देश के उज्जवल भविष्य और गाजा में शांति की दुआ के साथ हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया चिश्ती का 720 वां उर्स शुरु

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 02-11-2023
720th Urs of Hazrat Nizamuddin Auliya Chishti begins with prayers for the bright future of the country and peace in Gaza.
720th Urs of Hazrat Nizamuddin Auliya Chishti begins with prayers for the bright future of the country and peace in Gaza.

 

मोह्म्मद अकरम / नई दिल्ली

प्रसिद्ध मुस्लिम सूफी और आध्यात्मिक संत, हजरत निजामुद्दीन औलिया चिश्ती का उर्स पारंपरिक रूप से हर साल पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस बार उनके 720 वें यौम ए वफ़ात के मौके पर पांच दिवसीय सालाना उर्स का आगाज़ बुधवार को हुआ. दरगाह प्रशासन की तरफ से विशेष पंडाल लगाकर पूरी दरगाह को सजाया गया है. साथ ही रंग बिरंगे बिजली की रोशनी से  इसकी खूबसूरती में इजाफा हो रहा है.

 मगरिब की नमाज़ के बाद दरगाह के इमाम इस्लाम निजामी ने देश के उज्जवल भविष्य, शांति, फलस्तीन में अमन स्थापित के लिए दुआ कराई जिसमें सैकड़ों लोगों ने हिस्सा लिया. इससे पहले उर्स का आगाज़ तिलावत ए कुरान से हुआ. बड़ी संख्या में देश और विदेश से भक्त पहुंचने का सिलसिला जारी है.
 
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मध्य पूर्व में शांति के लिए प्रार्थना के साथ-साथ देश के विकास और समृद्धि के लिए भी प्रार्थना की गई. जिसमें सभी की सेहत और तरक्की के लिए दुआएं मांगी गईं. इस दौरान जायरीनों की भारी भीड़ उमड़ी. देश-विदेश से आए जायरीनों ने कुरान की तिलावत और दुआ में हिस्सा लिया. जिसके बाद कव्वाली की महफिल ने समां बांध दिया.
 
कव्वाली की शृंखला के जरिए औलिया हिंद हजरत निज़ामुद्दीन को शानदार श्रद्धांजलि दी गई।अंत में लंगर बांटा गया और दुआएं दी गईं.ध्यान रहे कि इस साल उर्स समारोह में देश और दुनिया के कोने-कोने से जायरीन और श्रद्धालु शामिल होंगे, वहीं पाकिस्तान और बांग्लादेश समेत कई देशों से भी जायरीनों के आने की उम्मीद है.
 
दरगाह हज़रत निज़ामुद्दीन के संरक्षक काशिफ़ अली निज़ामी ने बताया कि इस साल भी पाकिस्तान से तीर्थयात्री आए हैं, जिनकी संख्या करीब 130 है, इनमें से ज्यादातर पहाड़गंज के होटलों में ठहरे हैं, यह सिलसिला अगले कुछ दिनों तक जारी रहेगा.
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया का वार्षिक उर्स रबी-उल-थानी के चंद्र महीने की 16 तारीख को शुरू होता है और पांच दिनों तक चलता है.
 
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इस वर्ष के अनुसार, सभी उर्स समारोह 1 नवंबर से 5 नवंबर तक किए जाएंगे. 1 नवंबर को, नात की तिलावत के साथ कुरान की तिलावत और उर्स समारोह की औपचारिक शुरुआत हो गई.  गुरुवार को बड़ी रात के मौके पर रात आठ बजे कुरान की तिलावत के बाद रुजा शरीफ में विशेष नमाज अदा की जायेगी, फिर लंगर व तबरक का आयोजन किया जायेगा. जबकि तीन नवंबर शुक्रवार को सुबह ग्यारह बजे कुरान की तिलावत शुरू होगी.
 
इसी तरह शनिवार को सुबह कुरान की तिलावत कर दुनिया भर में अमन-चैन और खुशहाली की दुआ की जायेगी. शनिवार को पूरी रात कव्वाली होगी.जबकि उर्स का समापन रविवार को होगा। कव्वाली और दुआ के बाद शाम 6 बजे उर्स का समापन होगा.
 
शजरा खानी (वंशावली) भी पढ़ी गई
 
दरगाह के गद्दा नशीं सैयद अल्तमश निजामी ने बताया कि हर साल हजरत निजामुद्दीन औलिया के यौम ए वफात के मौके पर ये प्रोग्राम होते हैं, जिसे उर्स कहते हैं. उर्स यौमे वफात होता है. विसाल होता है अल्लाह तआला से मिलना, तो जो सूफी होते हैं तो वह इसे खुशी के तौर पर मनाते हैं कि आज का दिन उनकी रुह की मुलाकात अल्लाह से होती है. इस मौके पर शजरा खानी (वंशावली) भी पढ़ी गई. जिसमें हज़रत मोहम्मद सलल्लाहो अलैहे वसल्लम से लेकर हजरत निजामुद्दीन तक के वंशावली पढ़ी गई.
 
विभिन्न धर्मों के लोग यहां माथा टेकते हैं
 
अलतमश निज़ामी ने आगे बताया कि इस साल भी उर्स समारोह में भाग लेने के लिए पाकिस्तान से बड़ी संख्या में तीर्थयात्री आ रहे हैं. दरगाह के एक अन्य सेवक सैयद ओमान निज़ामी ने कहा कि उर्स के अवसर पर, विभिन्न धर्मों और सभी स्वभावों के लोग यहां मत्था टेकने और सिर झुकाने आते हैं.
 
कौन थे हजरत निजामुद्दीन औलिया
 
हजरत निजामुद्दीन औलिया का जन्म 1238 में उत्तर प्रदेश के बदायूं नामक एक छोटे से स्थान पर हुआ था. उन्होंने चिश्ती संप्रदाय का प्रचार और प्रसार करने के लिए दिल्ली की यात्रा की थी. यहां वह ग्यारसपुर में बस गए और लोगों को प्रेम, शांति और मानवता का पाठ पढ़ाया.
 
निजामुद्दीन औलिया ने हमेशा यह प्रचार किया कि सभी धर्मों के लोगों को अपनी जाति, पंथ या धर्म से बेपरवाह होना चाहिए. उनके जीवनकाल के दौरान हजरत नसीरुद्दीन महमूद चिराग देहलवी और अमीर खुसरो सहित कई लोग उनके अनुयायी बने.
 
हजरत निजामुद्दीन के वंशज करते हैं देखभाल
 
निजामुद्दीन औलिया की मृत्यु 3 अप्रैल, 1325 को हुई, इसके बाद तुगलक वंश के प्रसिद्ध शासक मुहम्मद बिन तुगलक ने हजरत निजामुद्दीन औलिया के दरगाह का निर्माण किया. वह हजरत निजामुद्दीन का बहुत बड़ा अनुयायी था. कई सौ सालों के बाद भी आज हजरत निजामुद्दीन के वंशज ही दरगाह की देखभाल करते हैं.