सूफीवाद, इस्लाम और सांस्कृतिक एकता पर प्रोफेसर इकबाल एस हसनैन की गहरी नजर: विशेष बातचीत

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 09-04-2025
Professor Iqbal S Hasnain's deep insight on Sufism, Islam and cultural unity: Exclusive Interview
Professor Iqbal S Hasnain's deep insight on Sufism, Islam and cultural unity: Exclusive Interview

 

पार्ट दो

सूफीवाद, इस्लाम, और मध्य-पूर्व में हो रहे बदलावों पर गहरी नजर रखने वाले, जामिया हमदर्द के प्रो चांसलर और यूनिवर्सिटी ऑफ कालीकट के चांसलर रह चुके प्रोफेसर इकबाल एस हसनैन ने "आवाज़ द वॉयस" के चीफ एडिटर आतिर खान से विशेष बातचीत में कई अहम मुद्दों पर अपने विचार साझा किए. उन्होंने भारत में सूफीवाद की भूमिका, सऊदी अरब में हो रहे बदलाव और तालिबान के वर्तमान दृष्टिकोण पर खुलकर बात की.

सूफीवाद और हिंदू धर्म के बीच की कड़ी

प्रोफेसर इकबाल हसनैन का मानना है कि सूफीवाद और हिंदू धर्म के बीच गहरी सांस्कृतिक और धार्मिक समानताएँ हैं. उन्होंने कहा, “सूफीवाद और हिंदू धर्म में एक विशेष प्रकार का जुड़ाव है, जो अद्वैतवाद या एकता के सिद्धांत में निहित है. इस्लाम आने से पहले ही यह तत्व हिंदू धर्म में मौजूद था, और सूफीवाद में भी यह तत्व देखा जाता है. जब इस्लाम आया, तो उसने इसे और प्रगाढ़ किया, जिससे हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच एकता बढ़ी.”

प्रोफेसर ने यह भी उल्लेख किया कि आज के हिंदुत्व विचारधारा ने इस एकता को तोड़ने का काम किया है, जबकि सूफीवाद ने हमेशा विभिन्न धर्मों के बीच संवाद और सौहार्द को बढ़ावा दिया है.

सऊदी अरब में हो रहे बदलाव

सऊदी अरब में हो रहे सामाजिक और धार्मिक बदलावों पर प्रोफेसर हसनैन ने कहा कि यह बदलाव "मध्यमवाद" की दिशा में एक कदम है. उन्होंने बताया, “प्रिंस सलमान ने जो कदम उठाए हैं, उनसे सऊदी समाज में एक तरह का सुधार देखने को मिल रहा है.

यह बदलाव विशेष रूप से वहाबी इस्लाम के प्रभाव को कम करने के लिए किए गए हैं. यह वही बदलाव हैं, जिन्हें फ्रांस में भी देखा गया है, जहाँ पर राष्ट्रपति मैक्रॉन ने सऊदी से आए वहाबी साहित्य को हटाने का आदेश दिया.”

प्रोफेसर हसनैन ने यह भी कहा कि फ्रांस और सऊदी अरब दोनों देशों में धार्मिक कट्टरवाद को खत्म करने के लिए सूफीवाद की पुनर्स्थापना की दिशा में कदम उठाए गए हैं.

वहाबिज्म और आतंकवाद के संबंध

प्रोफेसर ने यह भी चर्चा की कि वहाबिज्म के कारण इस्लामिक दुनिया में एक प्रकार का अति-रूढ़िवादी दृष्टिकोण फैल गया था, जिससे आतंकवाद और कट्टरवाद को बढ़ावा मिला. उन्होंने कहा, “वहाबिज्म के कारण इस्लाम के कुछ तत्वों ने हिंसा और आतंकवाद को बढ़ावा दिया.

