आवाज द वाॅयस/नई दिल्ली
पिछले दो आम चुनावों के बाद कांग्रेस पार्टी एक बार फिर अपने नए अवतार में हैं. इस चुनाव में कांग्रेस को 99 सीटें मिली हैं. पिछले चुनाव में इसके हिस्से 52 सीटें आई थीं. कांग्रेस को इस नए मुकाम पर लाने में जहां पार्टी के नए प्रधान मल्लिकाजुर्न खड़गे की महत्वपूर्ण भूमिका रही, वहीं राहुल गांधी के 10 साल के संघर्षों को नहीं भुलाया जा सकता. पिछले दो साल में तो उन्होंने कई पर पैदल यात्रा कर देश नापने की कोशिश की.
आइए, जानते हैं कि कांग्रेस के इस ‘ सुपर स्टार’ की अब तक सियासी सफर कैसी रही.राहुल गांधी कांग्रेस के नंबर 2हैं.उनकी बॉस केवल उनकी मां सोनिया गांधी हैं.यह पदोन्नति महीनों की प्रत्याशा और वर्षों के शोरगुल के बाद हुई है, जो एक प्रशंसक कांग्रेस द्वारा की गई थी. एक ऐसी पार्टी जो नेहरू-गांधी परिवार की पीढ़ियों से नेतृत्व की उम्मीद करती रही है.
जब से उन्होंने नौ साल पहले अपनी राजनीतिक शुरुआत की है, तब से भारत की सबसे पुरानी पार्टी के रैंक और फ़ाइल में यह मांग बढ़ रही है कि श्री गांधी, जो स्वतंत्र भारत में राजनीति में नेहरू-गांधी परिवार की चौथी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं, पार्टी और सरकार में बड़ी भूमिका निभाएं.जयपुर में, जब पार्टी 2014के आम चुनावों के लिए अपनी रणनीति तैयार करने के लिए मिली, तो यह एक उग्र स्तर पर पहुंच गया.
श्री गांधी की पदोन्नति अपरिहार्य थी. कांग्रेस नेताओं ने स्वीकार किया कि यह केवल इस बात का मामला था कि वह "बड़ी भूमिका" को कब स्वीकार करने के लिए तैयार होंगे.वह भारत के पहले प्रधानमंत्री के परपोते, पहली महिला प्रधानमंत्री के पोते, सबसे युवा प्रधानमंत्री के बेटे और पार्टी की सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहने वाली सोनिया गांधी के बेटे हैं.
कांग्रेसियों को उम्मीद है कि वह पार्टी की कमान संभालेंगे और एक दिन भारत के प्रधानमंत्री बनेंगे.इस सप्ताहांत जयपुर में सबसे जोरदार मांगों में से एक यह थी कि उन्हें 2014 में पार्टी का प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया जाए.राहुल गांधी का जन्म 19जून 1970को दिल्ली में राजीव और सोनिया गांधी की पहली संतान के रूप में हुआ था.
वे परिवार के गैर-राजनीतिक हिस्से में पले-बढ़े.उनके पिता राजीव, जो एक वाणिज्यिक पायलट थे, इंदिरा गांधी के भावी राजनीतिक उत्तराधिकारी नहीं थे. उनके चाचा संजय गांधी थे.लेकिन 1980में एक विमान दुर्घटना में संजय गांधी की मृत्यु हो गई, जिससे अनिच्छुक राजीव गांधी को राजनीति में प्रवेश करना पड़ा.
ठीक चार साल बाद, 1984में, इंदिरा गांधी की हत्या ने उन्हें कांग्रेस के अग्रिम मोर्चे पर पहुंचा दिया.वे 40वर्ष की आयु में भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री बन गए.बीस साल बाद, उस समय 34 वर्षीय राहुल गांधी भी राजनीति में अनिच्छुक प्रवेश करने वाले एक और व्यक्ति थे.
श्री गांधी ने पहली बार 2004 में लोकसभा चुनाव लड़ा, जिसमें वे पारंपरिक पारिवारिक निर्वाचन क्षेत्र अमेठी से चुनाव लड़े, जिस पर कभी उनके पिता का कब्जा था.जब वे चुनाव प्रचार कर रहे थे, तो अमेठी के लोगों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया.पिता और पुत्र के बीच तुलना की.तब अमेठी के लोगों को इस बात में कोई संदेह नहीं था कि वे भारत के भावी प्रधानमंत्री को संसद में भेज रहे हैं.
