नांदेड़ मध्य : अल्पसंख्यक बहुल विधानसभा क्षेत्रों में वही होगा विजेता जो सभी समूहों का विश्वास जीतेगा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 17-11-2024
Nanded Madhya: In minority dominated assembly constituencies, the winner will be the one who wins the trust of all groups
Nanded Madhya: In minority dominated assembly constituencies, the winner will be the one who wins the trust of all groups

 

- शहेबाज म. फारूक मनियार  

नांदेड महाराष्ट्र-तेलंगणा सीमा पर स्थित एक महत्वपूर्ण शहर है. अल्पसंख्यक बहुल यह शहर अपनी बहुसांस्कृतिक छवि के लिए मशहूर है . यहाँ सिखों के दसवें और अंतिम गुरु, गुरु गोविंद सिंह जी की समाधि भी है, जिससे इस शहर को अंतरराष्ट्रीय महत्त्व प्राप्त हुआ है. 

2011 की जनगणना के अनुसार, नांदेड शहर की कुल जनसंख्या में मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या 28.43%, बौद्ध समुदाय की 16.36%, तो सिख समुदाय की जनसंख्या 1.62% है. इसका मतलब है कि इस शहर के लगभग 47% लोग अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं.

खास बात है, इस शहर  महाराष्ट्र को अब तक चार मुख्यमंत्री दिए हैं. कांग्रेस के शंकरराव चव्हाण और उनके पुत्र अशोक चव्हाण दोनों दो-दो बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने. स्वतंत्रता के बाद से राजनीतिक दृष्टिकोण से नांदेड शहर पर कांग्रेस का दबदबा रहा है.

तेलंगाना के असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एमआयएम ने 2012 के नांदेड महानगरपालिका चुनावों में हिस्सा लिया. पहली ही कोशिश में मुस्लिम मुद्दों पर राजनीति करने वाले इस पार्टी के 11 नगरसेवक यहाँ से चुन कर आये थे. 

नांदेड महानगरपालिका चुनावों के माध्यम से एमआयएम की नांदेड में और महाराष्ट्र की राजनीति में एंट्री हुई. इससे नांदेड शहर के मुस्लिम राजनीति को महत्वपूर्ण स्थान मिला. नांदेड शहर में दो विधानसभा क्षेत्र हैं: नांदेड उत्तर और नांदेड दक्षिण। दोनों विधानसभा क्षेत्र अर्द्ध-शहरी हैं. नांदेड दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में 23.5% मतदाता मुस्लिम हैं और 17% मतदाता दलित समुदाय से हैं. 

इसलिए, यहां किसी भी उम्मीदवार को चुनाव जीतने के लिए मुस्लिम और दलित दोनों समुदायों का समर्थन जरूरी है. किसी एक समुदाय के वोटों पर चुनाव जीतना संभव नहीं है. पिछले दो विधानसभा चुनावों के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर यह बात सामने आती है. 

विधानसभा 2014

1.    हेमंत पाटील           (शिवसेना)     45836
 2.    दिलीप कंदकुर्ते        (भाजपा)     42629
 3.    मोईन सय्यद            (एमआयएम)     34590
 4.    ओमप्रकाश पोकर्णा  (कांग्रेस)      31762 
 5.    अनवर जावेद           (बसपा)      4431

2012 के नांदेड महानगरपालिका चुनावों में सफलता के बाद, 2014 के विधानसभा चुनावों में एमआयएम ने पूरी ताकत से चुनाव लड़ा था. मुस्लिम समाज, खासकर युवाओं में एमआयएम की लोकप्रियता थी. हालांकि, लोकप्रियता के बावजूद एमआईएम के उम्मीदवार सय्यद मोईन केवल 34,560 वोट ही हासिल कर पाए थे, जिनमे ज्यादातर मुस्लिम समुदाय से थे. ये वोट जीत के लिए पर्याप्त नहीं थे. इसलिए उस समय शिवसेना के हेमंत पाटील ने 45,836 वोटों के साथ जीत हासिल की थी.

विधानसभा 2019

  1.    मोहन हंबर्डे        (कांग्रेस)      46943
  2.    दिलीप कंदकुर्ते    (अपक्ष)      43351
  3.    राजश्री पाटील     (शिवसेना)      37066
  4.    फारूक अहेमद     (वंचित)      26713
  5.    साबिर चाउस       (एमआईएम  )      20122

लोकसभा 2019 में प्रकाश आंबेडकर ने अपने भारिप बहुजन महासंघ को वंचित बहुजन आघाडी में बदल लिया. दलित, मुस्लिम और छोटे ओबीसी समुदायों को जोड़कर उन्होंने इस नाम से एक बड़ा गठबंधन बनाया.

लोकसभा चुनाव में उनका एमआईएम के साथ गठबंधन हुआ, जिसका फायदा औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र में इम्तियाज जलील को मिला, और वह सांसद बने. लेकिन, यह गठबंधन जल्द ही टूट गया और 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में दोनों दलों ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा.

