शिवाजी महाराज और मुसलमानों के साथ उनका संबंध: सहिष्णुता और एकता की धरोहर

Story by  ओनिका माहेश्वरी | Published by  onikamaheshwari | Date 19-02-2025
Shivaji Maharaj and his relationship with Muslims: A legacy of tolerance and unity
Shivaji Maharaj and his relationship with Muslims: A legacy of tolerance and unity

 

ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली  

शिवाजी महाराज की जयंती हर साल 19 फरवरी को मनाई जाती है. इस दिन उनके शौर्य, नेतृत्व और प्रेरणादायक जीवन को याद किया जाता है.  शिवाजी महाराज के नाम से बात शुरू करते हैं. यह रोचक है कि शिवाजी के दादा मालोजीराव भोसले ने शिवाजी महाराज के पिता का नाम प्रसिद्ध सूफी संत शाह शरीफ के सम्मान में शाहजी और शरीफजी रखा था.
 
मराठा वीर छत्रप शिवाजी को कई बार हिंदुओं का राजा कहकर राजनीतिक माहौल बनाने की कोशिश की जाती है.लेकिन हकीकत में इतिहास इससे कहीं अलग है, जो शिवाजी को न सिर्फ एक महान शासक बताता है, बल्कि सर्व-धर्म सद्भाव रखने वाला व्यक्ति भी घोषित करता है. शिवाजी के हिंदुओं के अलावा मुसलमानों से भी गहरे ताल्लुकात थे. यहां तक कि उन्होंने एक ईसाई पादरी को भी संरक्षण दिया था.

शिवाजी महाराज, जो 17वीं सदी में मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे, भारत के सबसे सम्मानित और प्रगतिशील नेताओं में से एक माने जाते हैं. उनके नेतृत्व, दृष्टिकोण और भारतीय इतिहास में योगदान ने महाराष्ट्र के सांस्कृतिक और राजनीतिक परिदृश्य को गहरे तौर पर प्रभावित किया है. उनके जीवन और कार्यों के बारे में एक कम चर्चा किया गया पहलू उनका मुसलमानों के साथ संबंध है, जो न केवल उनके साम्राज्य में बल्कि समग्र भारतीय उपमहाद्वीप में महत्वपूर्ण था.

शिवाजी की नौसेना में बड़ी संख्या में मुसलमान सैनिक तैनात थे. खासकर सिद्दी मुसलमान. शिवाजी ने अपनी राजधानी रायगढ़ में हिंदुओं के जगदीश्वर मंदिर की तरह ही मुस्लिम श्रद्धालुओं के लिए भी मस्जिद का निर्माण कराया था. 
 
मुसलमानों को छत्रपति कितना भरोसेमंद मानते थे यह उनकी सेना में नियुक्तियों को देखकर समझा जा सकता है. शिवाजी के राज्य में उनके गुप्तचर मामलों के सचिव मौलाना हैदर अली थे. वहीं उनके तोपखाने की कमान भी एक मुसलमान, इब्राहिम गर्दी के हाथों में थी.
 
शिवाजी की सेना में नियुक्ति के लिए धर्मों को लेकर किसी तरह के मानदंडों का पालन नहीं किया जाता था. यहां तक कि प्रशासनिक नियुक्तियों में भी शिवाजी ने धर्मों को लेकर कभी भेदभाव नहीं किया. यही वजह है कि उनकी सेना में एक तिहाई आबादी मुस्लिमों की थी.

धार्मिक सहिष्णुता का दृष्टिकोण

शिवाजी महाराज को अक्सर धार्मिक सहिष्णुता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, और उनका मुसलमानों के साथ संबंध इस विशेषता को exemplify करता है. हालांकि वे एक हिंदू शासक थे, उनकी प्रशासनिक नीतियां और उनके दृष्टिकोण सभी धर्मों के लोगों के कल्याण के लिए थीं, चाहे उनका धार्मिक पहचान कुछ भी हो. उनके शासन की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह थी कि वे अपने विषयों के कल्याण के प्रति प्रतिबद्ध थे, न कि उनकी धार्मिक पहचान के आधार पर.

