MRTI से होगा महाराष्ट्र के अल्पसंख्यकों का समग्र विकास

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 09-09-2024
MRTI will lead to overall development of minorities in Maharashtra
MRTI will lead to overall development of minorities in Maharashtra

 

समीर डी. शेख़

आख़िरकार, महाराष्ट्र सरकार के अल्पसंख्यक विकास विभाग ने 22 अगस्त को 'अल्पसंख्यक अनुसंधान और प्रशिक्षण संस्थान' (MRTI) स्थापित करने के निर्णय पर मुहर लगा दी.इससे पहले 7 अगस्त को राज्य कैबिनेट की बैठक में एक अहम फैसला लिया गया था. यदि सही ढंग से लागू किया गया तो यह निर्णय भविष्य में न केवल ऐतिहासिक होगा, देश के अन्य राज्यों के लिए भी मार्गदर्शक होगा."

भारत के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए 'बर्ती', 'सारथी', 'महाज्योति', 'अमृत' की तर्ज पर 'अल्पसंख्यक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान' यानी 'एमआरटीआई' स्थापित करने का निर्णय कैबिनेट बैठक में लिया गया." राज्य में अल्पसंख्यक भाईयों और उनके समग्र विकास की बात राज्य सरकार के फैसले में कही गई. यह निर्णय प्रगतिशील महाराष्ट्र की परंपरा और कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के अनुरूप है.

कैबिनेट के अंतिम फैसले में कहा गया, 'राज्य में मुस्लिम, जैन, बौद्ध, ईसाई, यहूदी, सिख, पारसी अल्पसंख्यक नागरिक हैं. इस संस्था के माध्यम से उनके सामाजिक, शैक्षिक, आर्थिक विकास से जुड़ी समस्याओं का अध्ययन किया जाएगा.'

इन अल्पसंख्यकों में मुस्लिम समुदाय (भारत में और महाराष्ट्र में भी) सबसे बड़ा धार्मिक समूह है.जाहिर है, 'मार्टी' जैसी संस्था महाराष्ट्र में 11.54फीसदी आबादी वाले इस समुदाय से जुड़ी 'शास्त्रीय' पढ़ाई को बढ़ावा देगी. इसीलिए 'शहीद' जैसा संगठन आज के मुस्लिम-फोबिक स्पेस में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

इस समुदाय और समग्र रूप से अल्पसंख्यकों की शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए केंद्रीय स्तर पर सच्चर समिति, कुंडू समिति, रंगनाथ मिश्रा आयोग का गठन किया गया था, जबकि महाराष्ट्र सरकार की मोहम्मदुर रहमान समिति ने इस पर अपनी टिप्पणियाँ दर्ज कीं.

इन सबके अवलोकन से मुस्लिम समाज की चिंताजनक तस्वीर सामने आती रही.ये सभी इस समाज के शिक्षा, अर्थव्यवस्था, समाज आदि सभी पहलुओं में पिछड़ेपन पर मुहर लगाते हैं.इसी पृष्ठभूमि में इस समाज के सामाजिक उत्थान के लिए एक स्वायत्त संस्था की स्थापना की मांग कई वर्षों से की जा रही थी.

पिछले कुछ सालों में इस मांग में तेजी आई है. इसके लिए कुछ मुस्लिम युवकों ने एकजुट होकर 'मार्टी एक्शन कमेटी' का गठन किया.हालाँकि, पिछड़े मुस्लिम समुदाय के समग्र विकास के लिए 'बारती', 'सारथी' की तर्ज पर एक संगठन बनाने की अवधारणा को पहली बार प्रस्तावित किए जाने के दस साल बीत चुके हैं.

मुझे याद है कि मैंने पहली बार इस अवधारणा को पुणे में 'यशदा' में महाराष्ट्र राज्य अल्पसंख्यक आयोग द्वारा आयोजित एक शिविर में पेश किया था.'देर आयद, दुरूस्त आयद' कहावत को साकार होते देख संतोष होना स्वाभाविक है.

जबकि मुस्लिम समुदाय की धारणा अलौकिकता में फंसे, सुधार से विमुख और केवल धार्मिक मांगों के लिए सड़कों पर उतरने वाले समाज के रूप में है. इस समुदाय की ओर से 'धर्मनिरपेक्ष' विकास के लिए ऐसी संस्था की मांग आश्वस्त करने वाली है.

