई गई है, जहां 1000 लोग एक साथ भोजन कर सकते हैं.भविष्य में इस भोजनशाला को आरसीसी भवन में बदलने की योजना है, जिसमें भी एक साथ 1000 लोग भोजन कर पाएंगे.

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आधुनिकता और परंपरा का संगम

छात्रों के खाने के लिए यहां रोटी बनाने की आधुनिक मशीन लगाई गई है, जो एक घंटे में 2500रोटियां बना सकती है.2013में, इस परिसर में एक विशाल मस्जिद 'सिद्दीकिया जामिया मस्जिद' का निर्माण भी किया गया, जहां प्राकृतिक रोशनी और एयर कंडीशन की व्यवस्था की गई है ताकि लोग शांति से इबादत कर सकें.

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दीनी और दुनियावी तालीम का संगम

दारुल उलूम में कक्षा 1 से 12 तक का स्कूल संचालित होता है, जिसमें वर्तमान में 350छात्र तालीम हासिल कर रहे हैं.इसके साथ ही, यहां कुरान की तालीम से लेकर मौलवी बनने तक की पढ़ाई भी करवाई जाती है.नूर मोहम्मद, जो इस्लामी तालीमात देने वाले अध्यापक हैं, बताते हैं कि यहां बच्चों को दीनी और दुनियावी दोनों तालीम दी जाती है ताकि वे समाज में हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना सकें.

पीर सैयद गुलाम हुसैन शाह जिलानी का यह प्रयास न केवल बाड़मेर जिले में, बल्कि पूरे राजस्थान और देश में मुस्लिम समाज के लिए प्रेरणादायक है.रेगिस्तान की भूमि में शिक्षा की इस मशाल को जलाकर उन्होंने समाज के लिए एक नई राह खोली है.