शिवाजी का साम्राज्य बहु-जातीय और बहु-धार्मिक था, जिसमें हिंदू और मुसलमान साथ रहते थे, और यह उनकी प्रशासनिक सफलता का कारण बना. हालांकि वे हिंदू परंपराओं के प्रति गहरे प्रतिबद्ध थे, लेकिन उन्हें अपनी प्रजा की विविधता का भी पूरा एहसास था. यही कारण था कि उन्होंने मुसलमानों से गठजोड़ किया और उन्हें अपनी सेना और प्रशासन में महत्वपूर्ण स्थान दिया.

शिवाजी के दरबार में प्रमुख मुस्लिम व्यक्ति

शिवाजी महाराज के दरबार और सेना में सिर्फ हिंदू ही नहीं, बल्कि कई मुसलमान भी थे. उनमें से कुछ प्रमुख व्यक्तित्व थे जैसे बाहिरजी नाइकसिद्दी इब्राहीम, और फजल अली. इन लोगों ने उनकी सैन्य अभियानों और शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उदाहरण के लिए, बाहिरजी नाइक एक प्रमुख सैन्य नेता थे जिन्होंने शिवाजी की सेनाओं का नेतृत्व किया और मराठा साम्राज्य की तटीय विजय में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

शिवाजी के द्वारा मुसलमानों को उनकी सेना में अहम भूमिका देने का एक और शानदार उदाहरण सिद्दी जौहर का है, जो शिवाजी के नौसेना के एक प्रमुख एडमिरल थे. सिद्दी जौहर, जो मुसलमान थे, शिवाजी की नौसेना के संचालन में बहुत प्रभावशाली थे. इस तरह की समावेशिता यह दर्शाती है कि शिवाजी केवल धार्मिक पूर्वाग्रहों से परे थे और वे अपनी सेना और साम्राज्य की सफलता के लिए सक्षम और वफादार व्यक्तियों को तवज्जो देते थे.

शिवाजी का इस्लाम के प्रति सम्मान

शिवाजी महाराज ने इस्लाम और उसकी प्रथाओं के प्रति सम्मान दिखाया, भले ही उनकी पहचान एक हिंदू शासक के रूप में थी. उन्हें मुसलमानों की मस्जिदों का संरक्षण करने और उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता देने के लिए जाना जाता था. मुग़ल साम्राज्य के खिलाफ उनकी लड़ाई मुख्य रूप से राजनीतिक थी, न कि धार्मिक. शिवाजी के संघर्षों का उद्देश्य अपनी प्रजा की स्वतंत्रता और सुरक्षा था, न कि इस्लाम के खिलाफ कोई युद्ध छेड़ना.

उनकी शासन नीति में यह भी देखा गया कि वे मुसलमानों को अपने धर्म का पालन करने की पूरी स्वतंत्रता देते थे. उनके साम्राज्य के अंतर्गत मुसलमानों के धार्मिक नेता भी अपने धर्म का प्रचार कर सकते थे. इससे यह साफ होता है कि शिवाजी ने किसी भी समुदाय के धर्म का आदर किया और उनकी धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा की.

मुस्लिम शासकों के साथ गठजोड़

शिवाजी महाराज के कई मुस्लिम शासकों के साथ भी राजनीतिक गठजोड़ थे, जो उनकी समावेशी शासन नीति को दर्शाते हैं. उदाहरण के लिए, उन्होंने बीजापुर सुलतानत से गठबंधन किया था, और उनका संबंध सुलतान आदिल शाह से महत्वपूर्ण था. हालांकि शिवाजी ने मुगलों से संघर्ष किया, उनका यह संघर्ष इस्लाम से नहीं था, बल्कि यह उनके खिलाफ था जो उनके लोगों को अत्याचारों और उत्पीड़न का सामना करवा रहे थे.

