मोहम्मद अकरम/ नई दिल्ली
रमजान का पवित्र महीना शुरू होते ही दिल्ली की जामा मस्जिद की रौनक और चहल-पहल बढ़ गई है. खासकर शाम के बाद का दिलकश मंजर देखते बनता है. इसके साथ ही जामा मस्जिद के इर्द-गिर्द दुकान लगाने वालों की आमदनी में भी बड़ी बढ़ौतरी हुई है. शंकर और प्रमोद अपनी दुकानदारी से इस कदर खुश हैं कि पूछते ही बोल पड़ते हैं-‘इस दिन का हमें बेसब्री से इंतजार रहता है.’
रमजान के महीने में दिल्ली और एनसीआर के अलावा आसपास के शहरों से भी लोग भारी संख्या में जामा मस्जिद पहुंचते हैं. दिनभर खरीदारी के बाद मस्जिद में रोजा इफ्तार, तरावीह और सेहरा का सिलसिला चलता है. यानी मस्जिद और इससे लगते बाजारों में शाम को रौनक उतरती है और फजर की नमाज तक बनी रहती है. देश की अन्य मस्जिदों की तरह यहां भी सामूहिक इफ्तार की व्यवस्था है. इसके लिए लोग पंक्तिबद्ध होकर बैठते हैं.
जाहिर सी बात है, जब बड़ी संख्या में एक जगह लोग इकट्ठे होंगे तो आसपास के दुकानदारों की आमदनी में इजाफा होगा ही. इसलिए दुकानदारों ने ग्राहकों को लुभाने के लिए अपनी दुकानों को सुंदर रोशनी और झालरों से सजा रखा है.
शाकाहारी होटल में जुट रही भीड़
इफ्तार और मगरिब की नमाज अदा करने के बाद जामा मस्जिद पहुंचने वाले देर रात तक इसके आसपास की तंग गलियों में लजीज खाने और खरीदारी के लिए भटकते रहते हैं. इस इलाके में खाने पीने की दुकानों की भरमार है. अब्दुल्लाह दरवाजा से कुछ दूरी पर मौजूद कृष्ण होटल में भी रमजान के दिनों में शाकाहारी खाना खाने वालों की भीड़ लगी रहती है.
जामा मस्जिद के आसपास अधिकतर मांसहारी होटल हैं, जिसे हर कोई खाना पसंद नहीं करता. ऐसे ही लोग कृष्णा होटल का स्वादिष्ट भोजन चखने पहुंचते हैं.
इस महीने का रहता है इंतजार
— Awaz -The Voice हिन्दी (@AwazTheVoiceHin) March 31, 2023
दस साल से कृष्णा शाकाहारी होटल चलाने वाले प्रमोद कुमार कहते हैं,“ कई सालों से यहां होटल चला रहा हूं. इसके बावजूद हमें रमजान का इंतजार रहता है. इस दौरान दिन में होटल आने वालों का टोटा रहता है, पर इफ्तार के बाद ग्राहकों की लाइन लग जाती है. इस महीने अन्य महीनों के मुकाबले कई गुणा अधिक आमदनी होती है. इसके अलावा इलाके में और किसी होटल में शाकाहारी भोजन नहीं मिलता. सभी रोजेदार मांसाहारी भोजन लेना पसंद नहीं करते. ”
आमदनी में इजाफा
प्रमोद कुमार की तरह उमेश कुमार को भी रमजान आने का इंतजार रहता है. वह जामा मस्जिद से लगते मीना बाजार के सामने कपड़े की रेवड़ी लगाते हैं. कहते हैं, उन्हें भी इस महीने का शिद्दत से इंतजार था. वह पिछले दो साल से यहां कपड़े बेच रहे हैं. उनके पास छोटी आमदनी वाले कपड़े खरीदने आते हैं. मगर रमजान में बिक्री अच्छी हो जाती है. उन्हें ईद करीब आने पर आदमी में और इजाफे की उम्मीद है.
मस्जिद के पास कपड़े की दुकान लगाने वाले अब्दुल शकूर भी रमजान से बेहद खुष दिखे. वह अपने मामा के साथ पांच साल से कपड़े की दुकान लगा रहे हैं. बातचीत में कहते हैं कि पिछले दो-तीन साल कोरोना ने जीना बेहद मुश्किल कर दिया था. अब जीवन पटरी पर आई है .
यह रमजान भी काफी रौनक वाला है. रमजान में जामा मस्जिद आने वाले खाने पीने का सामान के अलावा कपड़े की खरीदारी जरूर करते हैं. ग्राहक उनके पास भी ठीक-ठाक संख्या में आ रहे हैं. उन्होंने उम्मीद जताई कि कोरोना से जो नुकसान हुआ है, इस रमजान-ईद से शायद कुछ भरपाई हो पाए.
इफ्तार बाद आइसक्रीम
जामा मस्जिद के अब्दुल्ला गेट के नजदीक सालों से आईस्क्रीम की दुकान चलाने वाले शंकर प्रसाद यादव का कहना है कि रमजान के दिनों में शाम के बाद लोग उनके पास पहुंचने लगते हैं. यह क्रम रात 11-12बजे तक चलता रहता है. एक प्रश्न के उत्तर में कहते हैं ’’मैं यूपी के कासगंज का रहने वाला हूं. हमारे पिताजी भी जामा मस्जिद के इलाके में दुकान लगाते थे.
अब उनकी तबीयत ठीक नहीं रहती . उनका काम मैं संभालता हूं. रमजान आया तो मेरी ड्यूटी बढ़ गई. ज्यादा कमाई करनी है तो देर रात तक दुकान तो लगानी ही पड़ेगी. वह कहते हैं आम दिनों में दिन-रात कर के भी दो हजार रुपये नहीं कमा पाता हूं. अभी कमाई बढ़ गई है. रोजाना की कितनी कमाई हो रही है. यह पूछने पर वह जवाब टाल गए.
यहां पहुंच कर मिलता है सुकून
जामा मस्जिद में बदरपुर इलाके से रोजा इफ्तार करने पहुंची शमीमा खानम कहती हैं कि यह महीना लोगों से प्रेम और खुदा की इबादत का है. इस्लाम में रोजा हर किसी पर फर्ज है. में यहाँ हर साल रोजा इफ्तार करने आती हूं. जामा मस्जिद आकर बहुत अच्छा लगा. यहां का खूबसूरत नजारा कुछ अलग ही एहसास देता है. सब लोग साथ मिल कर इफ्तार करते हैं. इस बार भी परिवार के साथ जामा मस्जिद आई हैं.