जमाने के खिलाफ जाकर रियाज खान ने 11 बेटियों को किया तालीमयाफ्ता, बनीं मेवात की ‘रोल मॉडल’

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 04-05-2023
मेवात के रियाज खान की 11 बेटियां
मेवात के रियाज खान की 11 बेटियां

 

मलिक असगर हाशमी / नूंह (हरियाणा )

नूंह-तावड़ू रोड पर एक अर्धनिर्मित ऊंची इमारत की तकरीबन सैंतीस सीढ़ियां चढ़कर जब शबनम और उनकी बड़ी बहन नफीसा से मिला, तो आधे घंटे की गपशप में उनके, उनकी बाकी नौ बहनों और पिता रियाज खान के बुलंद हौसले का अंदाजा हो गया.पंजाब वक्फ बोर्ड में राजस्व अधिकारी रहे रियाज खान तो अब इस दुनिया में नहीं रहे, परंतु अपनी 11 लड़कियों के बीच शिक्षा की जो ज्योति उन्होंने जलाई थी, वह आज भी पूरी शान से देदीप्यमान है. इनमें से आठ बेटियां शिक्षक हैं.

शबनम आवाज-द वॉयस से बातचीत में राजदाना अंदाज में कहती हैं, ‘‘हमारी सभी शिक्षक बहनों की यह कोशिश है कि वह जिस स्कूल में भी पढ़ाएं, वहां की छात्राएं बीच में पढ़ाई छोड़कर घर न बैठ जाएं. साथ ही स्कूल में विद्यार्थियों की उपस्थिति और संख्या निरंतर बढ़ती रहे.’’

शबनम कहती हैं कि इसके लिए छात्राओं के अभिभावकों को समय-समय पर बुलकर शिक्षा के प्रति जागरूक करना पड़ता है. तालीम की अहमियत बतानी पड़ती हैं. सरकारी स्कूल में टीचर बनने से पहले लंबे समय तक गैर सरकारी संगठन में काम कर चुकी शबनम कहती हैं, ‘‘मेरी दूसरी शिक्षक बहनों के मुकाबले उन्हें इस काम में अधिक परेशानी नहीं आती. एनजीओ में बाल शिक्षा पर काम करने का अनुभव अब काम आ रहा है.’’ इसके साथ वह यह राज भी खोलती हैं कि छात्रों की उपस्थिति और संख्या बढ़ने से स्कूलों को अपग्रेड होने में काफी मदद मिलती है. शबनम अभी रिठोड़ा में टीजीटी यानी ट्रेंड ग्रेजुएट टीचर हैं. इससे पहले वह जिस प्राथमिक स्कूल में थी, वह अब मिडिल स्कूल में तब्दील हो चुका है.

बातचीत के दौरान शबनम के साथ बैठीं उनकी बड़ी बहन नफीसा कहती हैं कि कई अभिभावक उनकी टीचर बहनों से राय-मशविरा करने आते हैं कि वे अपनी बच्चियों को आगे कैसे बढ़ाएं ? कई बार लोग उन्हें बस स्टैंड पर ही रोक कर तारीफी लहजे में कहने लगते हैं कि वे भी अपने बेटियों को उन जैसा बनना चाहते हैं.

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आवाज द वाॅयस से बातचीत करते हुए शबनम और नफीसा

दरअसल, पितृसत्तात्मक, पुरातनपंथी, अशिक्षा और बुनियादी सुविधाओं से जूझते हरियाणा के इस अति पिछड़े जिले नूंह की बड़ी समस्या यह है कि छात्राओं का ड्राउप आउट का प्रतिशत सूबे के अन्य जिलों के मुकाबले सर्वाधिक है. यहां स्कूल और कॉलेजों की संख्या गिनती के हैं. यूनिवर्सिटी तो हैं ही नहीं. उच्च शिक्षा के लिए मेवात के बाहर जाने के अलावा कोई चारा नहीं.

मेवात विकास मंच के महासचिव आसिफ अली चंदैनी कहते हैं, ‘‘जिले की तकरीबन 70 से 80 प्रतिशत आबादी मेहनत-मजदूरी कर गुजारा करती है. ऐसे में आर्थिक तंगी, कुंठा और बेटियां की सुरक्षा को लेकर चिंतित मां-बाप अपनी लख्त-ए-जिगर को पढ़ाई के लिए बाहर भेजने की तुलना में घर पर ही रखना पसंद करते हैं.’’

ऐसे दकियानूसी माहौल को तोड़ते हुए नब्बे की दशक में पंजाब वक्फ बोर्ड में राजस्व अधिकारी रहे रियाज खान ने अपनी 11 पुत्रियों को आला तालीम देने का निर्णय लिया था. बहनों में सबसे बड़ी नफीसा आवाज-द वॉयस से बातचीत कहती हैं कि वालिद साहब का ट्रांसफेरबल जॉब था.

