यूनुस अलवी, मेवात / हरियाणा
संसार के प्राचीनतम महाकाव्यों में से एक महाभारत को मेवाती भाषा में 'पांडूओ के कड़ा' के नाम से एक किताब की शक्ल में छापा गया है. महाभारत पहली बार मेवाती भाषा में पांडुओं का कड़ा के नाम से छपी. इस किताब को मेवात पुलिस विभाग ने छापा है. पांडवों और मेवातियों का खासा लगाव रहा है. अज्ञातवास के पहले वनवास के समय पांडवों ने मेवात के बीच स्थित काला पहाड़ यानी अरावली पहाड़ में बहुत सारा समय गुजारा था. पांडवों के यहां बिताए समय की बहुत सारी निशानियां पांडवकालीन मंदिर मेवात में मौजूद हैं.
ये किताब मेवाती डूहों यानी दोहों में लिखी गई हैं. जिसमे एक हजार से अधिक दोहे हैं. सोमवार को नूंह के शहीद हसन खान मेवाती मेडिकल कॉलेज स्थित ऑडिटोरियम हाल में ज़िला उपायुक्त धीरेंद्र खड़गता ने एसपी नरेंद्र बिरारनिया सहित अन्य अधिकारियों की मोजूदगी में "पांडूओं का कड़ा" नाम की किताब का विमोचन किया और उपस्थित हजारों लोगों को किताब की प्रतियां वितरित की गई.
वही किताब के लेखक एसएस मास्टर कमालुद्दीन तेड को प्रशासन की तरफ से सम्मानित भी किया गया. पांडुन के कड़ा किताब में भीम का कड़ा, किचक घाण, जामूद मल्ह का अंत, अर्जुन का कड़ा, अभिमन्यु का कड़ा, बबराबान का कड़ा और कुरुक्षेत्र का जंग मेवाती डूहों यानी दोहों में तफसील से जिक्र किया गया है. इस किताब की हरियाणा के डीजीपी, रेवाड़ी साउथ रेंज आईजी, डीसी नूंह, एसपी नूंह ने भी जमकर प्रशंशा की है.
17वीं शताब्दी के मशहुर मेवाती शायर सादउल्ला खाँ मेव द्वारा मेवाती बोली में कहे डुहा (दोहा) अपने आप में एक नायब उदाहरण हैं. 'पण्डून का कडा' पुस्तक देश की गंगा-जमनी तहजीब को बढाने का एक सार्थक प्रयास है. '
पण्डून का कडा' किताब में महाभारत की घटनाओं का वर्णन डुहान अर्थात दोहो के रूप में किया गया हैं. सबसे पहले महाभारत को मेवाती डूहों में सदल्लाह ने लिखा था. सादउल्ला खाँ का जन्म 1607ई0 में नूंह जिला के गांव आकेडा में हुआ था.
सादउल्ला खाँ के अधूरे कार्य को उनके रिश्तेदार खौरी गांव निवासी शायर नबीं खाँ नें पूरा किया था. इसके अतिरिक्त गांव सूडाका निवासी श्री खक्के ने भी महाभारत की अनेक घटनाओं को डुहाओं और बिरेहडा की शक्ल में वर्णित किया है.
सादल्लाह द्वारा कागज के अलग अलग पन्नो पर लिखी गई महाभारत को कभी किताब की शक्ल में नही लाया जा सका. भारत पाकिस्तान बटवारे के दौरान सादल्लाह के खानदान के लोग उस लिए हुए कागजों को गांव के ही एक कुएं में डाल कर चले गए थे. बाद में सादल्लह द्वारा लिखी गई महाभारत तो खत्म हो गई लेकिन मेवात के हजारों लोगो की जबान पर आज भी वो मोजूद हैं.
पुलिस विभाग द्वारा छपवाए गए 'पण्डून का कडा' एक बहुत ही प्रेरणादायक पुस्तक हैं. इसके पढने से पाठकों को ना केवल महाभारत के बारे में ज्ञान प्राप्त होगा बल्कि सत्य की असत्य पर, पुण्य की पाप पर, ईमानदारी की बेईमानी पर, अच्छाई की बुराई पर, धर्म की अधर्म पर जीत का प्रेरणादायक संदेश प्राप्त होगा. साथ ही पाठकों के दिलो में बहादुरी के जज्बात भी उत्पन्न होंगें.
पाण्डुओ द्वारा वनवास काल के दौरान अधिकतर समय मेवात इलाके में बिताये जाने की वजह से उनकी यादें पांच हजार वर्ष बीत जाने के बाद भी मेवात में मेवाती बिरहैडा यानी मेवाती दोहों में मौजूद है. इ
न मेवाती बिरहैडों के माध्यम से शायर शादल्ला और खक्के सहित कई शायरों ने अपने-अपने तरीके से पाण्डुओ की गाथायें संक्षिप्त रूप में गाई लेकिन दुर्भाग्यवश वे सारे मेवाती बिरहैडे मेवाती लोगो की जवान पर तो मौजूद है लेकिन किसी किताब की शक्ल में मौजूद नही थे.
पाण्डुओ का कडा मौखिक रूप से लोगो की जुबानो पर मौजूद है, इसको अधिकतर मिरासी, जोगी आदि समाज के लोग खुशी के मौके पर गाते हैं. कहीं ये विलुप्त ना हो जाये इसी भाव को लेकर नूंह के एसपी नरेंद्र बिजारनिया ने लेखक कमालुद्दीन के सहयोग से इसे एक पुस्तक के रूप में एकत्रित करने का प्रयास किया है.