फजल पठान
भारत देश संस्कृति और विविधता से भरा हुआ है. इसी विविधता में एकता और भाईचारे को बढ़ावा देने के लिए महाराष्ट्र में गणेशोत्सव की शुरुआत हुई थी. इस परंपरा को आज भी सार्वजनिक मंडलियां निभा रही हैं. अहमदनगर का विशाल गणपति ट्रस्ट भी इसी परंपरा को संजोने का कार्य कर रहा है. खालिद शेख की कला से यहां उभर रहा भव्य मंदिर, उनके द्वारा बनाए गए अन्य मंदिरों की तरह ही उत्कृष्ट होगा, इसमें कोई संदेह नहीं.
नाभिपर फन फैलाए नाग, सिर पर पेशवाकालीन पगड़ी, और साढ़े ग्यारह फीट ऊँची भव्य मूर्ति—ये हैं अहमदनगर के विशाल गणपति की विशेषताएं. अहमदनगर के ग्राम देवता और मन्नत पूरी करने वाले गणपति के रूप में श्री विशाल गणपति की पूरे राज्य में प्रसिद्ध है.
विशाल गणपति का इतिहास
हालाँकि विशाल गणपति अहमदनगर शहर के ग्राम देवता हैं, लेकिन यहाँ पूरे राज्य से भक्त दर्शन करने आते हैं. इसके अस्तित्व के प्रमाण मोडी लिपि में मिले, जो बताते हैं कि विशाल गणपति का अस्तित्व 750से 800साल पुराना है. ये दस्तावेज़ नगर के उद्यमी और होटल व्यवसायी विनायक नामदेवराव कोके पाटिल के पास उपलब्ध हैं.
विशाल गणपति ट्रस्ट के वर्तमान अध्यक्ष अभय आगरकर गणपति के इतिहास के बारे में बताते हुए कहते हैं, "गणेश पुराण में विशाल गणपति का उल्लेख पाया गया है. हालांकि मंडल के पास इसके लिखित प्रमाण नहीं हैं, लेकिन हमारे जानकारों के अनुसार यह गणपति सदियों से अस्तित्व में हैं."
ऐसी हैं आख्यायिकाएं
कोई वस्तु जितनी अधिक प्राचीन होती है, उससे जुड़ी आख्यायिकाएं भी उतनी ही अधिक होती हैं. अहमदनगर का विशाल गणपति भी इसका अपवाद नहीं. जब 'आवाज मराठी' ने इस बारे में पूछा, तो अभय आगरकर ने बताया, "इस गणपति से जुड़ी दो प्रमुख आख्यायिकाएं हैं.
इस मंदिर की विशाल गणपति की मूर्ति को स्वयंभू माना जाता है. कहा जाता है कि यह मूर्ति रोज़ाना तिल के बराबर बढ़ती है और इसी वजह से यह इतनी बड़ी हो गई है. यदि मूर्ति इसी तरह बढ़ती रहती तो समस्या पैदा हो सकती, इसलिए इस मूर्ति के सिर पर कील ठोकी गई, जिससे इसकी वृद्धि रुक गई. हालांकि, इसका कोई प्रमाण नहीं है."
इसके अलावा दूसरी आख्यायिका यह है कि जब औरंगजेब अहमदनगर में आया तो उसने इस गणेश की अवहेलना की, जिससे उसे तकलीफ उठानी पड़ी. इसके बाद उसने मंदिर की दीया-बत्ती की व्यवस्था करवाई, ऐसा कुछ इतिहासकारों का मानना है.
श्री विशाल गणपति को 'नवसाला पावणारा बाप्पा' यानी मन्नत पूरी करने वाला गणपति माना जाता है. यहां पर प्रतिदिन मन्नत मांगने वालों और मन्नत पूरी होने पर उसे चुकाने वालों की भारी भीड़ रहती है. यहां के पुराने निवासी बताते हैं कि कई मुस्लिम भी श्री विशाल गणेश के भक्त हैं. चाहे चुनाव प्रचार की शुरुआत हो या विवाह समारोह, अहमदनगर शहर में किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत श्री विशाल गणपति से ही होती है. वर्षों पुरानी यह परंपरा आज भी स्थानीय लोग पूरी श्रद्धा के साथ निभाते हैं.