जब तक मेवात के बाहर रहे, बहनों को पढ़ाने में उन्हें कोई दिक्कत नहीं आई. मगर एक हादसे का शिकार होने और स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति लेने के बाद, वह जब 1993 में नूंह स्थायी तौर पर शिफ्ट हो गए, तब बेटियों को पढ़ाने पर लोगों ने खूब टोका-टाकी की.

उनके पिता नूंह से तकरीबन चार किलोमीटर दूर चंदैनी गांव के रहने वाले थे. वहां के लोग शिक्षा को लेकर बेहद जागरूक हैं. शबनम अपने पिता और दादा की तारीफ करते हुए कहती हैं, ‘‘दोनों बेहद हौसलामंद थे. तालीम को लेकर हमारी बहनों को दादा ने कभी नहीं रोका. नब्बे के दशक में जब आज से बुरा माहौल था, तब भी बेटियों को उच्च शिक्षा देना न केवल जारी रखा, वरन पढ़ाई के लिए नूंह से बाहर भी भेजा.

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रियाज खान की 11 बेटियां

शबनम ने कानून की भी पढ़ाई की है. उनके पति सोहना में वकालत करते हैं. बावजूद इसके रियाज खान की आठ बेटियों ने शिक्षक बनना ही पसंद किया. पांच सरकारी स्कूल में टीचर हैं. बड़ी बहन कहती हैं कि शुरुआत से शिक्षक बनने में हमारी दिलचस्पी रही है.

शबनम के पांच बच्चे हैं. उनकी एक बेटी ने बनारस से फाइन आर्ट्स में मास्टर किया है. इनके बाकी बच्चे भी आला तालीम ले रहे हैं. नफीसा का बड़ा बेटा भौतिक शात्र में पीएचडी कर रहा है.

शबनम और नफीसा बताती हैं कि वो भी अपने बच्चों को उच्च शिक्षा में आगे बढ़ाने के मामले में किसी की नहीं सुनतीं. बच्चे अपने करियर चुनकर आगे बढ़ रहे हैं. वो केवल उन्हें सहारा दे रही हैं. उनके मुताबिक, छोटी बहन के बच्चे अभी छोटे हैं, जबकि बाकी बहनों के बच्चे पढ़ाई में अच्छा कर रहे हैं.

वो बताती हैं कि मेवाती मुसलमानों में लड़कियों की शिक्षा को लेकर माहौल बदल रहा है. मगर जिस तेजी से परिवर्तन होना चाहिए, नहीं हो रहा है. वह कहती हैं कि लड़कियां पांची-आठवीं के बाद घर बैठ जाती हैं. बहुत सारे अभिभावक बेटियों को स्कूल भेजने की जगह उन्हें मकतब में भेजना पसंद करते हैं.

जामिया से मेवात की महिला सरपंच पर पीएचडी करने वाले शबनम के शिष्य मोहम्मद रफीक कहते हैं कि सरकार यदि इन ग्यारह बहनों को ‘रोल मॉडल’ बनाकर मेवात में पेश करे, तो तस्वीर बदल सकती है.

उन्हें देखकर ड्रॉप आउट का प्रतिशत कम हो सकता है.’’ हालांकि, दोनों बहनें उनकी बातें से सहमत नहीं. वह कहती हैं कि लड़कियों को शिक्षा में आगे बढ़ाना है, तो घर से शुरूआत करनी होगी. सब कुछ सरकार पर नहीं छोड़ा जा सकता. मेवात के राजनेताओं को भी इच्छा शक्ति दिखानी होगी.

बातचीत में शबनम ने मेवात के कुछ राजनेताओं का उदाहरण देते हुए बताया कि उर्दू शिक्षकों के मुद्दे पर एक बैठक में उन्हें बुलाया गया था, पर उनमें से कोई भी उनकी बातें सुनने नहीं आया. हालांकि बातचीत में उन्होंने यह भी कहा कि मेवात क्षेत्र के अधिकांश विधायक एवं बड़े नेता रिश्ते में उनके चाचा-ताऊ लगते हैं. बावजूद इसके शिक्षा के प्रति कोई खास गंभीरता नहीं दिखाते.

रियाज खान की बेटियां और उनकी योग्यता:

1- नफीसाः जेबीटी और बीएड और सरकारी शिक्षक के रूप में कार्यरत

2- शबनमः एमए, एलएलबी, जेबीटी और सरकारी अध्यापक

3- अफसानाः जेबीटी, एमए, बीएड.

4- फरहानाः जेबीटी, एमए, बीएड. सरकारी शिक्षक के रूप में कार्यरत

5- शहनाजः जेबीटी, एमए, बीएड और निजी स्कूल में शिक्षिका

6- इशरतः बी.ए

7- नुसरतः जेबीटी, एमए, एमएड और मालब पॉलिटेक्निक में लेक्चरर

8- अनाः जेबीटी, एमए बीएड और सरकारी अध्यापक

9- रजियाः एमबीए और निजी क्षेत्र में कार्यरत

10- नाजियाः वास्तुकला में डिप्लोमा और निजी क्षेत्र में सक्रिय

11- बुशराः एमए, बीएड