भारत में मुस्लिम शिक्षा संस्थानों के संघर्ष और योगदान पर शोध पुस्तक

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 21-10-2024
Research book on the struggle and contribution of Muslim educational institutions in India
Research book on the struggle and contribution of Muslim educational institutions in India

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

नई दिल्ली में हुए एक विशेष कार्यक्रम में जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रो. अफसर आलम द्वारा "भारत में मुसलमानों द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थान (1986-2016)" नामक पुस्तक का विमोचन किया गया. यह किताब भारत में मुस्लिम समुदाय द्वारा 1986 से 2016 के बीच स्थापित शिक्षा संस्थानों की स्थापना, विकास और उनके सामाजिक योगदान पर प्रकाश डालती है.


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मुस्लिम संस्थानों के संघर्ष

इस अवसर पर प्रो. अफसर आलम ने बताया कि इस पुस्तक का निर्माण एक लंबी शोध प्रक्रिया का परिणाम है. उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे बिहार के किशनगंज में इमाम बुखारी विश्वविद्यालय को फार्मेसी कार्यक्रम शुरू करने के लिए एनओसी (अनापत्ति प्रमाणपत्र) प्राप्त करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा.

यह कठिनाई कई अन्य मुस्लिम संस्थानों को भी झेलनी पड़ती है, जिससे उनकी शैक्षणिक प्रगति बाधित होती है. उन्होंने कहा कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के लिए सरकार की तरफ से आवश्यक समर्थन नहीं मिलता है, विशेषकर एनओसी प्राप्त करने में.

डेटा की कमी एक बड़ी चुनौती

जामिया मिल्लिया इस्लामिया के शिक्षक प्रो. फुरकान कमर ने इस बात पर जोर दिया कि केंद्र सरकार के पास भारत में कितनी यूनिवर्सिटियाँ और उनके कितने कॉलेज संबद्ध हैं, इस बारे में ठोस डेटा मौजूद नहीं है. उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में 1986 से 2016 के बीच स्थापित मुस्लिम शिक्षण संस्थानों का विवरण दिया गया है, जो एक महत्वपूर्ण शुरुआत है.

उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि इस तरह के डेटा का संकलन एक सतत प्रक्रिया होनी चाहिए ताकि भविष्य में और बेहतर आंकड़े उपलब्ध हो सकें.

संकलनकर्ता का अनुभव

पुस्तक की संकलनकर्ता, नाज खैर, जो पेशे से एक स्वतंत्र सलाहकार हैं, ने इस बात का उल्लेख किया कि सरकार के पास मुस्लिम संस्थानों का कोई आधिकारिक डेटा उपलब्ध नहीं है. उन्होंने बताया कि इन संस्थानों से जुड़े डेटा को इकठ्ठा करना एक कठिन काम था. कई बार आरटीआई के माध्यम से भी जवाब नहीं मिला.

उनके इस काम में आरटीआई एक्टिविस्ट सलीम बेग का भी योगदान रहा, जिन्होंने कई जगहों से डेटा प्राप्त करने में मदद की. इसके बावजूद उन्होंने इस चुनौती को पार करते हुए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज तैयार किया है.


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कार्यक्रम के अन्य वक्ता

विमोचन कार्यक्रम के दौरान जाकिर हुसैन दिल्ली कॉलेज के प्रो. मधु प्रसाद ने नाज खैर और उनकी टीम की सराहना की. उन्होंने कहा कि इस प्रकार का दस्तावेज भविष्य में रिसर्च करने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत साबित होगा. जामिया मिल्लिया इस्लामिया के प्रो. अख्तर सिद्दीकी ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया और इस प्रयास की सराहना की.

कुरानी आयत से शुरुआत और समापन

कार्यक्रम की शुरुआत कुरान की आयत से हुई और संचालन प्रो. हसीना द्वारा किया गया। कार्यक्रम का समापन भी उनके ही शब्दों से हुआ.