चुनावी उलटफेर में कांग्रेस ने उस साल भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए से सत्ता छीन ली और तब से उसे नहीं छोड़ा.यूपीए के नौ साल के शासन में, हर कुछ महीनों में इस बात की अटकलें लगाई जाती थीं कि राहुल गांधी सरकार में शामिल होंगे या पार्टी के भीतर कोई आकर्षक पद स्वीकार करेंगे.लेकिन वे सितंबर 2007 में पार्टी के महासचिवों में से एक बने और भारतीय युवा कांग्रेस और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ (एनएसयूआई) का प्रभार संभाला.
उनके समर्थक इस बात पर जोर देते हैं कि पार्टी में सुधार शुरू करने का श्रेय उन्हें दिया जाना चाहिए - जैसे कि युवा कांग्रेस के चुनाव, पार्टी में चयन के लिए कॉर्पोरेट शैली के साक्षात्कार और कांग्रेस पार्टी के लोकतंत्रीकरण के लिए जोर देना.पूर्व चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक केजे राव कहते हैं, "जब उन्होंने कहा कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले किसी भी व्यक्ति को युवा कांग्रेस और एनएसयूआई में चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी, तो वे अपने शब्दों पर कायम रहे."
लेकिन जब ज़रूरत हो, तब पार्टी के लिए अपने व्यक्तिगत करिश्मे और विचारों को वोट में बदलने की श्री गांधी की क्षमता पर लगातार सवालिया निशान लगे रहे हैं.उन्होंने उत्तर प्रदेश (यूपी) को फिर से जीतना चुना - जो कभी कांग्रेस का गढ़ था और जहां वह लंबे समय से सत्ता से बाहर है.
उन्होंने राज्य में दलितों का समर्थन जीतने के लिए उनके घरों में कई हाई-प्रोफाइल दौरे किए.यहां तक कि वे तत्कालीन ब्रिटिश विदेश सचिव डेविड मिलिबैंड को यूपी में अपने एक ग्रामीण रात्रि प्रवास पर भी ले गए.लेकिन, 2007और 2012दोनों में, वे कांग्रेस को महत्वपूर्ण लाभ दिलाने में असमर्थ रहे.
दरअसल, 2012 में कांग्रेस को 2007 की तुलना में चार सीटें कम मिलीं.बहुचर्चित 'राहुल फैक्टर' के बावजूद 404 में से सिर्फ़ 28 सीटें ही जीत पाई.एक और युवा नेता अखिलेश यादव अपनी समाजवादी पार्टी के लिए समर्थन की लहर पर सवार होकर मुख्यमंत्री बन गए.राहुल गांधी ने पूरी तरह से दोष अपने सिर ले लिया.
वे टीवी कैमरों के सामने कभी-कभार ही आए और कहा, "मैंने अभियान का नेतृत्व किया.हार की ज़िम्मेदारी मेरी है." इसके बाद वे मुड़े और अपनी छोटी बहन और सबसे बड़ी समर्थक प्रियंका गांधी का हाथ थामकर चले गए.उत्तर प्रदेश में श्री गांधी की पहली चुनावी विफलता नहीं थी.
2010 के बिहार विधानसभा चुनावों में श्री गांधी ने कांग्रेस से गठबंधन के बिना अकेले लड़ने का आग्रह किया था. 243 सीटों वाली विधानसभा में कांग्रेस को सिर्फ़ चार सीटें मिलीं। उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों ने उनकी राजनीतिक सूझबूझ और पार्टी को चुनावी सफलता दिलाने की उनकी क्षमता पर सवाल उठाते हुए मुस्कराहट दिखाई.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने श्री गांधी का मज़ाक उड़ाया: "वह भारत के प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं. पहले उन्हें कम से कम किसी राज्य का मुख्यमंत्री तो बनने दें. उन्हें शासन करना सीखने दें।" वरिष्ठ भाजपा नेता अरुण जेटली ने कहा, "हमारे विरोधी सोचते हैं कि चुनाव सिर्फ़ परिवारों के करिश्मे के आधार पर लड़े और जीते जा सकते हैं."
