सेराज अनवर/पटना
कर्बला, एक गमगीन और हमेशा याद रखने वाली बात है जो इस्लामी इतिहास में बहुत अहमियत रखता है.मुहर्रम का इतिहास कर्बला से जुड़ा है.जहां इमाम हुसैन अपने 72 साथियों के साथ शहीद कर दिये गये. कर्बला मध्य इराक के बगदाद शहर से लगभग 100 किमी दक्षिण-पश्चिम में स्थित है.
मुहर्रम का महीना जब भी आता है दुनिया भर के मुसलमानों को कर्बला याद आ जाता है.मुहर्रम की 10तारीख़ को इसी कर्बला में अपने नाना पैग़म्बर इस्लाम हजरत मुहम्मद (सअ)के सिद्धांतों की रक्षा के लिए हज़रत इमाम हुसैन(अ स)ने अपना बलिदान दे दिया.
बग़दाद की तरह ही एक कर्बला बिहार के गया में भी है.दोनों में काफी समानता है.गया के कर्बला का निर्माण एक हिन्दू परिवार ने किया था.दिलचस्प बात यह है कि एक मुस्लिम महिला ज़ीनत के ख़्वाबों का ताबीर है.
बग़दाद की तरह ही कर्बला बनाने का ख़्वाब लेकर निकली ज़ीनत के क़दम गया में रुक गए.वह यहां शहर की नामवर शख़्सियत हरिहर प्रसाद राय के यहां पहुंच गयी और यहीं से कर्बला बनाने की कहानी शुरू होती है.जिस शख़्स का भी क़दम गया के कर्बला में पड़ता है,बग़दाद के कर्बला की याद ताज़ा हो जाती है.यहां की भौगोलिक स्तिथि और बनावट ही कुछ ऐसी है.
ज़ीनत बीबी का सफर
गया बिहार की धार्मिक नगरी में शुमार है.यह हिन्दू,बौद्ध,जैन और मुसलमानों का धर्म स्थल है.भगवान विष्णु यहीं हैं,महात्मा बुद्ध को यहीं निर्वाण प्राप्त हुआ,जैनियों की बड़ी मन्दिर भी इसी जगह है और मुस्लिम समुदाय के पीर मंसूर इसी जगह लेटे हुए हैं.
इस शहर की ख़ासियत यह है कि मोक्ष और ज्ञान दोनों यहां मिलते हैं.सपने भी साकार यहीं होते हैं.गया के कर्बला की कहानी एक महिला के ख़्वाब से जुड़ी है.उस ख़ातून का नाम ज़ीनत बीबी था.ज़ीनत बीबी ने हिंदुस्तान में बग़दाद की तरह एक कर्बला बनाने का ख़्वाब देखा.ख़्वाब की ताबीर पूरी करने ज़ीनत बीबी इराक़ के कर्बला से ख़ून सनी मिट्टी लेकर यात्रा पर निकल गयी.
वह घूमती रही मगर वह स्थल नज़र नहीं आया जिसे उसने ख़्वाब में देखा था.ख़्वाब में देखे हुए जगह को हक़ीक़त में बदलने की ज़िद लिए ज़ीनत बीबी गया से गुज़र रही थीं कि मौजूदा कर्बला के पास अचानक उसके क़दम रुक गए.क्योंकि फल्गु नदी एकदम सामने था.जैसे इराक़ में नहर ए फ़रात है और पीछे दो छोटी-छोटी पहाड़ी.दृश्य एकदम बग़दाद के कर्बला
जैसा.भौगोलिक दृष्टिकोण से भी देखा जाये तो यह इलाक़ा जहां पर आज कर्बला तामीर है,वह ज़मीन से काफ़ी उपर क़िलानुमा था.तो सामने नदी और पीछे दो पहाड़ी यह ज़ीनत बीबी के ख़्वाबों का अंतिम पड़ाव था.जिस जगह को ख़्वाब में बार-बार दिखाया जा रहा था.लिहाज़ा ज़ीनत बीबी ने उस तबरूकात जो कर्बला से लेकर आयीं थीं इसी जगह दफन कर दिया.ज़ीनत का सफ़र आख़िर यहीं फल्गु घाट पर ख़त्म हुआ.
कर्बला बनाने में हिन्दू परिवार ने की मदद
ज़ीनत बीबी हरिहर प्रसाद राय,बलवंत प्रसाद राय के घर ठहरी थीं.इनके यहां कर्बला के खादिम डॉ सैयद शब्बीर अहमद के पूर्वज फ़ारसी पढ़ाने जाते थे.यह 1797 की बात है.वहीं पता चला कि ज़ीनत नाम की एक महिला गया में कर्बला बनाना चाहती है.
हरिहर प्रसाद राय परिवार ने कर्बला केलिए ज़मीन ही दान नहीं किया बल्कि कर्बला का निर्माण भी कराया.ज़ीनत बीबी के ख़्वाब को एक हिन्दू परिवार ने मुकम्मल किया.हिंदुस्तान में एक हिन्दू परिवार द्वारा कर्बला बनाने की बात इराक़ से ईरान तक फैल गयी.
ईरान के शहज़ादा कुली मिर्ज़ा को शाह को जब यह जानकारी मिली तो गया के कर्बला को देखने अपने क़ाफ़िला के साथ निकल पड़ें.लेकिन रास्ते में उनकी तबियत बिगड़ गयी.इसके बाद उन्होंने ख़्वाहिश ज़ाहिर की अगर हिंदुस्तान में हमारी मौत हो जाती है तो उन्हें गया के कर्बला में दफ़न कर दिया जाये.
हिंदुस्तान में उनकी मौत हो गयी उर उनकी इच्छा के मुताबिक़ 1844 में उन्हें गया कर्बला में दफन किया गया.कर्बला परिसर में ही उनके कब्र पर एक गुम्बद बना हुआ है.कर्बला और इमामबाड़ा का निर्माण 1269 में हुआ.
कर्बला की कमिटी में हिन्दू-मुस्लिम शामिल
कर्बला की देखरेख केलिए अंग्रेज़ी हुकूमत ने 1907 में एक कमिटी बनायी थी.जिसमें दो शिया,दो सुन्नी समुदाय से और एक राय हरिहर प्रसाद के परिवार से सदस्य बनाये गये थे.यह रिवायत आजतक जारी जारी है.इसके पदेन अध्यक्ष डिस्ट्रिक्ट जज होते हैं.
गया का कर्बला बिहार का सबसे प्राचीन और बड़ा है.इसी कर्बला में ज़ीनत बीबी भी दफन हैं.उनके कब्र पर उनके नाम से एक कुतबा भी लगा है.किरण सिनेमा स्थित राय हरिहर प्रसाद के पास से आज भी मुहर्रम के सात तारीख़ को मेहंदी निकलने की रिवायत क़ायम है.
आम दिनों में भी यहां के कर्बला को देखने दोनों क़ौमों हिन्दू-मुस्लिम बेगैर किसी धार्मिक मतभेद के पहुंचते हैं और इमाम हुसैन के प्रति अपनी आस्था जताते हैं.गया शहर के इक़बाल नगर में रामशिला पहाड़ी के दामन और फल्गु नदी के साहिल पर स्थित क़िलानुमा कर्बला हिन्दू-मुस्लिम एकता की साझी विरासत है.