नितीन बिनेकर
मुंबई में रमज़ान का मतलब सिर्फ़ रोज़े और इफ्तार नहीं—ये खवय्यियों के लिए लज़ीज़ खानों का मेला है. और इस मेले का दिल है मोहम्मद अली रोड.यहाँ की तंग गलियाँ, मिनारा मस्जिद का इलाक़ा, और आसपास की सड़कें रमज़ान में खाने-पीने वालों के लिए जन्नत बन जाती हैं. यहाँ बरसों से बिरयानी, कबाब, निहारी की महक फैलती थी, मगर इस बार एक नया सितारा चमका—‘लैला-मजनू पुलाव’. ये डिश खाने के शौकीनों के दिलों पर छा गई.
मोहम्मद अली रोड: रमज़ान का खाना-खज़ाना
मोहम्मद अली रोड और रमज़ान का रिश्ता पुराना है. ये जगह मुंबई की मुस्लिम आबादी का बड़ा ठिकाना है, और रमज़ान में यहाँ की रौनक़ दोगुनी हो जाती है.
सूरज ढलते ही सड़कें गुलज़ार हो उठती हैं—हलवाइयों की दुकानों से शीरखुरमा की मिठास, कबाब की भट्टियों से धुआँ, और बिरयानी के ढक्कनों से भाप. यहाँ रमज़ान सिर्फ़ इबादत का महीना नहीं—ये खाने की साझी संस्कृति का जश्न है, जहाँ हिंदू-मुस्लिम सब मिलकर मज़े लेते हैं. इस बार ‘लैला-मजनू पुलाव’ ने इस जश्न को नया रंग दिया.
लैला-मजनू पुलाव: स्वाद का अफगानी तड़का
‘लैला-मजनू’ नाम सुनकर कुछ रोमानी ख़याल आते हैं, मगर ये पुलाव अफगानी खाने की शान है.
इसमें बासमती चावल की ख़ुशबू, केसर की रंगत, और काजू, बादाम, पिस्ता, मनुके जैसे सूखे मेवों का ज़ायका है. अफगानी मसाले इसे हल्का मगर शाही बनाते हैं—बिरयानी से जुदा, मगर उतना ही लज़ीज़. मसालेदार गोश्त के टुकड़ों के साथ परोसा जाए, तो मुंह में स्वाद का धमाका हो जाता है.
माशाअल्लाह होटल ने इसे पहली बार अपने मेन्यू में डाला, और बस, खवय्यियों ने इसे हाथोंहाथ लिया.
माशाअल्लाह की नई पेशकश
मोहम्मद अली रोड पर माशाअल्लाह होटल ने इस बार कमाल कर दिखाया. ‘लैला-मजनू पुलाव’ के साथ ‘अल्फाम तंदूरी’ का जोड़ा इतना हिट हुआ कि लोग लाइन लगाकर खाने लगे.
होटल के शेफ़ का कहना है कि ये अफगानी स्वाद मुंबईकरों की नई चीज़ चखने की आदत से मेल खाता है. रमज़ान में बिरयानी, निहारी, हलीम तो हमेशा चलते हैं, मगर इस बार ये नया पुलाव सबकी ज़ुबान पर चढ़ गया.
प्रेमी जोड़ों की शान में दिया नाम
माशाअल्लाह होटल के मालिक अब्दुल रेहमान बताते हैं, “हमारे यहाँ ढेर सारे प्रेमी जोड़े आते हैं. वो साथ बैठकर कुछ ख़ास खाना चाहते थे. बस, उनके लिए ये पुलाव बनाया, और नाम रख दिया ‘लैला-मजनू’. रमज़ान में खाना सिर्फ़ पेट भरने की चीज़ नहीं—ये मोहब्बत और स्वाद का मिलन है.
लोगों का प्यार देखकर आगे और नए प्रयोग करेंगे.” उनकी बात से साफ़ है कि ये डिश सिर्फ़ खाने की नहीं, दिलों को जोड़ने की भी बात है.
खाने की शौक़ीनों की ज़ुबानी
शुभांगी शिंदे, जो खाने की शौक़ीन हैं, कहती हैं, “रमज़ान में कुछ नया ट्राई करना था. ‘लैला-मजनू पुलाव’ गज़ब का है—सूखे मेवे और अफगानी मसाले इसे ख़ास बनाते हैं. अल्फाम तंदूरी के साथ तो मज़ा दोगुना हो गया!”
रवींद्र वालकोडी, जो सालों से मोहम्मद अली रोड आते हैं, बोले, “हर बार कुछ न कुछ चखता हूँ. इस बार ये पुलाव ट्राई किया—हल्का मसाला, महकते चावल, और मेवों का स्वाद इसे अलग बनाता है. लाजवाब है!”
रमज़ान का लज़ीज़ जादू
मोहम्मद अली रोड पर रमज़ान का खाना सालों से सबको लुभाता है. यहाँ की भीड़ में हिंदू-मुस्लिम का फ़र्क़ नहीं दिखता—सब खाने के शौक़ में डूबे रहते हैं. ‘लैला-मजनू पुलाव’ ने इस बार नया मज़ा जोड़ा. ये सिर्फ़ एक डिश नहीं—मुंबई की साझी संस्कृति का हिस्सा है, जो हर प्लेट में मोहब्बत परोसती है.