सुप्रीम कोर्ट ने 'एएमयू' का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रखा, नई बेंच करेगी फैसला, क्या है विवाद ?

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 09-11-2024
Supreme Court refuses to grant minority status to AMU, new bench will decide, what is the controversy?
Supreme Court refuses to grant minority status to AMU, new bench will decide, what is the controversy?

 

आवाज द वाॅयस/नई दिल्ली

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) का अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बकरार रखा है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की बेंच ने 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया है. इस बेंच के तीन जज फैसले के खिलाफ थे. भारत के मुख्य मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ में से खुद सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, जेडी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने संविधान के अनुच्छेद 30 के मुताबिक 'एएमयू' के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे को बरकरार रखने के पक्ष में फैसला दिया है. 

सीजेआई ने कहा कि कोई भी धार्मिक समुदाय संस्थान की स्थापना कर सकता है, लेकिन चला नहीं सकता. संस्थान की स्थापना सरकारी नियमों के मुताबिक की जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे का हकदार है. आगे कहा कि अनुच्छेद 30 कमजोर हो जाएगा अगर यह केवल उन संस्थानों पर लागू होता है जो संविधान लागू होने के बाद स्थापित किए गए हैं.
 
सीजेआई का कहना है कि एसजी ने कहा है कि संघ इस प्रारंभिक आपत्ति पर जोर नहीं दे रहा है कि सात न्यायाधीशों को संदर्भ नहीं दिया जा सकता. इस बात पर विवाद नहीं किया जा सकता कि अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव न किए जाने की गारंटी देता है। सवाल यह है कि क्या इसमें गैर-भेदभाव के अधिकार के साथ-साथ कोई विशेष अधिकार भी है.ऐसे में यह समझना बेहद जरूरी है कि यह मामला क्या है और मामला सुप्रीम कोर्ट में फैसले का क्यों इंजार कर रहा था.

एएमयू का क्या है विवाद

आवाज द वाॅयस उर्दू के मंसूरूद्दीन की एक रिपोर्ट के अनुसार,यह विवाद 1965में शुरू हुआ जब तत्कालीन शिक्षा मंत्री अब्दुल करीम छागला की पहल पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) का अल्पसंख्यक दर्जा समाप्त कर दिया गया.अल्पसंख्यक दर्जा हटाए जाने के बाद एएमयू समुदाय ने इसके खिलाफ एक आंदोलन शुरू किया, जो 1980तक पूरे देश में चला.इस आंदोलन के परिणामस्वरूप दिसंबर 1981में केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश के माध्यम से एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को फिर से बहाल कर दिया.

1981 के अध्यादेश में यह स्पष्ट किया गया कि एएमयू की स्थापना "भारतीय मुसलमानों" द्वारा की गई थी.याचिकाकर्ताओं ने यह तर्क दिया था कि सर सैयद अहमद खान ने 1877में मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल (एमएओ) कॉलेज की स्थापना की थी, जिसका उद्देश्य मुसलमानों के उत्थान के लिए शिक्षा प्रदान करना था.1920में इसे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में बदल दिया गया और फिर से यह केंद्र सरकार के अधिनियम 1981के तहत अल्पसंख्यक संस्थान बना.

लेकिन इस मुद्दे में एक नया मोड़ 2005में आया, जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसले में एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को समाप्त कर दिया.इस फैसले को डॉ. नरेश अग्रवाल बनाम भारत सरकार (2005) मामले में चुनौती दी गई, जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एएमयू की आरक्षण नीति को भी रद्द कर दिया.

इसके बाद, 2006 में केंद्र सरकार और एएमयू ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.24अप्रैल 2006को सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने एएमयू की आरक्षण नीति पर रोक लगा दी.इस मामले की संवैधानिकता पर निर्णय के लिए बड़ी पीठ को भेज दिया.

यह विवाद 2016 में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुंचा, जब एनडीए सरकार ने यूपीए सरकार द्वारा दायर अपील को वापस ले लिया.हालांकि, एएमयू और उससे जुड़े संगठनों ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की.12फरवरी 2019 को, सुप्रीम कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने एस अजीज बाशा के फैसले को सात न्यायाधीशों की पीठ के पास समीक्षा के लिए भेज दिया.

12 अक्टूबर 2023 को, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने इस मामले की सुनवाई के लिए सात न्यायाधीशों की पीठ का गठन किया, जिसमें एसके कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई, सूर्यकांत, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा शामिल थे.सुनवाई 9 जनवरी 2024 को शुरू और 1 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट आठ दिनों की सुनवाई के बाद एएमयू की अल्पसंख्यक भूमिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. अब यह फैसला आया है.

संविधान का अनुच्छेद 30धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रबंधन करने का अधिकार देता है.

एएमयू का इतिहास

एएमयू का इतिहास काफी दिलचस्प है.सर सैयद अहमद खान ने 8 जनवरी 1877 को मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल (एमएओ) कॉलेज की स्थापना की थी, जिसे बाद में 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में बदल दिया गया.ब्रिटिश सरकार ने 1920 के संसदीय अधिनियम के तहत एएमयू को तीन लाख रुपये का अनुदान दिया था, जो 1981 के संशोधन अधिनियम के तहत अभी भी चल रहा है.

हालांकि, सरकार ने अदालत में हलफनामा दाखिल किया है जिसमें कहा गया है कि एएमयू एक सरकारी वित्त पोषित संस्थान है, और इसे अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में नहीं माना जा सकता क्योंकि इसे गैर-मुसलमानों द्वारा भी चलाया जाता है.