तालिबान और पाकिस्तान जैसे देशों में यह प्रभाव विशेष रूप से देखा गया है. हालांकि, अब सऊदी अरब और अन्य देशों में इस पर पुनर्विचार हो रहा है और पुराने विचारों को बदलने की कोशिश की जा रही है.”

सूफीवाद का पुनरुत्थान

सूफीवाद को लेकर प्रोफेसर हसनैन ने यह भी कहा कि सूफीवाद एक ऐसी धार्मिक धारा है, जो प्रेम, समानता और आत्म-समर्पण पर जोर देती है. उनका मानना है कि सूफीवाद का जो मूल उद्देश्य था, वह आज भी प्रासंगिक है और इसे अधिक से अधिक प्रचारित किया जाना चाहिए.

“सूफीवाद में हम अपने खालिक (ईश्वर) के प्रति एक गहरे प्रेम और श्रद्धा को महसूस करते हैं, और यह अन्य धर्मों और संस्कृतियों के प्रति सम्मान की भावना को प्रोत्साहित करता है. यह आज के समय में सबसे आवश्यक है.”

पश्चिमी देशों में इस्लामिक कट्टरवाद और सूफीवाद

पश्चिमी देशों में इस्लामिक कट्टरवाद के उभार और उसके कारण उत्पन्न हुई समस्याओं के बारे में बात करते हुए प्रोफेसर हसनैन ने कहा, “पश्चिमी देशों में विशेष रूप से फ्रांस में, मुस्लिम समुदाय में एक प्रकार का संकट पैदा हुआ है, जहाँ लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान को लेकर संघर्ष कर रहे हैं.

सूफीवाद एक संभावित समाधान हो सकता है, क्योंकि यह लोगों को उनके धर्म का पालन करते हुए समाज में समानता और एकता को बढ़ावा देने की दिशा में मार्गदर्शन करता है.”

तालिबान और भविष्य का रास्ता

तालिबान के बदलावों पर बात करते हुए प्रोफेसर हसनैन ने कहा कि तालिबान के कुछ बदलाव संकेत दे रहे हैं कि वे भी अपने दृष्टिकोण में सुधार करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने कहा, "तालिबान ने कुछ कदम उठाए हैं, जिससे यह लगता है कि वे सूफीवाद की ओर मुड़ने की कोशिश कर रहे हैं. यह एक सकारात्मक बदलाव हो सकता है, लेकिन यह समय के साथ ही स्पष्ट होगा कि वे कितनी सफलता हासिल करते हैं.”

सूफीवाद और धार्मिक एकता

प्रोफेसर हसनैन का मानना है कि सूफीवाद धार्मिक एकता की कुंजी है. उन्होंने कहा, “सूफीवाद ने हमेशा अन्य धर्मों के प्रति प्रेम और समझ को बढ़ावा दिया है. यह किसी भी धर्म के भीतर की आत्मा को समझने और एक दूसरे के धर्म को सम्मान देने का मार्गदर्शन करता है. यह ही कारण है कि सूफीवाद भारत में हिंदू धर्म, इस्लाम और अन्य धर्मों के बीच एक पुल का काम करता है.”

प्रोफेसर इकबाल हसनैन का कहना है कि दुनिया भर में सूफीवाद को फिर से पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है. उन्होंने यह भी कहा कि यदि हम सूफीवाद की मूल बातें समझते हैं तो हम एक शांतिपूर्ण और सहिष्णु समाज की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं.

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उन्होंने अंत में यह भी कहा, "सूफीवाद का संदेश स्पष्ट है – प्रेम, एकता और सभी धर्मों का सम्मान करना. यही हमें इस समय में सबसे ज्यादा चाहिए."इस बातचीत से यह स्पष्ट होता है कि प्रोफेसर हसनैन का दृष्टिकोण सूफीवाद और उसकी मूल धारा को फिर से जीवन्त करने की दिशा में है, ताकि समाज में प्रेम और सामूहिकता का वातावरण बने.

प्रस्तुतिः मोहम्मद अकरम