इसके अतिरिक्त, शिवाजी अपनी सैन्य अभियानों में कभी-कभी मुस्लिम शासकों के साथ कूटनीति का इस्तेमाल करते थे. उनके कूटनीतिक कौशल ने उन्हें विभिन्न मुस्लिम शासकों के साथ गठजोड़ बनाने की क्षमता दी, जिससे उन्हें राजनीतिक समर्थन और सैन्य सहायता प्राप्त होती थी.

एकता और सहिष्णुता की धरोहर

शिवाजी महाराज की धार्मिक सहिष्णुता, विशेष रूप से मुसलमानों के साथ उनके रिश्ते, अक्सर उस समय के हिंदू-मुसलमान संघर्षों की छायाओं में दब जाती है. हालांकि, उनका जीवन एक ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करता है जिसमें विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सह-अस्तित्व और सम्मान को बढ़ावा दिया गया. उनकी नीतियों का मुख्य उद्देश्य एक न्यायपूर्ण और समावेशी समाज था, जिसमें सभी नागरिकों का भला हो.

शिवाजी के शासन में उनकी प्राथमिकता हमेशा योग्य और वफादार लोगों को उनके धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि उनके कार्यों और समर्पण के आधार पर महत्व देना था. वे न केवल एक महान योद्धा और राजा के रूप में याद किए जाते हैं, बल्कि एक ऐसे नेता के रूप में भी याद किए जाते हैं जिन्होंने विभिन्न धर्मों के लोगों के साथ सहिष्णुता और सम्मान का मार्ग प्रशस्त किया.

शिवाजी सभी धर्मों का सम्मान करते थे, इतिहास के एक और तथ्य से इसकी जानकारी मिलती है. उन्होंने हजरत बाबा याकूत थोरवाले को ताउम्र पेंशन देने का आदेश दिया था. इसके अलावा फादर एंब्रोज को शिवाजी ने उस वक्त मदद पहुंचाई थी जब गुजरात के सूरत में उनकी चर्च पर हमला हुआ था.
 
मुसलमानों से शिवाजी की मित्रता का एक और किस्सा गौरतलब है. आगरा के किले में जब शिवाजी को कैद कर लिया गया था, उस समय वहां से भागने में जिन दो व्यक्तियों ने उनकी मदद की थी, उनमें से एक मुसलमान था. उसका नाम मदारी मेहतर था.
 
 छत्रपति ने राजा रहते हुए महाराष्ट्र से इतर देश के कई स्थानों पर सैन्य अभियान का नेतृत्व किया था. इस क्रम में दूसरे धर्मों के प्रति उनके दृष्टिकोण का भी पता चलता है. उन्होंने अपनी सेना को स्पष्ट निर्देश दे रखा था कि सैन्य अभियानों के दौरान मुस्लिम महिलाओं और बच्चों के साथ किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार नहीं किया जाए. साथ ही किसी दरगाह या मस्जिद को नुकसान न पहुंचाया जाए.
 
शिवाजी के मन में दूसरे धर्मों और उसके प्रतीकों के बारे में कितना सम्मान था यह भी याद रखने लायक बात है. उन्होंने अपने सेनानायकों और सेना को स्पष्ट कह रखा था कि सैन्य अभियान के दौरान अगर किसी को कुरान मिले तो उसका पूरा सम्मान किया जाए और उसे किसी मुसलमान को सौंप दिया जाए.
 

निष्कर्ष

शिवाजी महाराज का मुसलमानों के साथ संबंध सहिष्णुता, रणनीतिक गठजोड़ और एक समृद्ध साम्राज्य की दृष्टि पर आधारित था. वे न केवल एक महान युद्धनायक थे, बल्कि उनके जीवन का संदेश यह था कि विविधता में एकता और धार्मिक सम्मान से ही समाज का सर्वांगीण विकास संभव है. उनके योगदान का दायरा केवल हिंदू धर्म तक सीमित नहीं था, बल्कि उनकी धरोहर सभी धर्मों के बीच सामंजस्य और सद्भाव की प्रतीक बन गई.