मलिक असगर हाशमी
नागपुर, जो अपने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के लिए जाना जाता है, में एक ऐसा इलाका है, जहाँ हिन्दू-मुसलमानों का भाईचारा एक मिसाल बन चुका है. यह इलाका है स्वामी कॉलोनी, जो नागपुर रेलवे स्टेशन से लगभग 5 से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. स्वामी कॉलोनी में रहने वाले लोग हर धर्म और जाति के होते हुए भी मिलजुल कर रहते हैं, और यह समाज की विविधता का एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करता है.
स्वामी कॉलोनी तीन हिस्सों में बंटी हुई है — फेज़ एक, फेज़ दो और फेज़ तीन. यहाँ लगभग 700 घर हैं, और इन घरों में हिंदू और मुसलमान दोनों समुदायों के लोग रहते हैं. इस कॉलोनी में मुख्य आकर्षण मटन की दुकानें हैं, जो स्टेशन से स्वामी कॉलोनी के रास्ते में स्थित हैं.
ये मटन की दुकानें पूरी तरह से हिंदू स्वामियों के द्वारा संचालित होती हैं, लेकिन यहाँ मटन और चिकन दोनों समुदायों के लोग खरीदने आते हैं. मुसलमान झटका मटन नहीं खाते, इसलिए दुकानदारों ने एक मुसलमान को स्थायी रूप से रखा है, जो बकरा और मुर्गा हलाल करता है. इस प्रकार, कॉलोनी के लोग किसी भी प्रकार के सांप्रदायिक भेदभाव के बिना, अपनी धार्मिक आवश्यकताओं के अनुसार मीट खरीदने आते हैं.
हालांकि, इस कॉलोनी में केवल दो मुस्लिम परिवार हैं — गुलाम कादिर और मोईन काजी. कादिर साहब डब्लूसीएल से सेवानिवृत्त हैं, जबकि काजी साहब योजना आयोग से रिटायर हुए हैं.
रोजे के दौरान माहौल
रमजान के महीने में स्वामी कॉलोनी का माहौल कुछ खास होता है. यह वह समय है जब मुसलमान मटन और मुर्गा अधिक खरीदते हैं. रमज़ान के दौरान मटन की दुकानों पर मुसलमानों की संख्या हिंदुओं से ज्यादा होती है.
फिर भी, यहां का माहौल आम दिनों की तरह ही शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण होता है. यही हाल तब भी था जब कुछ दिन पहले औरंगजेब की कब्र को हटाने को लेकर एक जुलूस निकाला गया था और इसमें पत्थरबाजी और आगजनी जैसी घटनाएँ हुईं.
लेकिन स्वामी कॉलोनी में ऐसी कोई घटना नहीं घटी. यहां के लोग आज भी अपने जीवन को पूरी तरह सामान्य रूप से जीते हैं. गुलाम कादिर साहब, जो पिछले तीन दशकों से यहां रह रहे हैं, बताते हैं, "यहां के लोग बेहद सीधे-साधे और साफ दिल हैं.
हमने कभी नहीं महसूस किया कि हम इस शहर में आरएसएस के मुख्यालय के पास रहते हैं. यहां के लोग कभी हिंदू-मुसलमान के विवादों में नहीं फंसे."मोईन काजी साहब भी इस बारे में बेफिक्र हैं.
उन्हें तो इस हिंसा के बारे में तब पता चला जब किसी ने उन्हें फोन करके जानकारी दी. कादिर के एक पुराने सहकर्मी अलताफ खान भी स्वामी कॉलोनी के नजदीकी इलाके में रहते हैं. अलताफ खान बताते हैं, "जब मुझे फोन पर हिंसा के बारे में बताया गया, तो मैं भी आश्चर्यचकित था. इसके बावजूद मुझे कोई चिंता नहीं थी, और मैं अपनी जिंदगी पहले की तरह आराम से जी रहा हूँ."
सामूहिकता और त्यौहारों की एकता
स्वामी कॉलोनी में सामूहिकता की भावना बहुत मजबूत है. यहाँ के लोग त्योहारों को एक साथ मनाते हैं, चाहे वह होली हो या ईद. चाहे त्योहार कोई भी हो, स्वामी कॉलोनी में सभी लोग मिलकर उस दिन का जश्न मनाते हैं.
यहाँ तक कि किसी विशेष दिन को यादगार बनाने के लिए लोग एक साथ इकट्ठा होकर सड़क पर टेंट लगाते हैं और सामूहिक दावत का आयोजन करते हैं. अब यहाँ के लोग एक नया रिवाज भी शुरू कर चुके हैं — इकट्ठे पर्यटन पर जाना।.