इसीलिए राज्य सरकार ने वित्त विभाग की 'सलाह' को नजरअंदाज करते हुए ऐसी संस्था स्थापित करने का निर्णय लिया कि इस समुदाय के लिए ऐसी संस्था की कोई आवश्यकता नहीं है, जो महाराष्ट्र के सबसे बड़े और सबसे पिछड़े समूहों में से एक है.

उपर्युक्त समितियों के निष्कर्षों के अनुसार, मुसलमानों की कुल आबादी का 60प्रतिशत गरीबी रेखा से नीचे रहता है.हालाँकि समुदाय में साक्षरता दर 78प्रतिशत से अधिक है, लेकिन उच्च ड्रॉपआउट दर के कारण केवल 2.2 प्रतिशत छात्र ही स्नातक तक अपनी शिक्षा पूरी कर पाते हैं.

जाहिर है, सरकारी नौकरियों में इनका प्रतिनिधित्व 4.4फीसदी है और पुलिस प्रशासन में भी इनकी संख्या इतनी ही है. इन सभी आँकड़ों को देखते हुए यह आरोप कि यह समाज 'चलाया' गया है, न केवल निराधार है बल्कि हास्यास्पद भी है.

मराठी मुसलमान कई मायनों में देश के बाकी मुस्लिम समुदाय से अलग हैं.यह बिल्कुल भी 'अखंड' नहीं है जैसा कि आमतौर पर माना जाता है.बल्कि, इसकी विशेषताएँ एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में भिन्न-भिन्न होती हैं.लेकिन दूसरी ओर, उनकी भाषाई अनबन अभी भी पूरी तरह से सुलझ नहीं पाई है. इसलिए, उन्होंने खुद को एक ओर उर्दू भाषा के अविकसित और कमजोर ज्ञान आधार और दूसरी ओर मराठी में नगण्य ज्ञान सृजन की दुर्दशा में पाया है.

यदि हम महाराष्ट्र के इस दूसरे सबसे बड़े समूह का समग्र विकास करना चाहते हैं तो सबसे पहले इस समाज का व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन करना होगा.तभी बहुसंख्यकों के साथ समाज की भी कई भ्रांतियां दूर होंगी और भ्रांतियां मिटेंगी.

ऐसे विभिन्न कारकों का समाजशास्त्रीय अध्ययन; एक कानूनी संगठन की बहुत आवश्यकता थी जो साहित्यिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक पहलुओं के माध्यम से इस समाज के बारे में मराठी में ज्ञान पैदा करे, अनुसंधान और प्रशिक्षण गतिविधियों का संचालन करे.

मुस्लिम समुदाय के बारे में बच्चों की समझ को बेहतर बनाने में 'मार्टी' जैसा संगठन महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.दूसरी ओर, प्रतियोगी परीक्षा मार्गदर्शन और अन्य ऐसी गतिविधियों से प्रतिशत में वृद्धि होगी जो प्रशासन में नगण्य है.संवैधानिक अधिकारों के प्रति इस समाज में व्याप्त घोर उदासीनता को दूर करने का एक बड़ा कार्य ऐसे संगठन के माध्यम से किया जा सकता है.

अल्पसंख्यक समूह के बारे में बहुसंख्यकों में कुछ जिज्ञासा और कुछ अज्ञानता है.लेकिन उनकी अज्ञानता और जिज्ञासा बहुत संगठित और व्यवस्थित ढंग से पहले भय और फिर घृणा में बदल दी जाती है.सूचना युग में वस्तुनिष्ठ एवं वैज्ञानिक जानकारी की आवश्यकता इस परिवर्तन को और अधिक तीव्र बना देती है.

हाल के दिनों में भारत और खासकर महाराष्ट्र में धार्मिक तनाव की बढ़ती घटनाओं पर नजर डालें तो यह बात शिद्दत से महसूस होती है.(एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2022-23 में धार्मिक तनाव की सबसे ज्यादा घटनाएं महाराष्ट्र में दर्ज की गईं.) अगर इस आग को बुझाना है, अगर प्रगतिशील महाराष्ट्र को रोकना है, तो 'मार्टी' जैसी स्वायत्त संस्था की तत्काल जरूरत है.