ओनिका माहेश्वरी/ नई दिल्ली
इस साल शब-ए-बारात 14 फरवरी 2025 को है. दुनिया भर के मुसलमान सांस्कृतिक विविधता और स्थानीय परंपराओं के आधार पर इस रात को अलग-अलग तरीकों से मनाते हैं. इस लेख में हमने मुस्लिम बुद्धिजीवियों, मौलवियों, लेखकों, कलाकारों आदि से बात की और जाना कि मुसलमानों को शब-ए-बारात कैसे मनानी चाहिए.
लेखीका और प्रोफेसर डॉ. रख़्शंदा रूही का कहना है कि "कुछ लोग शबे बरात को जश्न की रात की तरह मनाते हैं और आतिश बाजी चलाते हैं या सड़कों पर मोटर साइकिल की दौड़ लगाते हैं या जश्न मनाने के दूसरे तरीकों से हंगामा करते हैं लेकिन उलेमा ऐसा करना हराम मानते हैं. उनका कहना है कि यह जश्न की रात नहीं, इस रात को घर में रह कर अल्लाह की इबादत में गुज़ारना चाहिए."
जमीयत उलेमा फरीदाबाद अध्यक्ष- मौलाना जमालुद्दीन ने अपने विचार आवाज द वॉयस के साथ साझा किए और कहा कि शब-ए-बारात शोर-शराबे और पिकनिक के लिए नहीं है. शब-ए-बराअत की रात इबादत और तिलावत का दौर चलता है. इस रात जागकर अपने पूर्वजों के लिए मगफिरत की दुआएं करते हैं. लेकिन कुछ लोग इस रात को शोर-शराबा और आतिशबाजी भी करते हैं. हालांकि इस दिन आतिशबाजियां छुड़ाने की मनाही है.
उन्होनें कहा कि मुस्लिम लोगों को सलाह दी जाती है कि वो शब-ए-बराअत पर ज्यादा से ज्यादा इबादत करें, रोजा रखें, हालांकि इस रात की इबादत और रोजा नफली यानी स्वैच्छिक है. मुस्लिमों को इस रात पर आतिशबाजी से खासतौर पर बचना चाहिए. आतिशबाजी से सिर्फ पॉल्यूशन ही नहीं बढ़ता बल्कि इस्लामी नजरिए से इसे अच्छा नहीं माना गया है. पटाखे जलाना फिजूलखर्ची है और खुदा फिजूलखर्ची करने वालों को पसंद नहीं करते हैं. कुरआन में सूरह-अल-इसरा की आयत नंबर-27 में फिजूलखर्ची करने वालों को शैतान का भाई कहा गया है.
वहीँ भारत की पहली मुस्लिम कथक डांसर रानी खानम का कहना है कि हमें आज के युवाओं को ये समझाना चाहिए कि "इस रात मुसलमानों को अपने घर पर रहकर ही खुदा की इबादत करनी चाहिए और कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे किसी के दिल को ठेस पहुंचे. ऐसे में इस रात के मौके पर आतिशबाजी, शोर शराबा करने के साथ ही सड़कों पर घूमने से बचना चाहिए. इस मुबारक रात में जागकर इबादत करनी चाहिए और अल्लाह पाक से अपने गुनाहों की माफी मांगनी चाहिए."
एक भारतीय अभिनेता, प्रेरक वक्ता और पूर्व सैन्य अधिकारी मेजर मोहम्मद अली शाह ने कहा कि शब-ए-बारात इबादत की रात है. इस इबादत की रात को बेहद सादगी, खामोशी और इत्मीनान से गुजारें. कुछ ऐसा न करें जो न केवल दूसरों को ठेस पहुंचे, इस्लाम की प्रतिष्ठा को भी प्रभावित करे. कानून का सम्मान करना महत्वपूर्ण है. रात में सड़कों पर दंगा न करें. घरों और मस्जिदों में इबादत करें.
वहीँ युवा लेखक शारीका मालिक का कहना है कि "हमें तो बचपन से यही सिखाया गया है कि इस्लाम में शोर की कोई जगह नहीं है साथ ही हम इस रत अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं और अपनी सेहत ठीक करने की दुआ खुदा से करते हैं."
वहीं थियटर आर्टिस्ट जावेद का कहना है कि "शब ए बारात, एक ऐसी रात है जिस में इबादत की जाती है और दुआ मांगी जाती है. लेकिन अफ़सोस इस बात का है कि हमारे बच्चे और जवान सारी रात घूमने और तफरीह करने में निकाल देते है. रात में गाड़ियां चलाना सीखते है. ये बहुत दुःख की बात है.
शब-ए-बराअत का मतलब
शब-ए-बराअत, दो शब्दों, शब और बराअत से मिलकर बना है. शब का मतलब रात है, तो वहीं बराअत का मतलब बरी होना है. शब-ए-बराअत का शाब्दिक मतलब है प्रायश्चित यानी मगफिरत की रात या गुनाहों से बरी होने की रात है. दुनियाभर के अलग-अलग रिवाजों के अनुसार इसके कई नाम हैं, जैसे चिराग़-ए-बारात, बारात नाइट, बेरात कंदिली, या निस्फू सियाबन वगैरह.
इस रात की फजीलतों या अहमियत की वजह से यह इस्लाम धर्म की सबसे पवित्र रातों में से एक है. मुस्लिम लोग इस रात को अपने पूर्वजों के पापों का प्रायश्चित करने और उन्हें जहन्नुम की आग से बचाने के लिए दुआ करते हैं.
इस्लामी कैलेंडर में शाबान आठवां महीना है और इसका बेहद खास महत्व है. मुसलमान रमजान के पवित्र महीने की तैयारी इस महीने के दौरान स्वेच्छा से उपवास करके या अच्छा भोजन करके करते हैं. लोग इस महीने में अच्छे काम करते हैं और रमजान के सवाब को बढ़ाने के लिए दुआ करते हैं.