असम साहित्य सभा का 77वां पाठशाला सत्र: विज्ञान और साहित्य का अद्भुत संगम

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 04-02-2025
 'Pathshala Sahitya Sabha' made of bamboo and straw
'Pathshala Sahitya Sabha' made of bamboo and straw

 

मुकुट शर्मा / गुवाहाटी

सदियों पुरानी असम साहित्य सभा असम में राष्ट्रीय जीवन की संरक्षक है. भाषा, संस्कृति, साहित्य और राष्ट्रीय गरिमा को बनाए रखने में असम साहित्य सभा की भूमिका और योगदान से इनकार नहीं किया जा सकता. साहित्य सभा के प्रति प्रत्येक असमिया के हृदय में एक विशेष भावना होती है.

यह असम में राष्ट्रीय जीवन और सामाजिक जीवन की सबसे बड़ी संस्था है, जिसकी शुरुआत 1917 में पद्मनाथ गोहानीबरुआ और शरत चंद्र गोस्वामी जैसे अग्रदूतों ने की थी और यह अपने 108वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है.  असम साहित्य सभा न केवल एक बौद्धिक संस्था है जहां भाषा, संस्कृति और साहित्य पर चर्चा होती है, बल्कि यह समाज को एकता और सद्भाव में बांधती है. असम साहित्य सभा का आयोजन हर दो साल में जाति और धर्म की परवाह किए बिना सभी वर्गों के लोगों द्वारा किया जाता है.

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/173832423820_Assam_People_of_all_religions_will_attend_'Pathshala_Sahitya_Sabha'_made_of_bamboo_and_straw_1.jpg


कुछ लोगों ने आर्थिक मदद की है, कुछ ने इस सत्र के लिए अपने खेत दे दिए हैं, जबकि कुछ ने बांस और पुआल देकर राष्ट्रीय आयोजन में योगदान दिया है. साहित्य सभा का पाठशाला अधिवेशन भी इसका अपवाद नहीं है. असम साहित्य सभा का 77वां पाठशाला सत्र 31 जनवरी को विभिन्न जातीय समूहों के लोगों द्वारा खाली की गई 1,200 बीघा भूमि पर शुरू हुआ.

ऐसा लगता है कि साहित्य सभा के सत्र की मेजबानी करना हर किसी के लिए आत्म-सम्मान और गौरव की बात है. इसलिए, साहित्य सभा असमिया राष्ट्रीय जीवन की दिशा निर्धारित करती है. साहित्य सभा के अध्यक्ष बनने से पहले असम के कई प्रमुख लेखकों ने असमिया राष्ट्र के निर्माण की प्रक्रिया पर गहन समीक्षा की थी.

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/173832454620_Assam_People_of_all_religions_will_attend_'Pathshala_Sahitya_Sabha'_made_of_bamboo_and_straw_6.jpg

एक राष्ट्रीय संगठन के रूप में, कई चीजें अभी भी असम साहित्य सभा के निर्णयों और राष्ट्रीय चेतना पर निर्भर करती हैं. इसलिए, यह उम्मीद की जाती है कि असम साहित्य सभा का पाठशाला अधिवेशन असमिया भाषा के प्रचार और विकास में नई दिशाएं खोलेगा.

मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने भी हाल ही में पाठशाला साहित्य सभा स्थल का दौरा किया और कहा कि असमिया भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने के बाद पहली बार साहित्य सभा का सत्र बहुत महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि असम साहित्य सभा की असम के लोगों के मन में अपनी भावना है.

इसलिए, देश के विकास में असमिया भाषा, संस्कृति, कला और परंपराओं के महत्व को समझना महत्वपूर्ण है. इसलिए, देश के विकास में असमिया भाषा, संस्कृति, कला और परंपराओं के महत्व को समझना महत्वपूर्ण है. देश. बहरहाल, असम साहित्य सभा से यह उम्मीद की जा सकती है कि वह पाठशाला सत्र से युवा पीढ़ी के बीच पुस्तकों पर चर्चा और अध्ययन के लिए एक स्वस्थ वातावरण की शुरुआत करेगी और भाषा, संस्कृति और कला को जोड़कर असम के सामाजिक जीवन में एकता और सद्भाव का संदेश लाएगी. 

मुझे आशा है कि शिक्षा और संस्कृति की नगरी पाठशाला में दूसरी बार आयोजित असम साहित्य सभा का यह द्विवार्षिक अधिवेशन सकारात्मक सोच और सुधारवादी सोच लेकर आएगा तथा असमिया समाज के जीवन में नई आशा और रोशनी आएगी. इसलिए यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाना आवश्यक है कि असम साहित्य सभा राष्ट्रीय स्तर पर एक प्रतिष्ठित संस्था के रूप में स्थापित हो.