कांग्रेस ने उनका जोरदार बचाव किया. तब विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा था, "श्री राहुल गांधी साहस के साथ चुनाव प्रचार में उतरे थे. उन्होंने कहा, 'मैं कांग्रेस को खड़ा करने जा रहा हूँ', और ज़रूरी नहीं कि चुनाव लड़ने और जीतने के लिए। चुनाव लड़ने और जीतने के लिए अभी बहुत जल्दी थी."
महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपने विचार साझा करने में संकोच करने के कारण भी उन्हें काफी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. हाल ही में, दिसंबर 2012में दिल्ली में एक मेडिकल छात्रा के साथ हुए क्रूर सामूहिक बलात्कार के बाद उनके विलम्बित और नीरस बयान के लिए उनकी आलोचना की गई थी.जिस व्यक्ति को कांग्रेस अपना युवा चेहरा कहती है.
वह उन युवाओं से जुड़ नहीं पाया, जो इस घटना और इसके बाद सरकार की अक्षमता के विरोध में हजारों की संख्या में दिल्ली की सड़कों पर उतर आए थे.उसी दिन उनकी 66वर्षीय मां की सरल लेकिन शक्तिशाली अपील ने कई लोगों को दोनों नेताओं की प्रतिक्रिया की तुलना करने पर मजबूर कर दिया.
लेकिन कांग्रेस के दिग्गज और युवा नेता समान रूप से कहते हैं कि उन्हें यकीन है कि श्री गांधी पार्टी को उत्साहित करने वाले और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों में इसे लगातार तीसरी जीत दिलाने वाले व्यक्ति हैं.वे कांग्रेस में युवा चेहरों को बढ़ावा देने का श्रेय उन्हें देते हैं .
उनके करीबी सहयोगियों का कहना है कि उन्हें विस्तृत राजनीतिक ज्ञान है और वे एक अनुभवी बैकरूम ऑपरेटर हैं.उनकी पदोन्नति पर कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री सचिन पायलट ने कहा, "इससे पूरे देश में पार्टी कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार हुआ है.अब हम नए जोश के साथ अगले लोकसभा चुनाव में उतरेंगे.राहुल कांग्रेस के लिए एक एकीकृत ताकत होंगे."
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि श्री गांधी के नंबर 2 की स्थिति में आने से कांग्रेस में रातों-रात बदलाव नहीं आएगा.राजनीतिशास्त्री जोया हसन ने एनडीटीवी से कहा, "सोनिया गांधी स्वभाव से सतर्क हैं और वरिष्ठ, स्थापित नेताओं को समायोजित करना चाहती हैं.राहुल, निश्चित रूप से अपने समकालीनों को बढ़ावा देना चाहते हैं. कुछ सालों में हम एक ऐसी कांग्रेस देखेंगे जिसमें पुराने और नए दोनों होंगे."
श्री गांधी, एक अविवाहित, भारत और अमेरिका में शिक्षित हुए और लंदन में काम किया.अपने राजनीतिक अवतार में, वे स्पोर्ट्स शूज के साथ सफेद कुर्ता पायजामा पसंद करते हैं.अक्सर दाढ़ी रखते हैं या कभी-कभी पूरी दाढ़ी भी रखते हैं.कुछ साल पहले तक, उन्हें कभी-कभी दिल्ली में अपने बहनोई रॉबर्ट वाड्रा के साथ मोटरसाइकिल चलाते हुए देखा जाता था, जो उनकी सुरक्षा में लगे लोगों को बहुत परेशान करता था.
श्री गांधी, जिन्हें उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्राप्त है. अक्सर लोगों की भीड़ में घुस जाते हैं और उनसे घुलमिल जाते हैं.एक सुबह वह मोटरसाइकिल पर पीछे बैठकर उत्तर प्रदेश के भट्टा-परसौल गांव में किसानों के विरोध प्रदर्शन स्थल पर पहुंचे.फिर एक बार, मुंबई में एक राजनीतिक बैठक के स्थल पर पहुंचने के लिए लोकल ट्रेन में सवार हुए.