आवाज द वाॅयस / नई दिल्ली
ग़ालिब इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित 'पंडित रतन नाथ सरशार: व्यक्ति, अनुबंध और रचनात्मक आयाम' नामक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में जामिया मिल्लिया इस्लामिया के उर्दू विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. खालिद महमूद ने संबोधित करते हुए कहा कि रत्न नाथ सरशार का उपन्यास उर्दू की ऐसी पूंजी है कि इसे पढ़ने से भाषा की नजाकत के साथ-साथ सभ्यता का महत्व भी स्पष्ट हो जाता है.
हमारा कोई भी बड़ा कथा लेखक ऐसा नहीं है जो रतननाथ सरशार से प्रभावित न हो.सेमिनार की अध्यक्षता बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, उर्दू विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर याकूब यावर ने की.
उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि ऐसे युग में जब पुस्तकों का लगाव कम होता जा रहा है, लोगों को किताबों से जोड़ना सराहनीय कार्य है. मुझे यह बैठक बहुत अच्छी लगी क्योंकि सभी ने आलोचनात्मक वक्तव्यों पर भरोसा करने के बजाय पाठ पर ध्यान केंद्रित किया.
मौके पर, प्रो. खालिद अशरफ का पेपर 'सरशार की प्रतिज्ञा', प्रोफेसर मोहम्मद काजिम का पेपर 'रतन नाथ सरशार का हमजाद नवाब सैयद मोहम्मद आजाद' और डॉ. साजिद जकी फहमी का पेपर 'कामिनी और भारतीय सभ्यता: एक सिंहावलोकन' विषय पर प्रस्तुत किया गया.
डॉ. खालिद अल्वी ने 'सरशार की लेखन शैली और उनके शब्दकोश' पर चर्चा की. प्रो. असलम जमशेदपुरी ने 'पी कहां' के विशेष संदर्भ में रतन नाथ सरशार के उपन्यास लेखन पर चर्चा की और डॉ. सादिका नवाब सहर ने 'फसानहई आजाद' पर चर्चा की.
तीसरी बैठक ऑनलाइन आयोजित की गई जिसकी अध्यक्षता डीन फैकल्टी ऑफ सोशल साइंस ए. एम यू प्रोफेसर शफी किदवई ने किया. अध्यक्षीय भाषण में उन्होंने कहा कि खोजी का चरित्र केवल एक क्षेत्र का नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव मानस का प्रतिबिंब है. खोजी इस बात का उदाहरण है कि जब मनुष्य उस चीज की नकल करता है जो वह नहीं है तो वह कितना हास्यास्पद हो जाता है.
इस बैठक में डॉ. तबस्सुम कश्मीरी, प्रो. असगर नदीम सैयद और प्रो. नासिर नायर ने पेपर प्रस्तुत किए. चौथे एवं अंतिम सत्र की अध्यक्षता डॉ. खालिद अल्वी ने की. जिसमें उन्होंने कहा कि सरशार ने न सिर्फ रचनात्मक भाषा का इस्तेमाल किया बल्कि कई नए मुहावरे भी गढ़े.
उनमें से कुछ ने अंग्रेजी की शैली में अपने शब्द बनाए हैं और ऐसे कई शब्दों का प्रयोग किया है जिनके अर्थ लखनवी शब्दकोशों में भी नहीं मिलते, जिन्हें उनके सन्दर्भ से समझना पड़ता है. मुझे खुशी है कि ग़ालिब इंस्टीट्यूट के इस सेमिनार के कारण कई ऐसे मुद्दों पर चर्चा हुई, जिन पर काम करने की जरूरत है.
इस सत्र में प्रो. याकूब यावर ने 'क्रिएटिव माइंड ऑफ रतननाथ सरशार', 'प्रोफेसर गजनफर' ने 'एक महत्वपूर्ण बिंदु की ओर इशारा' और डॉ. सफीना ने 'पंडित रतननाथ सरशार के उपन्यास कदम धाम का विश्लेषणात्मक अध्ययन' विषय पर पेपर लिखे.