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/173832446720_Assam_People_of_all_religions_will_attend_'Pathshala_Sahitya_Sabha'_made_of_bamboo_and_straw_5.jfif

 

असम साहित्य सभा के 77वें पाठशाला अधिवेशन में विज्ञान प्रदर्शनी, आदिवासी गांवों की स्थापना, पारंपरिक लोक संस्कृति को बढ़ावा, लोक नृत्य, सड़क कविता, प्राकृतिक वातावरण में कविता पाठ आदि का आयोजन करके पहली बार सकारात्मक और सुधारवादी प्रयास किए गए हैं.  

स्वागत समिति द्वारा गठित 56 उप-समितियों ने साहित्य सभा के 77वें अधिवेशन को सर्वाधिक असाधारण सत्रों में से एक बनाने के अपने प्रयासों में कोई चूक नहीं की है. इस सत्र को यादगार और ऐतिहासिक बनाने के लिए पूरे बाजाली समुदाय ने कार्यक्रम स्थल को असाधारण तरीके से सजाया है.

असम साहित्य सभा का 52वां अधिवेशन 1987 में दक्षिण असम की शिक्षा और रंगमंच की जीवनरेखा पाठशाला के भट्टदेव क्षेत्र में आयोजित किया गया था. 38 साल बाद असमिया भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिला.

ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से आपको ये उत्पाद नहीं खरीदने चाहिए. ये वो कारण हैं, जिनकी वजह से आपको ये उत्पाद नहीं खरीदने चाहिए. ये वो कारण हैं, जिनकी वजह से आपको ये उत्पाद नहीं खरीदने चाहिए उत्पादों इस साल साहित्य सभा के अधिवेशन में आपको क्यों नहीं जाना चाहिए, इसके कई कारण हैं. इस साल साहित्य सभा के अधिवेशन में आपको क्यों नहीं जाना चाहिए, इसके कई कारण हैं. असम साहित्य सभा के पाठशाला अधिवेशन में हमेशा की तरह व्यापार मेला नहीं लगेगा

पहली बार व्यापार मेले की जगह विज्ञान मेला होगा. इस सत्र में बाजाली हाट का भी आयोजन किया जाएगा, जिसमें स्थानीय स्तर पर उत्पादित वस्तुओं और खाद्य पदार्थों की प्रदर्शनी लगाई जाएगी. इसके अलावा, 10,000 लोगों के बैठने की क्षमता वाला एक विशाल भोजन कक्ष भी बनाया जा रहा है. पुस्तक मेला, विज्ञान मेला, बाजाली हाट और बाजाली की समृद्ध संस्कृति का प्रदर्शन होगा.

साहित्य सभा के अधिवेशन में पहली बार विज्ञान मेला आयोजित किया जाएगा. साहित्य सभा के अधिवेशन में पहली बार विज्ञान मेला आयोजित किया जाएगा. “मुझे साहित्य सभा के मैदान को मेले में बदलना पसंद नहीं है. इससे पहले मैंने बारपेटा पुस्तक मेले में व्यापार मेले की जगह विज्ञान मेले का आयोजन किया था. मैं उस विचार को यहां भी लागू करता हूं. असम के इतिहास में शायद कभी भी इतने बड़े पैमाने पर विज्ञान मेला आयोजित नहीं किया गया. पाठशाला साहित्य सभा का उद्देश्य विज्ञान को साहित्य से जोड़कर असम के लोगों को विचार और चेतना का एक नया संदेश देना है. पहला पुस्तक मेला 1987 में पाठशाला में आयोजित साहित्य सभा के अधिवेशन में आयोजित किया गया था. इसलिए, इस बार भी बाजाली के लोग असम साहित्य सभा को एक नया विचार देने में सक्षम होंगे.”

https://www.hindi.awazthevoice.in/upload/news/173832451020_Assam_People_of_all_religions_will_attend_'Pathshala_Sahitya_Sabha'_made_of_bamboo_and_straw_5.jfif

पाल और छलनी ग्रामीण जीवन का अभिन्न अंग हैं


इस बीच, समारोह समिति ने असम आंदोलन के आठ शहीदों और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले बजाली के मदन बर्मन और रौता कोच की प्रतिमा स्थापित कर शहीदों को श्रद्धांजलि दी. यहां बाजाली के गौरव कामेश्वर दास और चंद्रप्रभा शैकिया की भी प्रतिमाएं स्थापित हैं.

जातीय उप-समिति द्वारा तैयार किए गए विभिन्न आकृतियों वाले घरों वाला आदिवासी गांव साहित्य सभा सत्र का एक अन्य आकर्षण होगा. अधिवेशन की प्रदर्शनी उपसमिति द्वारा राज्य के साहित्य प्रेमियों के स्वागत के लिए 87 फुट ऊंची जापी तैयार की जाएगी.