गणेश पूजा की परंपरा
देवता की पूजा अर्चना भक्तों की आस्था का प्रमुख हिस्सा होती है. आमतौर पर दीप जलाकर, लड्डू और मोदक का प्रसाद चढ़ाकर गणपति की पूजा की जाती है. श्री विशाल गणपति के पुजारी नाथपंथ से जुड़े हैं, और प्रारंभ से ही नाथपंथीय पुजारियों द्वारा इस गणपति की पूजा की जाती है.
इस परंपरा के बारे में अभय आगरकर बताते हैं, "सदियों से यहाँ गणेश मूर्ति का अस्तित्व माना जाता है, लेकिन एक नाथपंथीय संत ने इस मंदिर की स्थापना की. उस नाथपंथीय संत की माता गणेश भक्त थीं, इसलिए उन्होंने इस मंदिर की स्थापना की उनकी संजीवन समाधि मंदिर के गर्भगृह के पीछे स्थित है.
मंदिर में पूजा सहित सभी धार्मिक विधियाँ नाथपंथ की परंपराओं के अनुसार ही होती हैं. यहाँ नगाड़े के साथ की जाने वाली गणेश की आरती मंत्रमुग्ध करने वाली होती है. गेंडानाथ महाराज के शिष्य संगमनाथ महाराज वर्तमान में पुजारी के रूप में सेवाएं दे रहे हैं."
मुस्लिम कारीगर कर रहे है इस ऐतिहासिक हिंदू मंदिर का जीर्णोद्धार
अभय आगरकर बताते हैं कि उनके बुजुर्गों ने 1953में विशाल गणपति ट्रस्ट की स्थापना की थी. इसके बाद, कई लोगों ने ट्रस्ट के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. अब आगरकर परिवार की तीसरी पीढ़ी, यानी अभय आगरकर, इस ट्रस्ट के प्रमुख हैं. पिछले 18व र्षों से इस गणेश मंदिर के नवीनीकरण का कार्य मुस्लिम कारीगर खालिद शेख कर रहे हैं.
जब उनसे पूछा गया कि खालिद शेख को यह काम कैसे सौंपा गया, तो उन्होंने बताया, "खालिद भाई ने पहले भी कई मंदिरों का निर्माण किया है. इस गणेश मंदिर का काम भी उनके नेतृत्व में हो रहा है. यह हमारे लिए गर्व की बात है. हमारे पिता और बिर्ला मंदिर ट्रस्ट के कुछ अधिकारियों की पहचान थी, उन्हीं अधिकारियों ने हमारे पिता को खालिद भाई का नाम सुझाया. उसके बाद हमने यह काम खालिद भाई को सौंप दिया."
गणेश मंदिर के निर्माण के लिए खालिद शेख दिन-रात मेहनत कर रहे हैं. अभय आगरकर खालिद भाई के काम की विशेषताएं बताते हुए कहते हैं, "खालिद भाई एक बेहतरीन कलाकार हैं. हम उन्हें जो भी डिज़ाइन देते हैं, वे उसी शैली में काम करते हैं. मंदिर की ऐतिहासिक संस्कृति से लेकर नक्काशी तक की पूरी जानकारी खालिद भाई को है. हम उन्हें जो डिज़ाइन देते हैं, वे उसे बिल्कुल हूबहू साकार करते हैं."
आगे वे कहते हैं, "श्री विशाल गणेश देवस्थान का दानपेटी के अलावा कोई अन्य आय का साधन नहीं है. भक्तों द्वारा दी गई दानराशि से ही मंदिर के जीर्णोद्धार का काम हो रहा है. कई बार ऐसा होता है कि हमारे पास पैसे खत्म हो जाते हैं, लेकिन खालिद भाई कभी भी अपना काम नहीं रोकते. खालिद भाई और उनके सहयोगी बेहद मेहनती और ईमानदार हैं, और पिछले कई वर्षों से गणेश मंदिर के लिए सेवा कर रहे हैं."
