वक्फ कानून पर पसमांदा मुसलमानों की मोहर, डॉ. फैजी बोले– अब हमारी भी होगी भागीदारी

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 19-04-2025
Pasmanda Muslims put their stamp on Waqf law, Dr. Faizi said – now we will also have participation
Pasmanda Muslims put their stamp on Waqf law, Dr. Faizi said – now we will also have participation

 

आशा खोसा/नई दिल्ली

"विपक्ष ने इसकी उम्मीद नहीं की थी.उनके नेता और सांसद सोच रहे थे कि भाजपा मुसलमानों के बारे में बुरा बोलेगी,इसलिए उन्होंने अपने भाषणों को उसी हिसाब से तैयार किया था.(वक्फ संशोधन) विधेयक पर बहस ने पहली बार मुसलमानों के बीच सामाजिक और लैंगिक न्याय के मुद्दों को सार्वजनिक डोमेन में ला दिया.अधिकांश विपक्षी वक्ता असंगत थे और उन्होंने अप्रासंगिक हस्तक्षेप किए; वे बिना तैयारी के थे."

यह कहना हैजाने-माने पसमांदा मुस्लिम कार्यकर्ता डॉ. फैयाज अहमद फैजी का.वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 पर उनका कहना है कि इस्लामी सिद्धांतों के अनुसार इस कानून का विरोध गैर-इस्लामी है.

वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 पसमांदा मुसलमानों के लिए एक नई शुरुआतमाना जा रहा है,क्योंकि यह लोकतांत्रिक भारत के इतिहास में पहली बार है कि मुसलमानों से संबंधित किसी मुद्दे पर समुदाय के विचार मांगे गए थे.

जाने-माने पसमांदा मुस्लिम कार्यकर्ता डॉ. फैयाज अहमद फैजी का मानना ​​है कि यह एक ऐतिहासिक बदलाव है और "भारतीय मुसलमानों के लिए आशा की किरण है, जो देश की मुस्लिम आबादी का 80 प्रतिशत से अधिक हिस्सा हैं."

डॉ. फैयाज अहमद फैजी नामक एक डॉक्टर ने ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज (एआईपीएमएम) के एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए वक्फ संशोधन विधेयक, 2025पर संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष प्रस्तुति दी, जहां उन्होंने सदस्यों को बताया कि उनका संगठन इसका समर्थन क्यों करता है.

जेपीसी सदस्यों के साथ दो घंटे से ज़्यादा चली मैराथन बातचीत के अपने अनुभव को बताते हुए डॉ. फैयाज अहमद फैजी ने कहा, "मैंने मौखिक प्रस्तुति दी, जिसके बाद सदस्यों ने गहन सवाल पूछे.कुछ विपक्षी सदस्यों ने मुझसे आलोचनात्मक सवाल पूछे और बाद में बिल का समर्थन करने के मेरे कारणों से सहमत हुए."

उन्होंने अपनी गवाही और जेपीसी सदस्यों के साथ बातचीत के आधार पर एआईपीएमएम की अंतिम प्रस्तुति के रूप में 7000 शब्दों का एक दस्तावेज प्रस्तुत किया, जिसके कुछ हिस्से विधेयक के जेपीसी मसौदे में प्रतिबिंबित हुए.

वक्फ संशोधन विधेयक, 2025 पर जेपीसी के सदस्यों के साथ डॉ. फैयाज अहमद फैजी

उन्होंने बताया कि बैठक के दौरान कुछ सदस्य उत्तेजित हो गए और उनसे जांच करने वाले सवाल पूछे."डीएमके के एक सदस्य ने मुझसे पूछा कि मैंने पसमांदा का मुद्दा क्यों उठाया,जबकि इस्लाम एक समतावादी धर्म है और जाति का समर्थन नहीं करता.

मैंने उनसे पूछा कि क्या देश कुरान से चलता है या संविधान से; और संविधान हमारे जैसे सामाजिक रूप से वंचित लोगों का संज्ञान लेता है."उन्होंने कहा कि एआईपीएमएम नेताओं ने लखनऊ, हैदराबाद और मुंबई में जगदम्बिका पाल की अध्यक्षता वाली जेपीसी के समक्ष भी अपने विचार रखे.

उन्होंने कहा कि जगदम्बिका पाल ने उनके विचारों की सराहना की तथा हाल में उन्हें बताया कि जेपीसी ने उनकी गवाही के आधार पर ही कोई निष्कर्ष निकाला है.डॉ. फैयाज अहमद फैजी ने कहा कि उन्हें लोकसभा और राज्यसभा में बिल पर बहस देखकर खुशी हुई.

"दोनों सदनों में मैराथन बहस मुसलमानों के लिए लैंगिक और सामाजिक न्याय पर केंद्रित थी; यह फिर से पहली बार हुआ है."न्याय और समानता चाहने वाले समुदाय के लिए यह "मनोबल बढ़ाने वाला और आशा की किरण" है.

बिल के समर्थन में डॉ. फैयाज अहमद फैजी का दूसरा मुख्य बिंदु मुसलमानों की पवित्र पुस्तक कुरान है.सूरे बकरा (कुरान का दूसरा अध्याय) का हवाला देते हुए, वे कहते हैं, 1500साल पहले अल्लाह ने आदेश दिया था कि दो व्यक्तियों के बीच किसी भी समझौते को कम से कम दो प्रत्यक्षदर्शियों की मौजूदगी में दर्ज किया जाना चाहिए.