2019 के विधानसभा चुनाव में नांदेड दक्षिण क्षेत्र में वंचित के फारूक अहमद और एमआईएम के साबेर चाऊस मैदान में थे. मुस्लिम उम्मीदवारों के खड़े होने से मुस्लिम वोटों में बंटवारा हो गया. वंचित के फारूक अहमद को 26,713 वोट मिले, जबकि एमआईएम के साबेर चाऊस को 20,122 वोट मिले.

वंचित ने फारूक अहमद को उम्मीदवार बना कर दलित-मुस्लिम समीकरण साधने की कोशिश की थी, लेकिन एमआइएम ने मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा कर दिया, जिससे मुस्लिम वोटों का विभाजन हुआ और दोनों उम्मीदवार हार गए. दोनों उम्मीदवारों के कुल प्राप्त वोट 46,835 थे, जो जीतने वाले उम्मीदवार के वोटों के पास भी नहीं पहुंचे. 

2019 के विधानसभा चुनाव में बाकी 19 मुस्लिम उम्मीदवारों ने लगभग 4,000 वोट प्राप्त किए. अगर वंचित और एमआईएम ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा होता तो जीत का समीकरण सरलता से बन सकता था. मुस्लिम वोटों के विभाजन के कारण कांग्रेस के नये नवेले उम्मीदवार मोहन हंबर्डे ने 46,943 वोट हासिल करके जीत दर्ज की थी.

विधानसभा 2024

2014 से इस विधानसभा क्षेत्र में चौगुनी या पंचगुनी मुकाबला देखने को मिला है. इस बार भी पांच प्रमुख उम्मीदवार चुनावी मैदान में हैं. इसलिए जीत के लिए समीकरण वही रहेगा, जैसा पहले था. जो उम्मीदवार 50,000 वोटों के करीब हासिल करेगा, उसे जीत की संभावना ज्यादा होगी.

इस बार वंचित ने फारूक अहमद को फिर से उम्मीदवार बनाया है. एमआइएम से इस बार सय्यद मोईन चुनावी मैदान में हैं. 2019 विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी दो सशक्त मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं. पिछले चुनाव में हारने के बाद फारूक अहमद पिछले पांच सालों से दलित-मुस्लिम समीकरण बनाने के प्रयास में हैं.

खास बात यह है कि नामांकन पत्र दाखिल करने के आखिरी दिन एमआइएम से सय्यद मोईन ने नामांकन दाखिल किया. सय्यद मोईन एक सशक्त मुस्लिम उम्मीदवार हैं, लेकिन क्षेत्र में एमआइएम का पहले जैसा वर्चस्व नहीं रहा है. इसके बावजूद, दो मुस्लिम उम्मीदवारों के कारण मुस्लिम वोटरों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है.

कांग्रेस के पारंपरिक मुस्लिम वोटर भी कुछ हद तक कांग्रेस के उम्मीदवार मोहनराव हंबर्डे को वोट दे सकते हैं. लेकिन इस स्थिति में मुस्लिम वोटों का तीन उम्मीदवारों में बंटवारा होने की संभावना है. दिलीप कंदकुर्ते ने पिछले दो चुनावों में 43 से 44 हजार वोट हासिल किए थे.

भाजपा या निर्दलीय चुनाव लड़ने के बावजूद उन्होंने अपनी वोटों की संख्या बनाए रखी थी. इस बार भी वह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में मैदान में हैं. अनुमान है कि वह लगभग उतने ही वोट हासिल करेंगे, जितने पहले मिले थे. 

शिवसेना (शिंदे गुट) ने आनंद तिडके को उम्मीदवार बनाया है. शिवसेना की अपनी 35 से 40 हजार वोटें इस विधानसभा क्षेत्र में हैं. 2014 में शिवसेना के हेमंत पाटील ने 45,836 वोट हासिल किए थे. इस बार भी शिवसेना को लगभग 35 से 40 हजार वोट मिलने की संभावना है..

इस बार, नांदेड दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में प्रमुख मुकाबला वंचित के फारूक अहमद और निर्दलीय उम्मीदवार दिलीप कंदकुर्ते के बीच होगा. कंदकुर्ते अपनी वोट संख्या को 43 से 44 हजार से बढ़ाकर 50 हजार तक पहुंचाने की कोशिश करेंगे, जबकि फारूक अहमद मुस्लिम वोटों के विभाजन को रोकने की कोशिश करेंगे.

अगर प्रकाश आंबेडकर को मानने वाला दलित समुदाय और अधिकांश मुस्लिम समुदाय का वोट मिल जाता है, तो फारूक अहमद 50,000 वोटों का आंकड़ा पार कर सकते हैं. दिलीप कंदकुर्ते कितने और वोट जोड़ सकते हैं, और फारूक अहमद मुस्लिम वोटों का विभाजन रोककर कितने दलित वोट खींच सकते हैं, इसी पर दोनों उम्मीदवारों की जीत का गणित निर्भर करेगा.

(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय के राज्यशास्त्र और नागरिक शास्त्र विभाग में वरिष्ठ शोधार्थी हैं)