मोहम्मद अकरम/ दिल्ली
1947 में भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली मगर इसके साथ ही देश के विभाजन ने करोड़ो लोगों को ऐसे जख्म दिए हैं जो इतिहास बन गया है. यहबंटवारा सिर्फ जमीन का नहीं था बल्कि लाखों दिलों, खानदानों, रिश्तों और जज्बात का बंटवारा था.इस बंटवारे का दर्द दोनों तरफ के लोगों को आज भी है और आने वाली पीढ़ी को भी होगा.
विभाजन की पीड़ा को सहने वाले और अपनी मिट्टी से जुदा होने वालों में एक ऐसे ही व्यक्ति हैं दयानंद चावला. 83साल की उम्र में चावला हाल ही में अपने पुश्तैनी घर पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के डेरागाजी खान जिले के तहसील तोशाशरीफ, गांव नुतकानी से लौटे हैं.
चावला जब पाकिस्तान पहुंचे तो अपनी पुश्तैनी जगह को चूमकर भावुक हो गए. दयानंद चावला अपने चार भाइयों में सबसे छोटे कृष्ण चावला के साथ गए थे.
दयानंद चावला स्कूल शिक्षक से रिटायर होने के बाद इन दिनों दिल्ली के रोहिणी इलाके में रहते हैं.
1888 का दरवाजा विरासत की जिंदा मिसाल है
दयानंद चावला ने उन दिनों को याद करते हुए आवाज द वाइस से कहा कि ‘‘जब मैं 1989में पहली बार अपने पुश्तैनी घर (पाकिस्तान, पंजाब) पहुंचा तो देखा कि 1888का दरवाजा आज भी अपनी जगह पर खड़ा हैं, जो हमारी विरासत की जिंदा मिसाल है. मैं उस लम्हे को कैसे बयान कर सकता हूं, इसका एहसास मैं ही समझ सकता हूं या वह महसूस कर सकता है जिसने बंटवारे के दर्द को महसूस किया है, मैं बयान नहीं कर सकता हूं’’.
सरकारी कैंप में कई महीने गुजारे
दयानंद के मुताबिक, जब भारत का बंटवारा हुआ तो उनके पिता ईश्वर चंद चावला अपने चार छोटे लड़के और तीन बेटी के साथ हरियाणा के रोहतक पहुंचे जहां सरकारी कैंप में कई महीने गुजारे.
लेकिन चावला को पाकिस्तान जाने का ख्याल कब आया? वह कहते हैं, “1989में अचानक हमें अपनी जन्मभूमि देखने की इच्छा हुई, उस जमाने में संपर्क करने के लिए कोई फोन नहीं था तो हमने नुतकानी गांव के स्कूल हेडमास्टर और पोस्ट मास्टर को खत लिखा कि उस गांव में हमारे चाचा टालू राम थे जो 1942में धर्म बदल कर इस्लाम कबूल कर लिया और अपना नाम शेख अब्दुल मजीद रख लिया है. अगर वह जिंदा हैं तो इसके बारे में हमें जरूर बताएं’’.
पत्र के जवाब में वहां के हेडमास्टर का खत कुछ दिनों में आया कि आप जिस अब्दुल मजीद की बात कर रहे हैं उनका लड़का शेख सैफुल्लाह अब भी इस गांव में रहते हैं. इस खबर से उन्हें उस वक्त बहुत सुकून मिला.
1989 में पहली बार पहुंचे जन्मस्थल
जानकारी मिलने के बाद चावला ने अपनी जन्मस्थली को देखने के लिए कागजात बनवाए और 1989में पहली बार उस गांव पहुंचे जहां उन्होंने बचपन के आठ साल गुजारे थे. अपनी बात कहते हुए दयानंद चावला कुछ देर के लिए खामोश हो जाते और ठहर कर कहते हैं कि हमारे पिता, दादा जी का वह सब कुछ आज भी मौजूद है. अब भी दिखाई दे रहा है.
लोगों ने ढोल बाजे से स्वागत किया
दयानंद चावला रोहिणी सेक्टर 6में सरकारी शिक्षक थे और वर्ष 2001सेवानिवृत्त हुए हैं. बीते नवम्बर महीने में अपने छोटे भाई कृष्ण चावला के साथ वह दूसरी बार पाकिस्तान गए थे. 1989में पहली बार जब अपने जन्मस्थल पहुंचे तो लोगों ने गांव के बाहर ढोल और बाजे से स्वागत किया. चावला कहते हैं कि जब मैं नवम्बर महीने में अपने पुश्तैनी घर पहुचा तो भाई सैफुल्लाह के बच्चों और नुतकानी गांव के लोगों ने ढोल, बाजे के साथ इस्तकबाल किया.
बंटवारे ने सब कुछ छीन लिया
दयानंद चावला पाकिस्तान में पिता के गुजरे वक्त को याद करते हुए कहते हैं कि मेरे पिता जी पंजाब के जाने माने जमींदार थे लेकिन देश के बंटवारे ने हमसे सब कुछ छीन लिया. जब मैं अपनो के साथ भारत आया उस समय मेरी उम्र 8साल की थी. जब हम यहां (भारत) आ गए, तो सारी जमीन सरकार की हो गई, चाचा की भी नहीं. उसके बदले हमें भारत में कुछ भी नहीं मिला.
चावला अपने सफर के बारे में आगे बताते हैं, ‘‘मैं जब वहां गया तो एक रुपये भी खर्च नहीं हुआ, लोगों की मेहमाननवाजी, लाहौर, इस्लामाबाद, पेशावर, मुल्तान, तौशा, नुतकानी समेत कई जगहों पर गया, बहुत अच्छा लगा. मैं मेहमान नवाजी के कायल हूं और मुझे इस बात पर फख्र हैं कि पाकिस्तान में हमारे ऐसे दोस्त भी हैं जो ऐसे मेहमान नवाज भी है जिन्होंने हमें ये महसूस नहीं होने दिया कि मैं घर से बाहर हूं.’’
पिता ने घर के खर्च के लिए दुकान खोली
दयानंद चावला का परिवार जब भारत पहुंचा और रोहतक सरकारी कैम्प में रहने लगे तो कुछ महीनों के बाद भविष्य को लेकर चिंता सताने लगी. ऐसे में उनके पिता ने रोहतक में एक छोटी सी स्पोर्टस की दुकान खोल ली. उस समय एक छोटी सी स्पोर्ट्स की दुकान, आज तरक्की करते हुए दो स्पोर्ट्स शोरूम में तब्दील हो गए हैं.
क्या आपको मौका मिलेगा तो पुश्तैनी घर फिर जाएंगे. इस सवाल के जवाब में दयानंद चावला अपनी उम्र और सेहत के हवाले से इंकार करते हुए कहते हैं, “अब मुझे मौका भी मिले तो मैं नहीं जा सकता हूं, अब उम्मीद कम है किमैं दोबारा अपने उस घर जाऊं, मैं वहां से होकर आ गया हूं, जी भर के देख लिया है.’’.
चावला पाकिस्तान जाने के हवाले से दोनों देश के दूतावास का शुक्रिया अदा करते हुए कहते हैं कि दोनों तरफ के दूतावास ने सफर में हमारी मदद की है.