मुस्लिम कारीगर से काम कराते हुए उसके पीछे की भावना पर अभय आगरकर कहते हैं, "हमें अपने छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास याद करना चाहिए. हमारा इतिहास हमें सौहार्द बनाए रखने के लिए प्रेरित करता है. हिंदू-मुस्लिम कुछ नहीं होता. भारतमाता के प्रति ईमानदारी रखने वाले सभी धर्मों के लोग हमारे अपने हैं."
मंदिर का जीर्णोद्धार करने वाले खालिद भाई
देशभर के विभिन्न प्रसिद्ध मंदिरों को अपनी कला से सजाने वाले खालिद शेख कई वर्षों से कारीगर के रूप में काम कर रहे हैं.देवताओं के घरों में कला के रूप में सौंदर्य भरने में उन्हें ख़ुशी मिलती हैं. उनके द्वारा निर्मित मंदिरों से यह स्पष्ट होता है कि कला का कोई जाति-धर्म नहीं होता.
विशाल गणपति मंदिर का काम करने के पीछे की भावना के बारे में पूछे जाने पर खालिद शेख बताते हैं, "मैं जयपुर में बिरला मंदिर का काम कर रहा था, तब विशाल गणपति ट्रस्ट के पदाधिकारी मेरे पास आए थे. उन्होंने कहा कि अहमदनगर में गणपति मंदिर का काम करना है.
पूछा कि क्या मैं आ सकता हूँ. इसके बाद, मैं अहमदनगर आया और देखा कि मंदिर में क्या काम करना है और किस प्रकार से करना चाहिए. काम के संबंध में पूरी चर्चा के बाद, मैंने मंदिर के काम के लिए सहमति दी. अहमदनगर में आकर काम शुरू किया."
आगे वे कहते हैं, "ऐसे बड़े-बड़े मंदिरों का काम करने के लिए निरंतरता महत्वपूर्ण होती है. इस निरंतरता को बनाए रखने के लिए काम की जगह पर पारिवारिक वातावरण होना आवश्यक है. कई वर्षों से चल रहे इस काम में हिंदू भाइयों ने हमें किसी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं दी, बल्कि बहुत मदद की.
यहाँ एक पारिवारिक वातावरण बनाया गया. केवल हिंदू भाइयों और ट्रस्ट के कार्यकर्ताओं के प्रेम के कारण ही हम यहाँ काम कर सके. विशाल गणपति मंदिर का काम करते समय हिंदू भाइयों द्वारा मिले प्रेम और सहयोग को देखकर मुझे बहुत खुशी होती है."
कुछ नहीं होता हिंदू-मुस्लिम
हिंदू-मुस्लिम भाईचारे का सामाजिक सौहार्द आज का नहीं है, बल्कि यह पहले से है. विभिन्न त्योहारों में यह विशेष रूप से देखा जाता है.हिंदू-मुस्लिम एकता के बारे में बात करते हुए खालिद भाई कहते हैं, "समाज के कुछ तत्वों के कारण दोनों समाजों में कटुता पैदा हो रही है. पर हिंदू-मुस्लिम कुछ नहीं होता. हिंदू और मुस्लिमों के बीच बहुत प्यार है. हम सभी इंसान हैं. इतने वर्षों में काम करते समय मुझे कभी भी यह महसूस नहीं हुआ कि मैं मुस्लिम हूँ और वे हिंदू हैं."
कला का कोई जाति-धर्म नहीं होता
अपने काम के बारे में बात करते हुए खालिद भाई कहते हैं, "कारीगर की कला का कोई जाति-धर्म नहीं होता. कला ही एक धर्म है. मंदिर हो या मस्जिद, यह इश्वर का घर है, यही भावना रखते हुए हम काम करते हैं. काम करते समय मैं यही देखता हूँ कि किस प्रकार इस मंदिर की नक्काशी में सौंदर्य भरा जा सकता है."
हालांकि विशाल गणपति अहमदनगर के ग्राम देवता हैं, लेकिन वह पूरे महाराष्ट्र के भक्तों का श्रद्धास्थान बन गए हैं. गणेश चतुर्थी और गणेशोत्सव के दौरान गणेश भक्तों की भीड़ इसकी गवाही देती है. खालिद शेख की कला से उभर रहा यह भव्य मंदिर, उनके द्वारा बनाए गए अन्य मंदिरों की तरह ही उत्कृष्ट होगा, इसमें कोई संदेह नहीं.