यह एक ऐसी गतिविधि है जिसमें सभी लोग एक साथ किसी दूसरे शहर की यात्रा करते हैं. इसके लिए ट्रैवल एजेंसी से व्यवस्था की जाती है और सभी लोग मिलकर यात्रा पर जाते हैं.इन यात्राओं के दौरान, हर कोई कुछ न कुछ खास पकवान लेकर जाता है, ताकि यात्रा के दौरान साझा किया जा सके.
यहाँ किसी भी प्रकार का जातीय या धार्मिक भेदभाव नहीं होता। भोजन के समय, सभी लोग मिलकर खाते हैं और एक-दूसरे का सम्मान करते हैं.
गुलाम कादिर साहब कहते हैं, "मैंने पिछले तीन दशकों में देखा है कि नागपुर में सभी लोग मिलकर त्योहार मनाते हैं. ईद के दौरान, शहर के कई मदरसे गैर-मुसलमानों के लिए दावत देते हैं. यह एकता का प्रतीक है, और ऐसी घटनाओं में न केवल मुस्लिम समुदाय के लोग, बल्कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और आरएसएस के नेता भी शामिल होते हैं."
कादिर बताते हैं, होली को लेकर यहां कोई हिंदू-मुस्लिम विवाद नहीं. सभी साथ इकट्ठे होकर मनाते हैं. वह कहते हैं, पिछले साल भी रमजान में जुमा पड़ा था. तब उनकी वजह से स्वामी काॅलोनी के लोगों ने उनकी वजह से होली रोजा खोलने के बाद सेलिब्रेट किया था.
काॅलोनी मंे मोनिका थेस का ईसाई परिवार भी रहता है. हम लोग बड़ा दिन भी उसी उत्साह से मनाते हैं.
वह बताते हैं, उनके बीच राजनीति,धर्म-मजहब-जाति को लेकर चर्चा अवश्य होती है, पर यह कभी हमारे बीच विवाद का विषय नहीं रहा. एक तो ना के बराबर चर्चा होती है. यदि कभी होती भी है तो स्वस्थ्य चर्चा होती है. ऐसे मौके पर कादिर के पड़ोसी किशोर नागलकर चुटकी लेते हुए कहते हैं-आप चिंता मत कीजिए. बवालियों को पहले आपसे नहीं, हमसे निपटना पड़ेगा.
ओपन मस्जिद: समझ और संवाद का प्रयास
नागपुर में सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए एक पहल शुरू की गई है, जिसे "ओपन मस्जिद" कहा जाता है. इसके तहत मस्जिदों में गैर-मुसलमानों के लिए विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं.
शुरुआत जामा मस्जिद से हुई थी, और इसके बाद जाफर नगर की मस्जिद ने भी इसे अपनाया. इन कार्यक्रमों में गैर-मुसलमानों को मस्जिद के दरवाजे खोल दिए जाते हैं, ताकि वे इस्लाम, मुसलमानों और मस्जिद से संबंधित सवाल पूछ सकें और उनका उत्तर दिया जा सके.यह पहल धर्म और समुदायों के बीच समझ को बढ़ावा देती है और लोगों को एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझने का मौका देती है.
हिंसा की साजिश: स्वामी कॉलोनी के लोग हैरान
स्वामी कॉलोनी के लोग इस बात से हैरान हैं कि इस शांतिपूर्ण माहौल के बावजूद हिंसा हो गई. वे इसे किसी साजिश का परिणाम मानते हैं. उन्हें यह महसूस होता है कि यह हिंसा शरारत से कम नहीं है.
वे सवाल करते हैं कि हिंसा का शिकार हंगा महल क्यों हुआ? यह इलाका मुस्लिम और हिंदू आबादी का सीमा क्षेत्र है. वहीं, ताज कॉलोनी, मोमिनपुरा, और पीली नदी जैसे मुस्लिम-बहुल इलाकों में कभी किसी ने कंकरी तक नहीं फेंकी.कादिर साहब और अन्य लोग मानते हैं कि यह एक गहरी साजिश का हिस्सा है, और इसका उद्देश्य लोगों के बीच गलतफहमियाँ फैलाना था.
स्वामी कॉलोनी, नागपुर का एक आदर्श उदाहरण है, जहां विभिन्न समुदायों के लोग मिलकर रहते हैं और सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देते हैं. यहां के लोग एक-दूसरे के साथ प्रेम और सम्मान से रहते हैं, और उनका जीवन बिना किसी भेदभाव के चलता है.
यही कारण है कि स्वामी कॉलोनी जैसे इलाके और नागपुर जैसे शहरों में सांप्रदायिक तनाव का कोई स्थान नहीं है. यहाँ के लोग यह मानते हैं कि धर्म, जाति और समुदायों के बीच प्रेम और समझ सबसे महत्वपूर्ण है, और यही उनके समाज की ताकत है.
रिपोर्टः स्वामी काॅलोनी के निवासियों से बातचीत पर आधारित