इसके अलावा, उन्होंने कहा कि इस्लाम पहला पवित्र ग्रंथ और धर्म था, जिसने निकाहनामा (विवाह अनुबंध) के माध्यम से विवाह के लिए दस्तावेजीकरण को अनिवार्य बनाया.

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जेपीसी अध्यक्ष जगदंबिका पाल के साथ डॉ. फैयाज अहमद फैजी

"दुनियावी ज्ञान के अनुसार, पैगम्बर साहब पढ़े-लिखे नहीं थे, फिर भी उन्होंने (कुरान में) पढ़ने-लिखने के महत्व पर जोर दिया.इस तर्क से, जब इस्लाम निकाहनामा को अनिवार्य बनाता है, तो वक्फनामा देने में क्या समस्या है ?

डॉ. फैयाज अहमद फैजी ने आरोप लगाया कि वक्फ बोर्ड की व्यवस्था वित्तीय अनियमितताओं, अतिक्रमणों (सरकार और मुसलमानों द्वारा) और घोर दुरुपयोग में फंसी हुई है; वक्फ बोर्ड के सदस्य, अधिकारी और यहां तक ​​कि सत्तारूढ़ पार्टी के सदस्य भी इस गिरोह का हिस्सा हैं.

इसकी व्याख्या करते हुए वे कहते हैं: यदि किसी विशेष वक्फ संपत्ति का बाजार किराया 5000 से 8000 रुपये है, तो उसे 10,000 रुपये की एकमुश्त रिश्वत के लिए 200 रुपये में किराये पर दिया जाता है.

डॉ. फिजी कहते हैं कि बिल पर बहस से पहले पसमांदा मुसलमान प्रस्तावित कानून के प्रति उदासीन थे.उन्हें कभी भी वक्फ से जुड़ाव महसूस नहीं हुआ."क्योंकि तब वक्फ का मतलब अशराफ था और उनके बीच लगातार मुकदमेबाजी होती रहती थी."

"भारत में सभी 32 वक्फ बोर्ड अशराफ मुसलमानों (मुसलमान जो अपनी गैर-भारतीय जड़ों का दिखावा करते हैं) के हाथों में हैं और पसमांदा लोगों ने कभी नहीं सोचा कि इससे उन्हें कोई सरोकार है.

उन्हें कभी यह एहसास नहीं होने दिया गया कि इस विशाल संपत्ति की आय ज़्यादातर ग़रीबों, हाशिए पर पड़े लोगों, विधवाओं और अनाथों के लिए है."

डॉ. फैयाज अहमद फैजी ने सोशल मीडिया, पॉडकास्ट और अखबारों में लिखकर समुदाय को यह एहसास दिलाया कि प्रस्तावित कानून सामाजिक रूप से पिछड़े मुसलमानों को वक्फ बोर्ड में जगह देगा और यह गेम चेंजर साबित होगा."मैंने उनसे कहा कि वक्फ बोर्ड में बैठकर हम नीतियों और वक्फ प्रबंधन को प्रभावित कर सकते हैं."

उन्होंने कहा कि चूंकि इस विधेयक पर बहस लंबे समय तक चली, इसलिए पसमांदा समझ गए कि उन्हें विधेयक विरोधी प्रचार में क्यों नहीं पड़ना चाहिए."

आज पसमांदा इस विधेयक का समर्थन कर रहे हैं और इसका विरोध करने वाले मुट्ठी भर लोग राजनीतिक कारणों से ऐसा कर रहे हैं."

डॉ. फैयाज अहमद फैजी का दावा है कि जिन लोगों के पास कोई कागजात नहीं हैं, उनके नियंत्रण में अधिकांश वक्फ संपत्तियां उन मुसलमानों की हैं जो 1947 में पाकिस्तान चले गए थे."संपत्ति को कस्टोडियन ऑफ इवैक्यूईस प्रॉपर्टी विभाग के पास जाना चाहिए था.

लेकिन इसे सरकार के पास जाने से रोकने के लिए और संभवतः पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को आवंटित करने के लिए, इन संपत्तियों को सुविधाजनक रूप से वक्फ घोषित कर दिया गया."

वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को जगह देने वाले खंड पर बोलते हुए,डॉ. फैयाज अहमद फैजी कहते हैं, "ये बोर्ड अब सरकारी संस्थाएं हैं.इन्हें लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष सिद्धांतों पर चलाया जाना चाहिए, इसलिए इस खंड को लेकर कोई समस्या नहीं होनी चाहिए."

वे हरियाणा और पंजाब का उदाहरण देते हैं, जहां अधिकांश मुसलमान मस्जिदों और खानकाहों को छोड़कर पाकिस्तान चले गए, जिनका रखरखाव हिंदू और सिख कर रहे हैं.वे पूछते हैं, ''अगर इस व्यवस्था में कोई समस्या नहीं है तो गैर-मुसलमानों को वक्फ के प्रबंधन में शामिल करने में क्या समस्या है?''