जयनारायण प्रसाद/ कोलकाता
कहते हैं कि रक्त का कोई धर्म नहीं होता. वह जाति-धर्म से ऊपर होता है. पश्चिम बंगाल के बोलपुर में सोमवार को एक ऐसी ही घटना घटी है. एक मुस्लिम युवक शेख़ नूर इस्लाम ने रोज़ा तोड़कर हिन्दू युवती ब्रतती मांझी की जान बचाई. उस हिन्दू युवती की उम्र 16 साल है. इस घटना की सभी लोग तारीफ कर रहे हैं.
राजधानी कोलकाता से बोलपुर की दूरी लगभग चार घंटे की है. कोलकाता से बोलपुर की भौगोलिक दूरी 160.8 किलोमीटर है. बोलपुर में कविगुरु रवींद्रनाथ टैगोर का शांतिनिकेतन भी पड़ता है, इसलिए भी बोलपुर हिंदुस्तान में काफी मशहूर है.
दरअसल यह हिन्दू युवती ब्रतती मांझी थैलेसीमिया रोग से पीड़ित है. उसे समय-समय पर खून यानी रक्त की जरूरत पड़ती रहती है. ब्रतती मांझी बी पाज़ीटिव भी है. और ऐसे मरीजों (बी पाज़ीटिव) के लिए खून देने वाला रक्तदाता बहुत मुश्किल से मिलता है. थैलेसीमिया असल में खून का बिकार है, जिसमें ऑक्सीजन वाहक प्रोटीन सामान्य से कम मात्रा में होते हैं. ऐसे में मरीज़ की जान हमेशा संकट से घिरी रहती है.
ठीक ऐसे वक्त में उस हिन्दू युवती ब्रतती मांझी की जान बचाने के लिए शेख़ नूर इस्लाम देवदूत बनकर आया. वह रोज़े पर था. उसके रक्त से युवती ब्रतती मांझी का रक्त मिल गया और इस तरह उस हिन्दू युवती की जान बच गई. युवती के पिता प्रदीप मांझी बेहितांह परेशान थे. कहते हैं बी पाज़िटिव रक्तदाता की खोज में उसने पूरे बोलपुर का चक्कर लगा डाला.
बोलपुर में यह जानकारी सबसे पहले गृहशिक्षक और समाजसेवी श्यामल मांझी को मिली थीं. श्यामल मांझी का छात्र था शेख़ नूर इस्लाम. श्यामल मांझी को मालूम था उसका छात्र शेख़ नूर इस्लाम बी पाज़िटिव है. श्यामल मांझी ने युवक शेख़ नूर इस्लाम से फौरन संपर्क किया और हिन्दू युवती ब्रतती मांझी की पूरी दास्तां सुनाई. शेख़ नूर इस्लाम तुरंत राज़ी हो गया. वह रोज़ा तोड़कर 16 वर्ष की उस हिन्दू युवती ब्रतती मांझी के लिए खून देने को तैयार हो गया.
युवती ब्रतती मांझी के पिता प्रदीप मांझी बताते हैं कि पूरे बोलपुर में कई महीनों से रक्त की भारी कमी है. यहां तक कि बीरभूम जिला, जिसमें बोलपुर नगरपालिका भी आता है - रक्त की कमी झेल रहा है. प्रदीप मांझी का कहना है - इस संकट से किसी को कोई मतलब नहीं है. बोलपुर में कोई किसी का दुखड़ा सुनने वाला भी नहीं है. गरीब और आर्थिक रूप से तंगहाल लोगों के लिए तो और भी ज्यादा मुश्किलें हैं. समाजसेवी श्यामल मांझी ने मेरी बेटी की जान बचाकर मेरे परिवार का बड़ा उपकार किया है.
प्रदीप मांझी ने कहा - मुस्लिम युवक शेख़ नूर इस्लाम का कोई जवाब नहीं ! उसका और उसके परिवार का तहेदिल से शुक्रगुजार हूं. वह रोज़े पर था. उसने रोज़ा तोड़कर मेरी बेटी ब्रतती मांझी की रक्षा की है. यह सबसे बड़ी सेवा है. यह उपकार मेरा परिवार और मैं कभी नहीं भूल सकता !
शेख़ नूर इस्लाम का कहना है कि रोज़े का असली मकसद भी यही है 'किसी के काम आना.' शेख़ नूर इस्लाम ने कहा, वह आज अपने मकसद में कामयाब हो गया. शेख़ नूर इस्लाम के घर के लोग और सारे करीबी रिश्तेदार भी उसके इस नेक काम से काफी खुश हैं. अब बोलपुर में सभी कहते फिर रहे हैं रोज़ा वही, जो दूसरे के काम आए !